कनाडा में मार्क कार्नी के नेतृत्व में लिबरल पार्टी की सत्ता में वापसी केवल एक आंतरिक राजनीतिक परिवर्तन नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति के एक नए अध्याय की प्रस्तावना है. ट्रूडो प्रशासन के दौरान जिस तरह भारत-कनाडा संबंधों में कटुता आई और खालिस्तानी तत्वों को खुले समर्थन ने दोनों देशों के बीच अविश्वास की दीवार खड़ी की, वह दौर अब पीछे छूटता दिख रहा है.कार्नी का उदार, संतुलित और तथ्याधारित दृष्टिकोण इस संभावना को जन्म देता है कि कनाडा अब भारत के साथ एक परिपक्व, पारदर्शी और दीर्घकालिक साझेदारी की ओर बढ़ेगा.
भारत आज सिर्फ एक उभरती हुई शक्ति नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन के केंद्र में खड़ा है. चीन की आक्रामक विस्तारवादी नीतियों, रूस-यूक्रेन संघर्ष से अस्थिर हुए यूरोपीय समीकरण और अमेरिका के अंदरूनी राजनीतिक द्वंद्व के बीच भारत एकमात्र ऐसा लोकतंत्र है जो स्थिरता, विश्वसनीयता और रणनीतिक संतुलन का आश्वासन देता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति ने भारत को इस स्थिति में लाकर खड़ा किया है कि वह चाहे तो ब्रिक्स जैसे दक्षिण वैश्विक समूहों के साथ मिलकर एक वैकल्पिक वित्तीय व्यवस्था की नींव रख सकता है, या फिर जी-20 और क्वाड जैसे पश्चिमी गुटों के साथ मिलकर चीन के प्रभाव को संतुलित कर सकता है.
इसी संदर्भ में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तान अब भारत से सीधे युद्ध करने की स्थिति में नहीं है.यह टिप्पणी केवल एक सैन्य सच्चाई नहीं दर्शाती, बल्कि यह इस बात का संकेत भी है कि भारत अब अपनी सीमाओं की रक्षा को लेकर आत्मविश्वास से भरा है और उसकी रणनीतिक प्राथमिकताएं अब वैश्विक पटल पर स्थान लेने की ओर मुड़ गई हैं. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत भारतीय सेना और खुफिया एजेंसियों की पाकिस्तान समर्थित आतंकी नेटवर्कों के विरुद्ध आक्रामक कार्रवाई भारत की नई रणनीतिक सक्रियता का प्रमाण है.
ऐसे समय में कनाडा के सामने यह स्पष्ट विकल्प है कि,क्या वह खालिस्तान जैसे संकीर्ण उग्रवाद के ठिकानों को पोषित करता रहेगा या फिर भारत जैसे लोकतांत्रिक, सांस्कृतिक रूप से समृद्ध और वैश्विक नेतृत्व के लिए तैयार राष्ट्र के साथ सशक्त भागीदारी को प्राथमिकता देगा. कार्नी की प्रारंभिक विदेश नीति अभिव्यक्तियों से संकेत मिलते हैं कि वह कनाडा को ‘दीप स्टेट’ के प्रभाव से बाहर लाकर एक वैश्विक उत्तरदायी लोकतंत्र के रूप में पुनर्परिभाषित करना चाहते हैं.
प्रवासी भारतीय समुदाय को संदेह की दृष्टि से देखना, खालिस्तानी गतिविधियों को नजरअंदाज करना और द्विपक्षीय संवाद से बचना, ये सभी नीतियां अतीत में कनाडा की भारत नीति का हिस्सा रही हैं.अब वक्त है कि कनाडा भारत के साथ शिक्षा, जलवायु परिवर्तन, नवाचार, तकनीक और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में समन्वय को सशक्त बनाए. ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ की भारतीय अवधारणा और कनाडा का समावेशी दृष्टिकोण मिलकर विश्व के सामने सहयोग का एक नया मॉडल प्रस्तुत कर सकते हैं.आने वाले वर्षों में यह देखना रोचक होगा कि भारत अपनी रणनीतिक प्राथमिकताएं कैसे निर्धारित करता है, क्या वह ब्रिक्स की बहु ध्रुवीयता को आगे बढ़ाएगा या जी-20 के मंच पर पश्चिमी सहयोगियों के साथ मिलकर चीन का संतुलन साधेगा. जो भी दिशा भारत अपनाए, कनाडा के लिए यह आवश्यक होगा कि वह भारत के साथ सशक्त कूटनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संवाद को पुनर्स्थापित करे. यदि ऐसा होता है, तो यह केवल द्विपक्षीय संबंधों की बहाली नहीं होगी, बल्कि वैश्विक शांति, स्थायित्व और लोकतंत्र की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम होगा.