सियासत
लाख कोशिशों के बावजूद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ना तो गुटबाजी को कम कर पा रहे हैं और न ही कांग्रेस में मची भगदड़ को रोक पा रहे हैं। कांग्रेस को खास तौर पर मालवा और निमाड़ अंचल में गुटबाजी का सामना करना पड़ रहा है। मालवा अंचल यानी उज्जैन संभाग की बात करें तो मंदसौर लोकसभा सीट पर मीनाक्षी नटराजन दिलीप गुर्जर के लिए पूरी तरह से मैदान में आई नहीं हैं। 2009 में सांसद चुनी गई मीनाक्षी नटराजन का फोकस राहुल गांधी की वायनाड सीट पर ज्यादा है। वहां वे समन्वय का काम देख रही हैं। मीनाक्षी नटराजन लंबे समय से राहुल गांधी के राजनीतिक सचिवालय से जुड़ी हैं। उज्जैन की सीट पर भी दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के समर्थक एक दूसरे के खिलाफ बयान बाजी कर रहे हैं। यही स्थिति देवास शाजापुर सीट पर है। यहां पूर्व केंद्रीय मंत्री राधा किशन मालवीय के पुत्र राजेंद्र मालवीय को टिकट दिया गया है जिन्हें सज्जन सिंह वर्मा का समर्थन नहीं मिल रहा है।
सज्जन सिंह वर्मा ने इस सीट पर अभी तक केवल औपचारिकता निभाई है। जबकि वे यहां 2009 में सांसद रह चुके हैं। यही स्थिति निमाड़ अंचल की है। खरगोन और खंडवा लोकसभा सीट पर कांग्रेस विभाजित है। एक तरफ रवि जोशी और विजयलक्ष्मी साधो तथा बाला बच्चन हैं तो दूसरी तरफ अरुण यादव। धार में भी राधेश्याम मुवेल को सुरेंद्र सिंह हनी बघेल, पाचीलाल मेढा,बालमुकुंद सिंह गौतम जैसे नेताओं का समर्थन नहीं मिल रहा है। झाबुआ में कांतिलाल भूरिया और उनके पुत्र विक्रांत भूरिया के खिलाफ जेवियर मेढा और स्वर्गीय वेस्ता पटेल का परिवार मुखालफत कर रहा है। दूसरी और भाजपा की आक्रामक रणनीति के कारण भी कांग्रेस परेशान है। दरअसल,मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद हताश कांग्रेस को भाजपा संभलने का मौका भी नहीं दे रही है। पूर्व विधायक, महापौर, जिला व जनपद पंचायत के अध्यक्ष से लेकर बड़ी संख्या में पार्टी पदाधिकारियों को भाजपा की सदस्यता दिलाई जा चुकी है।
विधानसभा चुनाव के दौरान जो लोग बड़ी आशा के साथ अन्य दलों से कांग्रेस में आए थे, वे भी पार्टी की स्थिति देखकर घर वापसी कर रहे हैं। मध्य प्रदेश कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन के बाद पार्टी कमजोर होती जा रही है। कमल नाथ को हटाकर जीतू पटवारी को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया है, लेकिन पार्टी में गुटबाजी इस कदर हावी है कि कोई भी वरिष्ठ नेता, प्रदेश के युवा नेतृत्व को स्वीकार नहीं कर रहा है। नेता अपने- अपने गुटों में बंटकर रह गए हैं। दरअसल,कांग्रेस दिशाहीन हो गई है। कांग्रेस में लोकहित की नहीं बल्कि परिवार के हितों को ध्यान में रखकर राजनीति की जाती है। छिंदवाड़ा में कमल नाथ का पुत्र मोह ऐसा है कि उन्हें जनता की चिंता ही नहीं, वे अपने पुत्र नकुल नाथ का राजनीतिक भविष्य संवारने में लगे हैं। यही स्थिति दिग्विजय सिंह की है।