बुधवार को अंतर्राष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस मनाया गया. जाहिर है इस दिन प्लास्टिक मुक्त जीवन का संकल्प लिया गया. यह संकल्प केवल एक दिन का कर्मकांड ना बनें इसका ध्यान रखने की जरूरत है. दरअसल, हमें ठहरकर उस ‘ प्लास्टिक से सुविधा’ पर विचार करना चाहिए, जो अब एक वैश्विक आपदा का रूप ले चुकी है. कभी उपभोक्ता के जीवन को आसान बनाने के उद्देश्य से जन्मा प्लास्टिक बैग, अब हमारे पर्यावरण, जैव विविधता और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक मूक, मगर घातक खतरा बन चुका है.प्लास्टिक बैग का इतिहास 1960 के दशक में स्वीडन में शुरू हुआ, जब लोप्लास्ट कंपनी ने एक सस्ता, हल्का और टिकाऊ विकल्प प्रस्तुत किया. आरंभ में इसे कागज़ के थैलों का ‘पर्यावरण-संवेदनशील’ विकल्प माना गया. किंतु आज, प्रति वर्ष 50 खरब से अधिक प्लास्टिक बैग्स का वैश्विक उपभोग, और उनमें से मात्र 1-3 फीसदी की रीसाइक्लिंग, एक भयानक असंतुलन को जन्म दे रहे हैं.
चौंकाने वाली बात यह है कि एक प्लास्टिक बैग औसतन सिर्फ 12 मिनट उपयोग में आता है, लेकिन 500 वर्षों तक पृथ्वी पर बना रह सकता है. शेष बैग्स लैंडफिल में सड़ते हैं, नदियों में बहते हैं, और अंतत: समुद्रों में पहुंचकर समुद्री जीवन के लिए घातक जाल बन जाते हैं. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, हर वर्ष लगभग 10 लाख समुद्री जीव प्लास्टिक निगलने या उसमें उलझने के कारण अपनी जान गंवाते हैं.भारत में यह संकट और भी विकराल है. महानगरों की नालियाँ प्लास्टिक कचरे से भर जाती हैं, जिससे हर वर्ष मानसून में जलभराव और बाढ़ की स्थितियां बनती हैं. ग्रामीण अंचलों में खेतों की मिट्टी प्लास्टिक बैग्स के कारण अपनी प्राकृतिक उर्वरता खो रही है. सूर्य के संपर्क में आकर जब ये बैग्स माइक्रोप्लास्टिक में परिवर्तित होते हैं, तो वे खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर हमारे स्वास्थ्य के लिए अदृश्य विष बन जाते हैं.यह संकट केवल पर्यावरण या स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है . यह हमारे आर्थिक संसाधनों पर भी अत्यधिक दबाव डालता है. कचरा प्रबंधन, नालियों की सफाई और प्रदूषण नियंत्रण पर सरकारों को हर वर्ष अरबों रुपये खर्च करने पड़ते हैं.वहीं यदि हम जूट, कपड़े या अन्य टिकाऊ विकल्पों को प्रोत्साहित करें, तो न केवल पर्यावरण का संरक्षण संभव है, बल्कि स्थानीय कारीगरों और सूक्ष्म उद्यमों को भी नया जीवन मिल सकता है.
दुनिया भर में इस दिशा में नीतिगत पहल हो रही है. बांग्लादेश, कनाडा, केन्या जैसे देशों ने सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर सख्त प्रतिबंध लगाए हैं. भारत ने भी 2022 से ऐसे प्लास्टिक पर प्रतिबंध लागू किया है, किंतु इसके प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता आज भी शिद्दत से महसूस की जाती है.इसलिए यह समय केवल सरकारी आदेशों की प्रतीक्षा करने का नहीं, व्यक्तिगत जिम्मेदारी निभाने का है. हमें चाहिए कि हम स्वेच्छा से प्लास्टिक बैग्स का प्रयोग त्यागें, अपने साथ कपड़े या जूट के थैले रखें, दुकानदारों को प्रोत्साहित करें कि वे वैकल्पिक पैकेजिंग अपनाएं, और अपने समाज को जागरूक करें. स्कूलों, समाजों और ऑनलाइन प्लेट$फॉर्म्स पर जागरूकता अभियानों की नितांत आवश्यकता है.
आखऱिकार, एक स्वच्छ और सुरक्षित भविष्य की नींव हमारे आज के छोटे-छोटे फैसलों पर निर्भर करती है.
क्या हम अपनी सुविधा की आदत पर पुनर्विचार करने और पृथ्वी के प्रति अपने उत्तरदायित्व को स्वीकारने के लिए तैयार हैं?
यदि हां, तो यह बदलाव यहीं से, अभी से शुरू किया जा सकता है.यह समय है—सुविधा से जि़म्मेदारी की ओर बढऩे का.