अमेरिका के 47 वें राष्ट्रपति पद की शपथ लेते ही डोनाल्ड ट्रंप ने 100 से अधिक बड़े फैसले लेकर दुनिया भर में तहलका मचा दिया है.उनके ताबड़तोड़ फसलों का असर दुनिया में दिखाई देने लगा है. डोनाल्ड ट्रंप ने एक करोड़ अवैध प्रवासियों को उनके देश वापस भेजने का ऐलान किया है.उन्होंने कहा कि अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा डिपोर्ट अभियान चलाएगा. डोनाल्ड ट्रंप ने जो बाइडेन सरकार के 78 फैसलों को उलट दिया है.
ट्रंप ने सबसे पहले इमिग्रेशन पॉलिसी को लेकर दुनिया को चौंकाने वाला ऐलान किया है.उन्होंने देश में घुसपैठ को रोकने के लिए मेक्सिको बॉर्डर पर नेशनल इमरजेंसी लगाने का ऐलान करके सबको हैरान कर दिया.
डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह से अपने देश के अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए अभियान चलाने की घोषणा की है उसका असर भारत में भी देखने को मिलेगा.भारत में भी यह मांग जोर पकड़ेगी कि देश में रह रहे अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं को बाहर किया जाए. सै$फ अली ख़ान के घर हुए हमले के बाद मुंबई में यह मामला जोर शोर से उठ रहा है. दरअसल राजनीतिक रूप से अवैध घुसपैठ मुद्दा बने या ना बने लेकिन देश की आंतरिक सुरक्षा और आर्थिक दृष्टि से यह बड़ा मुद्दा है. इस मामले में केंद्र और राज्य सरकारों को कठोर कदम उठाने होंगे. खासतौर पर बांग्लादेशी घुसपैठिए देश की कानून और व्यवस्था के लिए समस्या बनते जा रहे हैं.बांग्लादेश से केवल बंगाल के रास्ते ही घुसपैठ नहीं होती. घुसपैठ के रास्ते त्रिपुरा, असम और मेघालय भी हैं. चिंताजनक केवल यह नहीं है कि बांग्लादेश से घुसपैठ करने वाले फर्जी नाम और पहचान पत्र हासिल कर देश के विभिन्न हिस्सों में और यहां तक कि बंगाल और असम से दूर दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, हैदराबाद तक में अपना ठिकाना बना लेते हैं, बल्कि यह भी है कि उनकी पहचान और पकड़ मुश्किल से हो पाती है. इससे भी मुश्किल होता है उन्हें वापस भेजना. एक समस्या यह भी है कि ज्यादातर राजनीतिक दल और उनकी राज्य सरकारें अवैध तरीके से बांग्लादेश से आए लोगों को निकालने की कभी चिंता नहीं करतीं.उलटे वे हर ऐसी कोशिश का विरोध करती हैं. वैसे केंद्र सरकार सहित जितनी भी अन्य सरकारें घुसपैठ की विरोधी हैं वो भी घुसपैठ की समस्या को लेकर कुछ ज्यादा नहीं कर पा रही है. दरअसल,दिल्ली से लेकर मुंबई तक ऐसे अभियान कई बार चलाए गए, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही रहा. ऐसा नतीजा इसलिए रहा, क्योंकि अवैध बांग्लादेशियों को निकालना न तो राष्ट्रीय प्रतिबद्धता बन पाया और न ही राष्ट्रहित का विषय.
1998 में जब केंद्र में वाजपेयी सरकार थी और महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा की तो महाराष्ट्र पुलिस ने अवैध बांग्लादेशियों को निकालने का अभियान छेड़ा था.इस अभियान पर बंगाल की वाम मोर्चा सरकार ने यह कहते हुए आसमान सिर पर उठा लिया था कि बांग्लादेशियों के नाम पर बंगाल के लोगों को मुंबई से बाहर किया जा रहा है. साफ है कि बांग्लादेश से घुसपैठ केवल सामाजिक ताने-बाने को ही छिन्न-भिन्न करने वाली नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरे में डालने वाली है.इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि भाजपा सरकारों की ओर से प्राय: यह कहा जाता है कि वे अवैध बांग्लादेशियों को निकालने का अभियान चलाएंगी, क्योंकि अभी तक तो ऐसा कोई अभियान कायदे से चला ही नहीं.
आधे-अधूरे मन से ऐसा अभियान चलाने का नतीजा यह होता है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के साथ उनकी घुसपैठ कराने और उन्हें फर्जी पहचान पत्रों से लैस करने वालों का दुस्साहस बढ़ता है. वे पहले से ज्यादा संगठित और सतर्क होकर यह काम करते हैं.इसका मतलब है कि वह तंत्र कहीं मजबूत है, जो घुसपैठियों को लाने, उन्हें छिपाने और काम देने का कार्य कर रहा है. कुल मिलाकर अवैध घुसपैठ एक गंभीर समस्या है जिसे हल करने के लिए व्यापक और ठोस कदम उठाने होंगे.