परिवहन विभाग के हेड कांस्टेबल रहे सौरव शर्मा के यहां जिस तरह से करोड़ों रुपए की संपत्ति और सोना बरामद हो रहा है वो न केवल चिंता जनक या शर्मनाक है बल्कि बेहद डरावना है. इससे पता चलता है कि हमारा सिस्टम कितना भ्रष्ट है. प्रदेश में सिर्फ परिवहन विभाग ही नहीं खनिज,वन, पुलिस, शिक्षा, स्वास्थ्य, लोक निर्माण, जल संसाधन, नगर नियोजन, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी ऐसे विभाग हैं जहां के छोटे कर्मचारी भी लाखों में खेलते हैं. राजस्व विभाग के पटवारी की स्थिति यह है कि कोई भी पटवारी करोड़ से कम की हैसियत नहीं रखता. आम आदमी तो छोडि़ए यदि किसी अन्य विभाग के सरकारी कर्मचारियों को भी पटवारी से काम करवाना हो तो रिश्वत देनी पड़ती है. जाहिर है हमारा सरकारी तंत्र पूरी तरह से सड़ चुका है. इसमें आमूल चूल बदलाव की जरूरत है. प्रदेश में ऐसा एक सौरव शर्मा नहीं बल्कि हजारों सौरव शर्मा हैं. फर्क इतना है कि उन पर अभी तक कार्रवाई नहीं हुई है. पिछले दिनों जब नर्सिंग भर्ती घोटाले की जांच हुई तो पता चला कि जांच का जिम्मा जिस सीबीआई उप अधीक्षक को दिया गया था वो खुद ही भ्रष्टाचार का रैकेट चला रहा था. ऐसे में आम आदमी करे तो क्या करें. भारत के पिछड़ेपन का एक बहुत बड़ा कारण भ्रष्टाचार है. भ्रष्टाचार की दीमक ने समूचे तंत्र को लगभग नष्ट कर दिया है. मध्य प्रदेश में जिस तरह से रेत और खनन माफिया, वन कटाई माफिया, भू माफिया, खाद्य पदार्थों में मिलावट खोरी का माफिया बेखौफ सक्रिय हैं, उससे हमारे सिस्टम पर सवालिया निशान लगते हैं. स्थिति यह है कि कोई भी सरकारी निर्माण कार्य समय पर पूरा नहीं होता. निर्माण कार्य में विलंब का एक कारण भ्रष्टाचार है, क्योंकि अधिकारी बिना कमीशन लिए ठेकेदारों को पैसा नहीं देते. ठेकेदार यदि कमीशन दे देता है तो उसे घटिया निर्माण सामग्री के उपयोग की छूट मिल जाती है. बिहार में घटिया निर्माण के चलते पिछले दो वर्षों में 18 बड़े ब्रिज ढह गए हैं. यदि आप रिश्वत देने की तैयारी रखते हैं तो आप सरकारी जमीन पर भी अतिक्रमण कर सकते हैं.एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में कम से कम 10 लाख एकड़ सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण है. क्या यह अतिक्रमण बिना अधिकारियों को पैसे दिए संभव थे ? कहा जाता है कि 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद देश में कोटा परमिट राज समाप्त हो गया. दरअसल, आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया इतनी धीमी है कि इसका लाभ अफसर शाही को मिल रहा है. देश में पूंजी निवेश को लेकर भी यही समस्या है. एक उद्योग लगाने में इतने तरह के एनओसी यानी अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना पड़ते हैं कि परेशान होकर कई बार उद्योगपति पूंजी निवेश से हाथ पीछे खींच लेते हैं. अनेक सरकारों ने दावे किए कि पूंजी निवेश के लिए सिंगल विंडो सिस्टम लागू होगा लेकिन अधिकारी वर्ग इसे लागू ही नहीं होने देता. बहरहाल,परिवहन विभाग के एक पूर्व कांस्टेबल के यहां मिली अकूत संपत्ति से जाहिर होता है कि इस विभाग में कितना भ्रष्टाचार है. दरअसल अब समय आ गया है जब आरटीओ कार्यालय को समाप्त कर उनके स्थान पर लाइसेंस इत्यादि देने की व्यवस्था ऑनलाइन की जाए. आर्थिक विशेषज्ञ मानते हैं कि देश में जितना डिजिटाइजेशन होगा, सरकारी पारदर्शिता उतनी बढ़ेगी. आरटीओ और टोल नाको के विकल्प ढूंढऩे होंगे तभी भ्रष्टाचार पर नकेल कसी जा सकेगी. भ्रष्टाचार हमेशा ऊपर से नीचे ही समाप्त होता है. सरकार जितनी पारदर्शी होगी, भ्रष्टाचार उतना कम होगा. जनता के प्रति अधिकारियों की जवाबदेही जितनी अधिक होगी उतनी संवेदनशीलता सरकारी कामकाज में आएगी. जब तक भ्रष्टाचार पर सख्ती नहीं की जाएगी और इसे काबू में नहीं लाया जाएगा तब तक सुशासन की अवधारणा फलीभूत नहीं हो सकती. बहरहाल,भ्रष्ट पूर्व कांस्टेबल सौरभ शर्मा के बारे में कहा जा रहा है कि वो दुबई भाग गया है. दुबई के साथ हमारी प्रत्यावर्तन संधि है. इसलिए उसे वापस लाने में अधिक परेशानी नहीं होगी. ऐसे भ्रष्ट सरकारी कर्मियों पर कठोर से कठोर कार्रवाई त्वरित गति से होना जरूरी है. तभी जनता का विश्वास सरकारी तंत्र पर बहाल होगा.