श्रीनगर, 08 दिसंबर (वार्ता) जम्मू-कश्मीर में अपनी पार्टी के अध्यक्ष अल्ताफ बुखारी ने रविवार को टेक्सटाइल्स पर प्रस्तावित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में 28 प्रतिशत तक की वृद्धि पर चिंता व्यक्त की और कहा कि इससे कश्मीरी शॉल के पारंपरिक उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
श्री बुखारी ने आज यहां एक बयान में कहा, ‘इस भारी वृद्धि से कश्मीरी शॉल, क्रूएल और अन्य पारंपरिक वस्त्रों के पारंपरिक उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।’
मंत्रियों के समूह (जीओएम) ने अपनी हालिया बैठक में वस्त्रों पर जीएसटी में वृद्धि का प्रस्ताव रखा था और 21 दिसंबर को होने वाली परिषद की 55वीं बैठक के दौरान इस पर विचार किया जाना है।
उन्होंने कहा, ‘यदि वस्त्रों पर 28 प्रतिशत तक की प्रस्तावित जीएसटी वृद्धि लागू की जाती है तो इससे गरीब कारीगरों, खासकर कश्मीर घाटी में शॉल, क्रूवेल और अन्य पारंपरिक वस्त्रों की बुनाई करने वाले कारीगरों की आजीविका पर गंभीर असर पड़ेगा।
उन्होंने केंद्र सरकार से कारीगर समुदाय के व्यापक हित में इस प्रस्ताव को मंजूरी न देने का आग्रह किया।
श्री बुखारी ने दावा किया कि उन्हें कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (केसीसीआई) से एक ज्ञापन मिला है जिसमें उनसे केंद्र सरकार के समक्ष इस मामले को उठाने का आग्रह किया गया है।
केसीसीआई ने अपने ज्ञापन में कहा कि जीओएम ने वस्त्रों पर जीएसटी दर में उल्लेखनीय वृद्धि का प्रस्ताव दिया है और 1,500 रुपये से 10,000 रुपये के बीच की कीमत वाली वस्तुओं पर 18 प्रतिशत कर लगाया जाएगा जबकि 10,000 रुपये से अधिक कीमत वाले वस्त्र 28 प्रतिशत के उच्चतम जीएसटी स्लैब के अंतर्गत आएंगे।
केसीसीआई ने कहा है कि इस बढ़ोतरी से न केवल वित्तीय बोझ बढ़ेगा बल्कि पहले से ही कमजोर आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र को भी भारी नुकसान पहुंचेगा।
प्रतिष्ठित व्यापारिक संगठन ने कहा कि कश्मीर के पारंपरिक कपड़ा उत्पाद 2.5 लाख से अधिक कारीगरों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करते हैं जिनमें से कई महिलाएं और समुदायों के लोग हैं।
केसीसीआई ने कहा है, ‘अगर जीएसटी दर में वृद्धि की जाती है तो उत्पाद की कीमत में होने वाली वृद्धि से ये सामान घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह के उपभोक्ताओं के एक बड़े वर्ग के लिए अप्राप्य हो जाएंगे’ और ‘इससे मांग में भारी कमी आएगी, जिसका सीधा असर उत्पादन और बिक्री पर पड़ेगा।’
केसीसीआई के ज्ञापन में लिखा है, ‘उद्योग में आने वाली मंदी कई कारीगरों को बेरोजगारी में धकेल देगी जिससे इस क्षेत्र को बढ़ावा देने और बनाए रखने के वर्षों के प्रयास कमजोर पड़ जाएंगे।’