पांच और दो में मुकाबला कैसे होगा

तीन दशकों से कांग्रेस को जीत का इंतजार
विदिशा संसदीय क्षेत्र का अतीत

संतोष शर्मा
विदिशा: विदिशा संसदीय क्षेत्र में तीन दशक से भी अधिक समय से लगातार बीजेपी जीत दर्ज करती आ रही है जिसके चलते कांग्रेस इस क्षेत्र में लंबे अरसे से जीत के लिए तरस गई है। दोनों दल के प्रत्याशियों में पांच- दो मुकाबला है। पूर्व सीएम शिवराज पांच बार तो प्रताप भानु शर्मा दो बार यहां से सांसद चुने गए हैं। वर्ष 1984 में कांग्रेस ने इस क्षेत्र में अंतिम बार जीत दर्ज की थी। तब से लेकर अब तक कांग्रेस का कोई भी प्रत्याशी यहां जीत दर्ज नहीं कर सका और भाजपा का परचम लहराता रहा।इस बार वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने विदिशा संसदीय क्षेत्र से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। वहीं, कांग्रेस ने पूर्व सांसद प्रताप भानु शर्मा को अपना प्रत्याशी बनाया है। दोनों ही नेता अपनी अपनी पार्टी के बड़े कद के नेता हैं। पूर्व सांसद प्रताप भानु शर्मा विदिशा संसदीय क्षेत्र से पूर्व में दो बार संसदीय चुनाव जीत चुके हैं तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी विदिशा संसदीय क्षेत्र से लगातार पांच चुनाव जीतकर अपना परचम लहरा चुके हैं।

वर्ष 1980 के चुनाव में प्रताप भानु शर्मा विदिशा संसदीय क्षेत्र से पहली बार कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े जिनका मुकाबला जनता पार्टी के प्रत्याशी राघव जी भाई से हुआ। इस चुनाव में प्रताप भानु शर्मा ने राघवजी भाई को पराजित किया। इसके उपरांत वर्ष 1984 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी प्रताप भानु शर्मा का पुन: भाजपा प्रत्याशी राघव जी भाई से मुकाबला हुआ। इस चुनाव में भी राघव जी को पराजय झेलना पड़ी लेकिन वर्ष 1989 के चुनाव में जब लगातार तीसरी बार राघव जी भाई और प्रताप भानु शर्मा के मध्य मुकाबला हुआ तो इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राघव जी भाई विजयी हुए और शर्मा को हर झेलना पड़ी।

वर्ष 1991 के चुनाव में भाजपा ने अपने राष्ट्रीय नेता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई को यहां से चुनावी मैदान में उतारा जिनका सामना कांग्रेस प्रत्याशी प्रताप भानु शर्मा से हुआ। इस चुनाव में अटल बिहारी वाजपेई विजयी हुए। दरअसल, श्री वाजपेई विदिशा के साथ ही लखनऊ संसदीय क्षेत्र से भी निर्वाचित हुए थे जिसके चलते श्री वाजपेई ने विदिशा संसदीय क्षेत्र से त्यागपत्र दे दिया। रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए विदिशा संसदीय सीट पर 6 माह बाद नवंबर 1991 में उपचुनाव हुआ जिसमें बुधनी से विधायक शिवराज सिंह चौहान पहली बार विदिशा संसदीय क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े जिनका मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी प्रताप भानु शर्मा से हुआ। इस चुनाव में शिवराज सिंह चौहान विजयी हुए।

इस चुनाव के बाद शिवराज सिंह ने आगे के चार और चुनाव भी जीते तथा लगातार पांच चुनाव जीतकर उन्होंने विदिशा संसदीय सीट पर इतिहास रच दिया और वह इस क्षेत्र पर छा गए। शिवराज सिंह चौहान ने वर्ष 1996 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी हृदय मोहन जैन को परास्त किया। वहीं, 1998 के चुनाव में श्री चौहान ने कांग्रेस के आशुतोष दयाल शर्मा को पराजित किया। इसके उपरांत 1999 के चुनाव में शिवराज सिंह ने कांग्रेस के प्रत्याशी जसवंत सिंह रघुवंशी को पराजित किया। 2004 के चुनाव में श्री चौहान ने कांग्रेस प्रत्याशी नर्बदा प्रसाद शर्मा को पराजित किया। इस तरह श्री चौहान विदिशा संसदीय क्षेत्र से पूर्व में लगातार पांच बार चुनाव जीत चुके हैं। दिसंबर 2005 में जब विदिशा सांसद शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने विदिशा संसदीय सीट से त्यागपत्र दे दिया जिसके फल स्वरुप इस क्षेत्र में दूसरा उपचुनाव हुआ जिसमें भाजपा प्रत्याशी रामपाल सिंह राजपूत ने कांग्रेस प्रत्याशी राजश्री सिंह को पराजित किया।

33 साल बाद फिर आमने-सामने
वर्ष 1991 में विदिशा संसदीय सीट पर उपचुनाव की स्थिति अटल जी द्वारा सीट खाली करने के कारण बनी थी। तब भाजपा से शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस से प्रताप भानु शर्मा के मध्य मुकाबला हुआ था। इस चुनाव में शिवराज सिंह चौहान विजयी हुए थे। इसके उपरांत अब 33 साल बाद वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में यह दोनों ही कद्दावर नेता एक बार फिर आमने-सामने हैं। चुनाव में विजय श्री किसे मिलती है यह परिणाम आने के बाद ही स्पष्ट होगा ।

कांग्रेस के सामने अनेक चुनौतियां
विदिशा संसदीय क्षेत्र से भाजपा ने जहां विदिशा के पांच बार के पूर्व सांसद व प्रदेश में 18 साल तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान को प्रत्याशी बनाया है। वहीं, कांग्रेस पार्टी को चुनाव से ठीक पहले अपने संगठन बिखराव की समस्या से भी जूझना पड़ रहा है। कुछ समय पूर्व विदिशा कांग्रेस जिला अध्यक्ष राकेश कटारे ने कांग्रेस छोडक़र भाजपा का दामन थाम लिया तो ऐसे में कांग्रेस जिला अध्यक्ष विहीन हो गई जिसके कारण कांग्रेस की संगठन की गतिविधियां प्रभावित हुई। हालांकि अब नए अध्यक्ष के रूप में मोहित रघुवंशी को नियुक्त कर दिया गया है। वहीं, हाल ही में विदिशा से कांग्रेस के पूर्व विधायक शशांक भार्गव ने भी भाजपा का दमन थाम लिया। भार्गव यही नहीं रुके उन्होंने हाल ही में 31 मार्च को जब शिवराज सिंह चौहान विदिशा आए तो अपने 738 कांग्रेस कार्यकर्ताओं को भाजपा की सदस्यता दिलाई। इस दौरान वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी भी मौजूद थे जो कांग्रेस संगठन के लिए चिंता का विषय है। ऐसी परिस्थितियों के कारण इस चुनाव में कांग्रेस को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अब देखने वाली बात होगी कि पार्टी से दूर जा रहे कार्यकर्ताओं को रोकने के लिए कांग्रेस क्या पहल करती है?।

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