जनप्रतिनिधियों का जैसा व्यवहार और तौर तरीके दिख रहे हैं, उनसे ऐसा लगता है कि ये हमारे जनप्रतिनिधि हैं या माफिया ? इंदौर के दो पार्षदों के बीच हाल ही में जो कुछ हुआ वो पूरे शहर को शर्मसार करने वाला है. एक समय था जब इंदौर के महापौर लक्ष्मण सिंह चौहान और चांदमल गुप्ता साइकिल से चलते थे. ऐसी ही स्थिति सांसद होमी दाजी, राम सिंह भाई वर्मा, विधायक गंगाराम तिवारी, वीवी द्रविड़ जैसे नेताओं की थी, लेकिन अब यह स्थिति है कि एक पार्षद साल भर के भीतर महंगी कारों में घूमता है और आलीशान मकान बना लेता है. जाहिर है राजनीतिक पार्टियों के नेता और जनप्रतिनिधि माफिया और गुंडों का झुंड बनते जा रहे हैं. इस मामले में सभी राजनीतिक दलों को सोचना होगा. अन्यथा इंदौर में जो कुछ हाल ही में घटित हुआ, वैसा हमेशा होता रहेगा. जनप्रतिनिधियों का काम जनता की समस्याओं को सदन में उठाना और उन्हें हल करवाना होता है. इस मामले में पार्षद और सरपंच जैसे बुनियादी संस्थाओं के जनप्रतिनिधियों की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि आम जनता से जुड़ी समस्याएं जैसे पेयजल उपलब्धता, नाली, ड्रेनेज कचरा इत्यादि की समस्याएं पार्षदों या सरपंच के पास की आती हैं. दुर्भाग्य से ये जनप्रतिनिधि अपने कर्तव्यों को भूल गए हैं. इनका काम खुद के घर भरना रह गया है. स्थानीय संस्थाओं की यह स्थिति है कि उसके निर्वाचित जनप्रतिनिधि नक्शे पास करने, अतिक्रमण करवाने, ठेके, परमिट इत्यादि देने में व्यस्त रहते हैं. बहरहाल,कुछ साल पहले तक यह स्थिति थी कि नेता गण अपनी राजनीति को चमकाने के लिए गुंडों को पालते थे. अब स्थिति है कि गुंडे नेताओं को पालते हैं और उन्हें प्रमोट करते हैं. बड़े शहरों में तो अनेक गुंडों ने नेताओं का चोला पहन लिया है. हाल ही में जो विवाद सामने आया है. उसमें प्रमुख आरोपी पार्षद जीतू यादव हिस्ट्री शीटर हैं. साफ है जिन लोगों को जेल में होना चाहिए वो न केवल पार्षद बल्कि महापौर परिषद के सदस्य तक बन बैठे हैं. यह अवस्था बहुत गंभीर और चिंताजनक है. इंदौर जैसे शहर में जहां साक्षरता का प्रतिशत पूरे प्रदेश के अनुपात में बहुत ऊंचा है, वहां इस तरह के जनप्रतिनिधि न केवल चुनाव जीतते हैं, बल्कि शहर के भाग्य विधाता बन जाते हैं. इस स्थिति को सुधारने की जरूरत है. इसके लिए सभी राजनीतिक दलों को गंभीरता पूर्वक विचार करना होगा. टिकट वितरण करते समय ही अपराधिक रिकॉर्ड देखकर उम्मीदवारी दी जानी चाहिए.दरअसल, केंद्रीय और प्रदेश निर्वाचन आयोगों के पास इतनी शक्तियां होनी चाहिए कि वो गंभीर किस्म के अपराधों के आरोपियों को चुनाव लडऩे से रोक सके.जाहिर है देश को चुनाव सुधारों की जरूरत है. इंदौर के मामले में विचार करें तो जब मीडिया में खूब हंगामा हुआ. घटना के वीडियो वायरल हुए, तब पुलिस हरकत में आई. दरअसल पुलिस पर इतना राजनीतिक दबाव होता है कि वो निष्पक्ष तरीके से काम ही नहीं कर पाती. राजनीतिक दलों के नेता , खिलाडिय़ों और अभिनेताओं की तरह युवाओं के आदर्श यानी आइकन होते हैं. जब इस तरह के जनप्रतिनिधि और नेता सामने आते हैं तो युवाओं के समक्ष खराब उदाहरण प्रस्तुत होता है. जाहिर है जिन नेताओं को समाज का नेतृत्व करना चाहिए वो समाज के लिए नासूर और बोझ बने हुए हैं.यह स्थिति अत्यंत खतरनाक है. इंदौर के घटनाक्रम को बेहद गंभीरता से लेने की जरूरत है. भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हो यह सुनिश्चित करना शासन और प्रशासन के साथ-साथ राजनीतिक दलों का भी काम है. राजनीतिक दल इस तरह की घटनाओं की जिम्मेदारी लेने से बच नहीं सकते. जनता को भी मतदान करते समय सोच विचार कर अपने मत का उपयोग करना चाहिए नहीं तो समाज में जीतू यादव जैसे खलनायक नेता के चोले में सामने आते रहेंगे.