मुद्रास्फीति को काबू में रखने की कोशिश

भारतीय रिजर्व बैंक ने बुधवार को अपनी नीतिगत दर यानी रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया, लेकिन ब्याज दरों में कटौती की दिशा में पहला कदम उठा दिया है. ऐसा करके आरबीआई ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने की कोशिश की है. आरबीआई को उम्मीद है कि त्योहार के इस सीजन में रेपो रेट में बदलाव नहीं करने से बाजार को गति मिलेगी और तरलता (लिक्विडिटी फ्लो) का प्रवाह बाजार में रहेगा. भारतीय रिजर्व बैंक के निदेशकों की बैठक में रेपो दर – जो घर, ऑटो, कॉर्पोरेट और अन्य ऋणों की ब्याज दर को नियंत्रित करती है, को 10 वीं लगातार नीति बैठक के लिए 6. 5 प्रतिशत पर रखने के लिए सहमति बनी. आरबीआई ने इस वर्ष ब्याज दर में कोई परिवर्तन नहीं किया है.ब्याज दरों में आखिरी बार फरवरी 2023 में बदलाव किया गया था, जब उन्हें 6. 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 6. 5 प्रतिशत किया गया था.भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि मुद्रास्फीति को लक्ष्य के मुताबिक बनाए रखने की हर संभव कोशिश की जाएगी.उन्होंने कहा कि आने वाले महीनों में खाद्य मुद्रास्फीति कम हो सकती है, जबकि अस्थिर खाद्य और ऊर्जा लागत को छोडक़र कोर मुद्रास्फीति अपने निचले स्तर पर पहुंच गई है. आरबीआई की ताजा मौद्रिक नीति के अनुसार भारत का आर्थिक विकास परिदृश्य बरकरार रहा, निजी खपत और निवेश में भी वृद्धि हुई. रुख में बदलाव से आगामी एमपीसी बैठकों में ब्याज दरों में कटौती की संभावना का संकेत मिलता है, अगली बैठक दिसंबर की शुरुआत में होने वाली है. बहरहाल, आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार सितंबर में लगातार दूसरे महीने वार्षिक खुदरा मुद्रास्फीति केंद्रीय बैंक के 4 प्रतिशत के लक्ष्य से नीचे रही. इसी के साथ भारतीय रिजर्व बैंक ने देश की आर्थिक स्थिति पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की है. इसके अनुसार आने वाले समय में भारत के विकास दर सात $फीसदी के आसपास स्थिर रहेगी. कुल मिलाकर देश की आर्थिक सेहत संतोषजनक है लेकिन बेरोजगारी की समस्या बनी हुई है.विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 1991 में भारत और चीन में कृषि में रोजगार का प्रतिशत आसपास ही था. चीन में यह 60 प्रतिशत तथा भारत में 63 प्रतिशत था, किंतु विश्व बैंक के अनुसार करीब 30 साल बाद चीन में यह तेजी से कम होकर 23 प्रतिशत रह गया, जो भारत के 44 प्रतिशत आंकड़े से बहुत कम है. इन 30 साल के भीतर चीन में लगभग 20 करोड़ कृषि श्रमिक उद्योग और सेवा क्षेत्रों में चले गए. विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक भारत में भी काफी संख्या में श्रमिक खेती से बाहर चले गए मगर इसी दौरान कृषि में रोजगार पाने वालों की संख्या 3.5 करोड़ बढ़ गई.कृषि रोजगार के प्रतिशत की बात करें तो आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन देशों में यह लगभग 5 प्रतिशत है जो भारत में कृषि में वर्तमान रोजगार के प्रतिशत का लगभग आठवां हिस्सा है.उच्च-मध्यम आमदनी वाले देशों में भी कृषि में रोजगार की हिस्सेदारी आज भारत की तुलना में केवल आधी है. अधिकांश आर्थिक विशेषज्ञ मानते हैं कि हमारे अर्थव्यवस्था को कृषि रोजगार पर निर्भरता कम करनी होगी और मैन्युफैक्चरिंग उद्योग को बढ़ावा देना होगा.

बहरहाल,मैन्युफैक्चरिंग उद्योग के साथ-साथ भारत ने लगभग 6 दशक तक अपने पर्यटन उद्योग को भी उपेक्षित रखा. जबकि पर्यटन उद्योग भारत में लाखों रोजगार पैदा कर सकता है. भारत में धार्मिक, सांस्कृतिक,ऐतिहासिक पर्यटन के साथ-साथ इको और लोक पर्यटन की भी अपार संभावनाएं हैं. भारत ने इन संभावनाओं का दोहन नहीं किया है. इसी तरह सेमी कंडक्टर,चिप और हार्डवेयर के क्षेत्र का कोरोना के बाद विस्तार हुआ है. जाहिर है मैन्युफैक्चरिंग और पर्यटन उद्योग को पर्याप्त बढ़ावा देकर ही हम बेरोजगारी की समस्या को हल कर सकते हैं.

 

Next Post

मुकेश अंबानी ने रतन टाटा के निधन पर जताया शोक

Thu Oct 10 , 2024
Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email मुंबई (वार्ता) रिलायंस उद्योग समूह के प्रमुख मुकेश अंबानी ने श्री रतन एन टाटा के निधन को भारत और देश के उद्योग जगत के लिए दुखद घड़ी बताया है। श्री अंबानी ने अपने शोक संदेश में कहा […]

You May Like