असमंजस में फंसे ग्वालियर प्रशासन ने फिर यह निकाला रास्ता…
इंदिरा की सभा में बाबूजी से ज्यादा भीड़ तब भी गुटबाजी के चलते हार गई कांग्रेस
स्कूल, कॉलेज, दफ्तरों में रही अघोषित छुट्टी, एसएएफ ग्राउंड और फूलबाग में सिमट आया था शहर
हरीश दुबे
ग्वालियर:उन्यासी की साल के आखिरी महीने का आखिरी हफ्ता पिछले सालों के बनिस्पत कुछ ज्यादा ही सर्द रहा लेकिन इस गुजरते साल में शहर के राजनीतिक माहौल में कुछ ज्यादा ही गर्माहट थी। पहली गैरकांग्रेस सरकार का प्रयोग नाकाम होने के बाद देश में मध्यावधि चुनाव हो रहे थे। जनता पार्टी दो धड़ों में बंटकर इंदिरा गांधी को सत्ता में वापसी करने से रोकने में जुटी थी तो देश की लगभग हर सीट पर इंदिरा के नेतृत्व वाली कांग्रेस के प्रत्याशी जनता पार्टी को कड़ी टक्कर दे रहे थे। कुछ ऐसा ही माहौल जनसंघ के गढ़ माने जाने वाले ग्वालियर में था जहां जनता पार्टी के प्रत्याशी नारायण कृष्ण शेजवलकर और कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह के बीच कांटे की टक्कर हो रही थी। ये दोनों ही नेता क्रमश: सांसद और मंत्री रह चुके थे, लिहाजा ग्वालियर के अवाम में खासी पैठ रखते थे।
यहां तक तो ठीक था लेकिन दिसंबर के दूसरे हफ्ते में जब ग्वालियर में चुनाव प्रचार अपने चरम पर था, तभी दिल्ली से कांग्रेस और जनता पार्टी के चुनाव प्रबंधकों की ओर से आए एक पैगाम ने ग्वालियर जिला प्रशासन के समक्ष खासी मुश्किल खड़ी कर दी। दरअसल, तीन जनवरी, 80 को होने वाले मतदान से ठीक पहले इंदिरा गांधी और जगजीवन राम ने दिसंबर के आखिरी हफ्ते का एक ही दिन ग्वालियर में चुनावी सभा के लिए मुकर्रर कर दिया। इंदिरा गांधी अपनी पार्टी की ओर से प्रधानमन्त्री पद का एकमात्र स्वाभाविक चेहरा थीं तो टूट फूट के बाद सरकार गंवा चुकी जनता पार्टी ने मोरारजी के संन्यास के बाद बाबू जगजीवन राम को प्रधानमंत्री पद का एकमेव चेहरा घोषित किया था। परिस्थिति यह बन गई थी कि करीब साढ़े सात लाख की आबादी वाले ग्वालियर शहर में देश के प्रधानमन्त्री पद के ऐसे दो शीर्षस्थ दावेदार चुनावी सभा लेने आ रहे थे जो उस समय के चुनावी माहौल के लिहाज से एक दूसरे के कट्टर विरोधी भी थे। प्रशासन ने पहले अपने सुरक्षा प्रबंध मजबूत किए और फिर दोनों नेताओं को दिसम्बर के एक ही दिवस में चुनावी सभा लेने की अनुमति दे दी।
अनुमति तो मिल गई लेकिन अब सवाल सभास्थल को लेकर उठा। कांग्रेस इंदिराजी की सभा के लिए कंपू का एसएएफ ग्राउंड चाहती थी तो जनता पार्टी ने भी बाबू जगजीवनराम की सभा के लिए इसी वीवीआईपी मैदान की मांग कर दी। प्रशासन ने दोनों पक्षों से बात कर इस मसले का भी रास्ता निकाल लिया। चूंकि इंदिराजी भले ही विपक्ष की नेता थीं लेकिन वे तीन बार देश की प्रधानमंत्री रह चुकी थीं, लिहाजा पूर्व प्रधानमन्त्री के प्रोटोकॉल के हिसाब से इंदिराजी की सभा के लिए एसएएफ ग्राउंड तय किया गया तो जनता पार्टी के बाबू जगजीवनराम के लिए शहर के मध्य स्थित फूलबाग मैदान निर्धारित हुआ। दोनों ही पार्टियों ने अपने नेता की चुनावी सभा को ऐतिहासिक बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। इंदिराजी की सभा में भीड़ जुटाने के लिए स्व. माधवराव सिंधिया ने अपनी टीम को मैदान में उतार दिया था, दरअसल संजय गांधी से मित्रता के चलते माधवराव कुछ महीने पहले ही कांग्रेस में विधिवत शामिल हुए थे और कांग्रेस ने उन्हें गुना से उम्मीदवार बनाया था लेकिन माधव पर अपने गृहनगर की सीट जिताने की जिम्मेदारी भी थी।
