बघेली लोक गीतों को लोकप्रिय बनाने में जुटी हैं मान्या पाण्डेय

० विंध्य क्षेत्र के रीवा व शहडोल संभाग के हर जिलों में आयोजित होगा लोकरंग महोत्सव, रामनगर, मैहर व सतना में हो चुका है आयोजन

नवभारत न्यूज

सीधी 18 मई। उत्थान सामाजिक सांस्कृतिक एवं साहित्यिक समिति सीधी द्वारा बघेली लोक संस्कृति, लोक कलाओं एवं पारम्परिक तत्वों के संरक्षण, संवर्धन एवं मंचीय प्रदर्शन को बढ़ावा देने व लोक प्रिय बनाने के उद्देश्य से रीवा व शहडोल संभाग के सम्पूर्ण जिलों में विंध्य लोकरंग महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है।

विंध्य लोकरंग महोत्सव में बघेली लोक गीतों और कलाओं के संरक्षण एवं विस्तार कार्य में जुटी राष्ट्रीय लोक गायिका मान्या पाण्डेय बघेली लोक गीतों का गायन करती हैं। मान्या पिछले आठ वर्षों से बघेली गीतों का गायन कर रही हैं। मान्या को अब तक 1000 हजार से अधिक बघेली लोकगीत मुंहजबानी याद हैं। विंध्य लोकरंग महोत्सव को लेकर स्थानीय स्तर पर लोगों में काफी उत्साह देखने को मिल रहा है। विंध्य लोकरंग महोत्सव का शुभारंभ मैहर जिले के रामनगर में 13 मई को किया गया। उसके बाद मां शारदा की नगरी मैहर में 14 मई और सतना में 16 मई को महोत्सव का आयोजन किया गया। रामनगर, मैहर, सतना में महोत्सव का सारा आयोजन स्थानीय समाजसेवियों द्वारा किया गया। जिसमें हजारों की संख्या में श्रोता बघेली लोक गीतों को सुनने के लिए पहुंचे एवं सभी ने विलुप्त होती लोकगायन परम्परा को बचाने के लिए प्रयासरत कलाकारों का खूब उत्साहवर्धन भी किया। स्थानीय संयोजकों एवं सहयोगियों ने अपनी अपनी तरफ से कलाकारों का सम्मान भी किया और पुन: आयोजन के लिए बुलावा भी दिया। शहडोल संभाग में विंध्य लोकरंग महोत्सव का आयोजन 19 मई को शहडोल से होगा और 20 को अनूपपुर एवं 22 मई को उमरिया में किया जायेगा। तदोपरांत 25 मई को सिंगरौली व 27 मई को मऊगंज में किया जायेगा। विंध्य लोकरंग महोत्सव में राष्ट्रीय लोक गायिका मान्या पाण्डेय के साथ लोक गायक नरेन्द्र सिंह, कपिल तिवारी, हरिश्चंद्र मिश्रा, प्रत्युष द्विवेदी, श्रुति सिंह, सुभी सिंह, वादक रावेन्द्र तिवारी, कर्णवीर सिंह, पवन शुक्ला, रजनीश जायसवाल एवं मंच व्यवस्थापक निर्भय द्विवेदी, मनोज विश्वकर्मा, कमल पाण्डेय आदि दल के रूप प्रत्येक आयोजनों में शामिल होते हैं।

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लोक संस्कृति बचाने की जरूरत: नरेन्द्र

बघेलखंड की लिखित परम्परा भले ही उतनी समृद्ध न हो लेकिन वाचिक परम्परा काफी समृद्ध और विविधतापूर्ण है। पिछले 20 वर्षों में लोक के प्रति लोगों की हीन भावना और लोक कलाओं व कलाकारों को उचित सम्मान व मंचीय प्रदर्शन को विस्तार न मिलने के कारण बघेली बोली की बहुत सारी गायन एवं नर्तन विधाएं विलुप्त हो गई हैं या विलुप्तता की कगार पर हैं। आज की पीढ़ी अपने बुजुर्गों के पास बैठना नही चाहती और न ही वाचिक परम्परा से पीढ़ी दर पीढ़ी आए लोक ज्ञान व गायन परम्परा को सीखने में कोई दिलचस्पी दिखाती: अत: मौखिक परम्परा का लोक भण्डार अब क्षीण हो गया है। मान्या पाण्डेय ने लोकगीतों के संरक्षण और उनके विविध मंचों पर गायन का अभियान शुरू किया है। यह अपने आप में मिसाल तो है ही साथ ही नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा की तरह है। मान्या ने यह अहसास कराया कि हमारी पहचान हमारी लोक संस्कृति से ही है। इसे बिना साथ लिए या इसे किनारे कर हम बघेली बोली बानी क्षेत्र के लोग कभी पूरे नही हो पाएंगे। मान्या बघेली बोली के विविध गीतों को राष्ट्रीय मंचों तक पहुंचा रही हैं। उनके इस कदम ने निश्चित रूप से बघेली गीतों में कुछ नया करने और उन्हें बेहतरी की ओर ले जाने की दिशा में गुंजाइश पैदा हुई है।

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