यौन उत्पीड़न के मामले में डॉ काली चरण को राहत

हाईकोर्ट ने निरस्त किया निलंबन का आदेश, मैनिट का मामला

जबलपुर। यौन उत्पीड़न के मामले में मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान भोपाल से बर्खास्त किये गये सहायक प्रोफेसर को हाईकोर्ट से राहत मिली है। हाईकोर्ट जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि कार्यवाही में प्राकृतिक न्याय सिद्धांत तथा जांच प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। एकलपीठ ने सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता को राहत प्रदान करते हुए बर्खास्तगी के आदेश को निरस्त कर दिया है।

याचिकाकर्ता डॉ कालीचरण की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि उनके संस्थान के वरिष्ठ सदस्य डॉ सी ससिकुमार से मतभेद थे। उन्होने प्रयोगशाला व उपकरणों पर बलपूर्वक कब्जा कर रखा था। जिसके कारण वह विद्यार्थियों को शोध के लिए प्रयोग नहीं कर पा रहे थे। उनके खिलाफ साजिश के तहत डॉ सी ससि कुमार ने शिकायत करवाई। शिकायतकर्ता छात्र अपनी शिकायत से मुकर गये थे। इसके बाद दो छात्राओं से उनके खिलाफ शिकायत करवाई गयी। जिसकी जांच डॉ शिवकुमार ने अपनी महिला मित्र को सौंप दी, जो आईसीसी की सदस्य नहीं थी। डॉ फौजिया ने छात्राओं के साथ से साथ जाकर आईसीसी की चेयरमैन से मुलाकात की। आईसीसी की चेयरमैन ने उनके खिलाफ जांच का आश्वासन दिया था।

याचिका में कहा गया था कि कार्यस्थल पर महिला के यौन उत्पीड़न अधिनियम के तहत प्राप्त शिकायत पर आईसीसी के तीन सदस्यों को सुनवाई करनी थी, जिसका पालन नहीं किया गया। इसके बाद बैठक आयोजित कर उनके खिलाफ कार्यवाही का निर्णय लिया गया। बैठक में डॉ फौजिया बिना अधिकार के बैठक में शामिल हुई थी। इसके बाद उन्हें कार्यवाही के संबंध में नोटिस जारी करते हुए उसी दिन चार बजे तक जवाब पेश करने का समय दिया गया। जवाब निर्धारित प्रारूप में नहीं होने का हवाला देते हुए उसे अस्वीकार कर दिया। सिर्फ चार घंटे का समय निर्धारित प्रारूप में जवाब प्रस्तुत करने दिया गया, जबकि वह परीक्षा में व्यस्त था। याचिका में कहा गया था कि पूरी जांच में प्राकृतिक सिद्धांत तथा एक्ट 1965 के नियम 14 का पालन नहीं करते हुए उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। जिसके खिलाफ उन्होंने आवेदन प्रस्तुत किया, जो खारिज कर दिया गया।

एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि दो शिकायतकर्ता ऑनलाइन समिति के समक्ष उपस्थित हुए थी। उन्होने अपने बयान ई-मेल के माध्यम से भेजे थे। याचिकाकर्ता को उनके प्रतिपरीक्षण का कोई अवसर प्रदान नहीं किया गया। कार्यवाही में प्राकृतिक न्याय सिद्धांत तथा नियम 14 का पालन नहीं किया गया। एकलपीठ ने उक्त आदेश के साथ याचिकाकर्ता के खिलाफ जारी आदेश को निरस्त कर दिया। याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता मनोज शर्मा ने पैरवी की।

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