नयी दिल्ली, 04 अप्रैल (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने हरियाणा के गुरुग्राम के डीएलएफ सिटी (चरण 1-5) में 4,000 से अधिक अनधिकृत निर्माण के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का शुक्रवार को आदेश जारी कर वहां के निवासियों को बड़ी राहत दी।
न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने प्रभावित निवासियों द्वारा दायर याचिकाओं पर यह आदेश पारित किया।
पीठ इस मामले में संबंधित पक्षों की नोटिस भी जारी किया।
शीर्ष अदालत का यह आदेश यह पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में दिए गए निर्देश के जवाब में आया है, जिसमें अधिकारियों को दो महीने के भीतर इन निर्माणों के खिलाफ ‘त्वरित कार्रवाई’ करने का निर्देश दिया गया था।
कथित तौर पर ये याचिकाकर्ता उच्च न्यायालय के समक्ष मूल कार्यवाही में पक्षकार नहीं थे और उन्हें बिना सुनवाई के अपनी संपत्ति खोने का डर था।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा,“इस बीच, अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होने की तारीख तक यथास्थिति (जैसी आज है) पक्षों द्वारा बनाए रखी जाएगी। आज पारित यथास्थिति के आदेश के मद्देनजर, हम यह स्पष्ट करते हैं कि याचिकाकर्ता भी कोई निर्माण नहीं करेंगे।”
याचिकाकर्ताओं में कई निवासियों (जिनमें लगभग 2,100 इकाइयों के मालिक और अधिभोगी शामिल हैं) को आसन्न सीलिंग और तोड़ फोड़ का सामना करना पड़ा जो आज से शुरू होने वाला था।
अदालत की अंतरिम राहत आगे के निर्देश जारी होने तक किसी भी प्रकार की बलपूर्वक कार्रवाई को रोकती है।
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 13 फरवरी, 2024 को हरियाणा के अधिकारियों को दो महीने के भीतर अनधिकृत निर्माणों के खिलाफ ‘शीघ्र कार्रवाई’ करने का निर्देश देते हुए एक रिट जारी की।
यह मामला 2021 में डीएलएफ सिटी रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन और डीएलएफ-3 वॉयस द्वारा दायर याचिकाओं के बाद सामने आया।
इन याचिकाओं में अनधिकृत निर्माणों के खिलाफ शिकायतों के संबंध में 2018 की कार्रवाई रिपोर्ट और जिला नगर योजनाकार (प्रवर्तन) के एक ज्ञापन के आधार पर कार्रवाई की मांग की गई थी, जिसमें उल्लंघनकर्ताओं के लिए व्यवसाय प्रमाण पत्र रद्द करने और उनकी उपयोगिता सेवाओं को बंद करने की सिफारिश की गई थी।
उच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ये अवैध निर्माण ज़ोनिंग प्लान, 2016 और 2017 के बिल्डिंग बाय-लॉ और हरियाणा बिल्डिंग कोड का घोर उल्लंघन है।
अदालत ने चेतावनी दी कि अगर इस तरह के बेतरतीब और अनियोजित विकास पर लगाम नहीं लगाई गई, तो गुरुग्राम का बुनियादी ढांचा- जिसमें पीने योग्य पानी की आपूर्ति, सीवरेज, वायु गुणवत्ता, परिवहन और बिजली शामिल है- पूरी तरह से ध्वस्त हो जाएगा।
इसके अलावा उच्च न्यायालय ने इन उल्लंघनों को बढ़ावा देने में स्थानीय प्रशासन की भूमिका को भी स्वीकार किया। अदालत ने देखा कि अधिकारियों की मिलीभगत से भू-माफियाओं की एक ‘शक्तिशाली लॉबी’ कॉलोनी के स्वरूप को तेज़ी से बदल रही है।
पीठ ने टिप्पणी की,“यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि कुछ समूहों/भू-माफियाओं की एक शक्तिशाली लॉबी स्थानीय प्रशासन/आधिकारिक प्रतिवादियों के साथ सक्रिय मिलीभगत से विकसित कॉलोनी के मूल चरित्र को बर्बाद कर रही है, वह भी केवल इसलिए क्योंकि अधिकारियों ने आँखें मूंद ली हैं और ऐसे अवैध और अनधिकृत निर्माण/अवैध विकास की अनुमति दे रहे हैं; जो उनकी नाक के नीचे खतरनाक दर पर हो रहे हैं।”
उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष न्यायालय में कई याचिकाएँ दायर की गईं। इनमें मुख्य तर्क यह था कि उच्च न्यायालय ने प्रभावित संपत्ति स्वामियों को सुनवाई का अवसर दिए बिना प्रतिकूल आदेश पारित कर दिया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
मालिकों द्वारा ट्रायल कोर्ट में दायर किए गए सिविल मुकदमों (जहाँ निषेधाज्ञा आदेश जारी किए गए थे) को उच्च न्यायालय ने सरसरी तौर पर खारिज कर दिया। व्यापक कार्रवाई के बजाय, उच्च न्यायालय को स्थापित कानूनी मिसालों के आधार पर समझौता योग्य और गैर-समझौता योग्य उल्लंघनों के बीच अंतर करना चाहिए था।
डीएलएफ फेज-5 से ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) निवासियों को बेदखल करने के लिए डीएलएफ लिमिटेड द्वारा किए गए प्रॉक्सी मुकदमेबाजी के आरोपों की व्यापक निर्देश जारी करने से पहले जाँच की जानी चाहिए थी, जिसका उन पर असंगत प्रभाव पड़ा।
यथास्थिति बनाए रखने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश ने प्रभावित निवासियों को अस्थायी राहत प्रदान की है। आगे की कार्यवाही गुरुग्राम के डीएलएफ सिटी में अनधिकृत निर्माणों के संबंध में भविष्य की कार्रवाई का निर्धारण करेगी।