खंडवा: गुड़ी रेंज के आमाखजूरी में 40 जेसीबी 500 पुलिस व वनकर्मियों के बंदूकधारी अमले को गोफन और पत्थरों से आदिवासियों ने खदेड़ दिया। कई कर्मचारी घायल हो गए हैं ।इससे पहले एसपी और कलेक्टर इन वन अतिक्रमणकारियों को रोकने लाव-लश्कर के साथ जंगलों में पहुंचे थे। आदिवासियों ने दूसरे दिन भारी भरकम इंतजाम को भी अंगूठा दिखा दिया। कलेक्टर , एसपी और डीएफओ तथा उनके अमले पर भारी आदिवासी रहे। जंगल में आदिवासियों की पत्थर बाजी से एक डिप्टी रेंजर का सर फूट गया। कुछ अन्य लोगों के घायल होने की सूचना है। कईयों को प्राथमिक उपचार के बाद छोड़ दिया।
आदिवासियों का हल्ला बोलते ही 40 से ज्यादा जेसीबी और वर्दी पहने कर्मचारी भी भाग खड़े हुए। कई जेसीबी के कांच भी फोड़ दिए।40 साल से बड़वानी और खरगोन के आदिवासी बेशकीमती सागौन काट रहे हैं। अभी तक विभागों ने कोई ध्यान नहीं दिया। जंगल साफ करने के बाद खेत बना लिए हैं। वे मतदाता बन गए हैं। अब उनमें लगी चने की फसल रौंदने प्रशासन की यह टीम गई थी। 3 महीने से प्लानिंग करने के बाद इस स्थिति में ये अफसर पहुंचे थे। एक ही रात में आदिवासियों के पत्थरों ने उनकी योजना चौपट कर दी।
पत्थरों से हार गई पिस्टल!
सवाल यह उठता है कि बंदूकें कैसे पत्थरों से हार गईं? अफसर के दिमाग झनझना जाना चाहिए। आदिवासियों के पास कोई कानून नहीं है। राजनीतिक संरक्षण और वोट का लालच यह स्थिति पनपा रहा है। कर्मचारी और अधिकारियों को अधिकार नहीं दिए गए हैं। बंदूके दे दी हैं।
बंदूक है, अधिकार नहीं
यदि किसी के हाथ वन संरक्षण में कोई आदिवासी मारा जाता है, तो मर्डर का केस वनकर्मी को झेलना पड़ता है। ऐसी स्थिति में निहत्थे कर्मचारी जंगल में कैसे जंगलों की सुरक्षा कर सकते हैं? 500 का अमला कुछ नहीं कर पाया, तो दो नाकेदार कैसे वन का कटाव रोक सकेंगे ?
यहां भी अनियमितताएं
पर्यावरण को बड़ा नुकसान हो चुका है। सरकार को यहां बड़ी और ठोस प्लानिंग की जरूर है। यहां मजबूत तरीके से सागौन के पौधारोपण और इनके संरक्षण की जरूरत है। वन विभाग को भारी बजट इसके लिए दिया भी जाता है, लेकिन 10% राशि भी खर्चा नहीं होती।