उस समय विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे अर्जुन सिंह भी ग्वालियर की सभा की तैयारी का अपडेट ले रहे थे। ग्वालियर के कांग्रेस प्रत्याशी राजेन्द्र सिंह, उनके पिता कक्का डोंगर सिंह, सुमेर सिंह, तारासिंह वियोगी, डा. पापरीकर, डा. धर्मवीर, सरदार बेग, जोगेंद्र सिंह जुनेजा, भगवान सिंह यादव, चंद्रमोहन नागोरी, कप्तान सिंह, स्व. नरेंद्र सिंह, अशोक शर्मा, रघुवीर सिंह बाबूजी, बृजमोहन परिहार, वासुदेव शर्मा, महाराज सिंह पटेल, बाल खांडे, राजकुमार शर्मा आदि नेताओं ने इंदिरा गांधी की सभा को सफल बनाने पूरे ग्वालियर जिले में जनसंपर्क किया।चूंकि उस समय प्रदेश में जनता पार्टी की ही सरकार थी, लिहाजा अपने पीएम पद के दावेदार जगजीवन राम की सभा को एतिहासिक बनाने प्रदेश सरकार ने भी सारे सत्ता संसाधन झोंक दिए। इस सरकार में ग्वालियर की नुमाइंदगी कर रहे शीतला सहाय, जगदीश गुप्ता, नरेश जौहरी जैसे मंत्रियों के अलावा भाऊसाहब पोतनीस, इंदापुरकर, गणफुले, बिटबेकर, पातीराम जैन, स्वरूप किशोर सिंहल आदि नेता प्रशासन को सीधे दिशा निर्देश देते थे। मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सखलेचा के भी निर्देश थे कि बाबूजी की सभा में इंदिरा की सभा से ज्यादा भीड़ होना चाहिए।
आखिर वह दिन आ गया जब देश के प्रधानमंत्री पद पर दावा ठोक रहे दोनों प्रतिद्वंदी नेता चुनावी सभा लेने ग्वालियर आ गए। शहर के माहौल में उत्सुकता, राजनीतिक रोमांच के साथ फिजा में तनाव भी घुला था। स्कूल कॉलेजों से लेकर दफ्तरों तक में अघोषित छुट्टी हो गई। सत्ता समर्थक काफिले फूलबाग की तरफ बढ़ रहे थे तो सत्ता विरोधी खेमे का जनसैलाब एसएएफ ग्राउंड, कंपू में उमड़ रहा था। बाबूजी नियत समय दोपहर 12 बजे के करीब फूलबाग आए, उनके निशाने पर इंदिरा और चरणसिंह थे। वे सभा लेकर अपनी अगली मंजिल की ओर बढ़ गए। उनके बाद इंदिरा गांधी की बारी थी। उन्हें अपरान्ह 3 बजे सभा लेना थी, लेकिन इससे कई घंटे पहले ही एसएएफ ग्राउंड खचाखच भर गया था।
इंदिरा ठीक 3 बजे ही सभा स्थल पर पहुंचीं और बीस मिनट का भाषण देकर चलीं गईं। अमूमन माना जा रहा था कि इंदिरा शाम तक ही ग्वालियर आएंगी, लिहाजा उन्हें सुनने और करीब से देखने सैकड़ों लोग उनके जाने के बाद शाम 4-5 बजे तक सभा स्थल पहुंचे और निराश होकर लौटे। जाहिर तौर पर इंदिरा ने ग्वालियर की सभा में बाबूजी की सभा से ज्यादा भीड़ बटोरी लेकिन अर्जुन सिंह, सिंधिया और शुक्ल बंधुओं के गुटों में बंटी ग्वालियर की कांग्रेस इस भीड़ को वोटों में तब्दील नहीं कर सकी। जनता पार्टी के प्रत्याशी शेजवलकर ने कांग्रेस प्रत्याशी राजेन्द्र सिंह को 25,480 वोट से चुनाव हरा दिया। बाद के वर्षों में राजेंद्र सिंह के पुत्र अशोक सिंह यहां से लगातार चार बार लोकसभा चुनाव लड़े और इसी गुटबाजी के चलते हर बार पराजित हुए। कांग्रेस ने अशोक सिंह को अब राज्यसभा में भेजा है।
कुछ इस तरह रहा था सन अस्सी का नतीजा…
एनके शेजवलकर (जनता पार्टी) 1,43,616, राजेंद्र सिंह (कांग्रेस) 1,18,136, विष्णुदत्त तिवारी (जनता पार्टी सेक्यूलर) 36,894, किशनचंद ऐरन (हिंदू महासभा) 5,892, पूरनराव लेखपांडे 5,127, छोटेलाल बाथम 3,417, गुलाब दादा 2,842, मदनलाल धरतीपकड़ 2,415, नारायण शास्त्री 898, राजबहादुर पदम 719 (सभी निर्दलीय)। सन 80 में ग्वालियर संसदीय क्षेत्र में कुल 6,59,308 मतदाता थे लेकिन मताधिकार का प्रयोग सिर्फ 3,26,171 ने ही किया। इस तरह वोटिंग परसेंटेज सिर्फ 49 प्रतिशत ही रहा था। उस वक्त चुनावों में जागरूकता के अभाव में मतदान प्रतिशत इसके आसपास ही रहता था।
राजमाता और इंदिरा की चुनावी टसन का नतीजा थी यह सभा…
आम तौर पर चुनावों में इंदिरा गांधी ग्वालियर में प्रचार करने कम ही आती थीं क्योंकि ग्वालियर को नागपुर के बाद जनसंघ का दूसरा बड़ा केंद्र मान लिया गया था लेकिन अस्सी के चुनाव में उनके ग्वालियर आने की कुछ अलग ही वजह थी। दरअसल, इस चुनाव में राजमाता विजयाराजे सिंधिया रायबरेली जाकर जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में सीधे इंदिरा के खिलाफ चुनाव लड़ रहीं थीं। इसका जवाब देने के लिए इंदिरा गांधी ने राजमाता के गृहनगर में आकर जनता पार्टी के खिलाफ चुनावी सभा ली थी। माधवराव ने अपनी मां के रायबरेली जाकर चुनाव लडऩे का विरोध किया था और यहीं से मां बेटे के बीच दरार बढ़ती गई।