मुनिश्री दर्शन सागर जी महाराज हुए ब्रह्मलीन, शोक में डूबा जैन समाज

सुबह 9 बजे नगर में डोल निकाल देगें अंतिम बिदाई, मुनि अवस्था के 47 वर्षो में 25 चातुर्मास कर सुसनेरवासियों को दिया धर्म का ज्ञान,दिखाई सही राह

 

सुसनेर, 1 दिसंबर. मुनिश्री दर्शनसागर महाराज ब्रह्मलीन हो गए हैं. जैन मुनि ने आज शाम 5 बजकर 05 बजे समाधि देह त्याग दी. उज्जैन झालावाड राष्ट्रीय राजमार्ग पर सुसनेर में स्थित त्रिमूर्ति मंदिर पर उन्होंने अंतिम सांस ली. मुनिश्री के देह त्यागने से नगर एवं आसपास के क्षेत्रों में शोक की लहर है. मुनिश्री पिछले कुछ समय से अस्वस्थ थे. पिछले 8 दिन से उन्होंने अन्न जल त्याग दिया था. आचार्य अंतिम सांस तक चैतन्य अवस्था में रहे और मंत्रोच्चार करते हुए उन्होंने देह का त्याग किया.

समाधि की सूचना पर सुसनेर एवं आसपास जैन समाज और मुनिश्री के भक्तों ने उनके सम्मान में अपने प्रतिष्ठान बंद कर दिए. सूचना मिलते ही पूर्व आचार्यश्री के हजारों शिष्य सुसनेर के लिए रवाना हो गए है. आज सोमवार को सुबह 9 बजे त्रिमूर्ति मंदिर जी से मुनिश्री की डोल निकाली जाएगी जो नगर के प्रमुख मार्गो से होते हुए पुन: मंदिर जी पहुंचेगी जहां पर उनकी अंतिम क्रियाएं की जाएगी. आचार्य श्री निर्मल सागर जी महाराज से 52 साल पहले 23 साल के सुरेद्र कुमार जैन अब के जैन मुनि दर्शन सागर जी महाराज जिन्हें आचार्य श्री ने 21 फरवरी 1972 को तिजारा में सप्तम प्रतिमा के नियम ग्रहण करवाना. 9 अप्रैल 1972 को बंदू राजस्थान श्रुल्लक दीक्षा ग्रहण कर श्रुल्लक श्री 105 चंद्रसागर जी महाराज इनका नाम रखा गया. वर्ष 1972 में मुनि दीक्षा बंदू में हुई. मुनिश्री को मत्यु के 3 दिन पहले अपनी जिंदगी के बारे में अहसास होने लगा तो मुनिश्री प्रज्ञा सागर जी महाराज से दोबारा मुनि दीक्षा धारण की तथा नवकार के उचारण के साथ मुनि दीक्षा धारण करने के बाद रविवार की शाम 5 बजकर 5 मिनिट पर अपना देह त्याग दिया. देह त्यागने से पूर्व अपने जीवन की सभी वस्तुओं को छोडक़र व्रत संलेखना ले ली. समाधि के बाद उनकी अंतिम यात्रा पूरे शहर में आज निकाली जाएगी. पूर्व आचार्यश्री का जन्म अगस्त 1948 को दिल्ली में हुआ था. 11 फरवरी 1984 आचार्य सुमति सागर जी महाराज ने उनकी कठोर तपस्या को देखते हुए उन्हें अपना आचार्य पद सौंपा था. 23 साल की उम्र में घर, परिवार छोड़ उन्होंने दीक्षा ली थी. दीक्षा के पहले भी उनका नाम सुरेंद्र कुमार था. उन्होंने अपने संन्यास जीवन के लिए बहुत कठिन नियम बनाए थे. पानी भी दिन में सिर्फ एक बार अपनी अंजुलि से भर कर पीते थे. वे बहुत ही सीमित मात्रा में सादी दाल और रोटी खाने में लेते थे. उन्होंने पैदल ही पूरे देश में विहार किया.

मुनि श्री ने दी कई दीक्षाएं

पूर्व आचार्य श्री ने अपने दीक्षाकाल में कुल 7 मुनि दीक्षाएं दी है. जिसमें उपाध्याय मुनिश्री समता सागर जी महाराज, मुनिश्री श्रुत सागर जी महाराज, मुनि श्री शिवसागर जी महाराज, मुनिश्री कुलभूषण जी महाराज, मुनिश्री कल्पवृक्ष नंदी जी महाराज, मुनिश्री मार्दव सागर जी महाराज शामिल है.

 

मुनिश्री के कई चमत्कार देखे समाजजनों ने

 

1992 में सनावद में चातुर्मास के दौरान पानी का संकट खडा होने पर इनके चरणोदक को सुखे कुएं में डाला गया तो कुआं पानी से लबालब हो गया. सुसनेर में वर्ष 1990 में कल्पधुम मंडल विधान के दौरान आई विपत्ती को मुनिश्री ने एक पल में हटा दिया. ऐसे कई उदाहरण है.

 

मुनिश्री के पास है कई उपाधियां…

 

पूर्व आचार्य को आचार्य श्री 108 सुमति सागर जी महाराज ने आचार्य श्री निर्मल सागर जी महाराज की आज्ञा से आगरा पंचकल्याणक में आचार्य पद से विभूषित किया था. दिल्ली चातुर्मास के दौरान यहां के ग्रहमंत्री एचएल भगत जी की अध्यक्षता पंचकल्याणक में इन्होंने आचार्य श्री को चारित्र चुरामणी की उपाधी दी.

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