कभी कांग्रेस का बोलबाला था, अब भाजपा का मजबूत गढ़ बन चुकी है खंडवा लोकसभा सीट

ज्ञानेश्वर पाटिल और नरेंद्र पटेल के बीच होगी भिड़ंत,
भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के प्रत्याशी ओबीसी वर्ग के

मिलिंद मुजुमदार
इंदौर: कांग्रेस द्वारा टिकट घोषित करने के बाद अब खंडवा लोकसभा चुनाव में भाजपा के ज्ञानेश्वर पाटिल का मुकाबला कांग्रेस के नरेंद्र पटेल से होगा। कांग्रेस ने अपनी चौथी सूची में बड़वाह से विधानसभा चुनाव लड़े और हारे नरेंद्र पटेल को उम्मीदवार बनाया है। नरेंद्र पटेल पूर्व सांसद और विधायक ताराचंद पटेल के भतीजे हैं। वो गुर्जर समुदाय से आते हैं। इस समुदाय के इस समुदाय के खंडवा लोकसभा में एक लाख से अधिक वोटर हैं। भाजपा ने मराठा कुणबी समाज के ज्ञानेश्वर पाटिल को फिर से टिकट दिया है। ज्ञानेश्वर पाटिल 2021 में उपचुनाव के जरिए जीत दर्ज कर चुके हैं। मराठा कुणबी समाज के खंडवा सीट में डेढ़ लाख मतदाता हैं।

नरेंद्र पटेल अरुण यादव खेमे के माने जाते हैं। खंडवा जिला पूर्वी निमाड़ के रूप में भी जाना जाता है। दरअसल, नर्मदा और ताप्ती नदी की घाटियों के बीच बसा यह शहर कभी जैन समुदाय का महत्वपूर्ण स्थान रहा। यहां मिले अवशेषों से पता चलता है कि यहां कभी जैन मंदिर हुआ करते थे. 1956 में पूर्वी निमाड़ के रूप में अस्तित्व में आए इस जिले को 2003 में खंडवा और बुरहानपुर के रूप में दो जिलों में विभाजित किया गया.दरअसल खंडवा का पुराना नाम खांडव वन था. जो कि बोलचाल में धीरे-धीरे खंडवा होता गया और आगे चलकर खंडवा के रूप में ही प्रचलित हुआ.
खंडवा अपनी प्राकृतिक सुंदरता और पर्यटन के लिए भी जाना जाता है. 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग इसी जिले में है. इसके अलावा घंटाघर, दादा धूनीवाले दरबार, हरसूद, मूंदी, सिद्धनाथ मंदिर और वीरखाला रूक यहां के अन्य लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं। हालांकि खंडवा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत जो 8 सीटें आती हैं वो देवास, बुरहानपुर,खरगोन तथा खंडवा जिलों में बंटी हुई है। बड़वाह विधानसभा सीट खरगोन जिले में। जबकि बागली की सीट देवास जिले में आती है। इसी तरह बुरहानपुर और नेपानगर की दोनों सीटें बुरहानपुर जिले का हिस्सा हैं। विधानसभा चुनाव में खंडवा लोकसभा क्षेत्र की आंठों विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ने जीत दर्ज की है।

70 के दशक तक कांग्रेस का बोलबाला था

70 के दशक तक यहां कांग्रेस का बोलबाला था लेकिन 80 के दशक से कांग्रेस का पतन प्रारंभ हुआ। अब यह सीट भाजपा का मजबूत गढ़ है। अभी तक हुए कुल 19 बार के लोकसभा चुनाव में खंडवा सीट से कांग्रेस ने 9 बार जीत हासिल की, जबकि बीजेपी को 8 बार जीत मिली. वहीं दो बार जनता पार्टी को भी यहां से जीत मिली.शुरुआती पांच आम चुनावों (1952-71) में कांग्रेस ने पांचों बार खंडवा सीट से जीत का परचम लहराया. इसके बाद 1977 के चुनाव और 1979 के उपचुनाव में जनता पार्टी के उम्मीदवार को जीत मिली. हालांकि खंडवा की जनता ने इसके बाद फिर कांग्रेस की वापसी कराई और लगातार दो चुनाव (1980 और 1984) में कांग्रेस प्रत्याशी को जिता कर सांसद बनाया. इसके बाद 1989 में भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार इस सीट से जीत हासिल की. हालांकि इसके बाद 1991 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर से खंडवा से चुनाव जीता.

2009 छोडक़र 1996 से सतत नंदकुमार जीतते रहे

1996 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी नंदकुमार सिंह चौहान ने जीत दर्ज कर खंडवा लोकसभा सीट पर पार्टी की वापसी कराई. इसके बाद चौहान लगातार (1998, 1999 और 2004) चुनाव जीतते रहे और 2009 तक इस क्षेत्र की जनता का प्रतिनिधित्व लोकसभा में करते रहे. 2009 के चुनाव में उन्हें कांग्रेस के प्रत्याशी अरुण यादव के हाथों हार का सामना करना पड़ा. हालांकि 2014 और 2019 के चुनाव को जीतकर नंदकुमार सिंह चौहान ने अपना दबदबा कायम रखा. चौहान के निधन के बाद 2021 में हुए उपचुनाव में बीजेपी के ही उम्मीदवार ज्ञानेश्वर पाटिल ने जीत हासिल की और यहां से सांसद बने. एक बार फिर भाजपा ने श्री पाटिल पर भरोसा जताते हुए उन्हें लोकसभा का टिकट दिया है।

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