ग्वालियर चंबल डायरी
हरीश दुबे
ग्वालियर चंबल में आप पार्टी वाले इन दिनों हैरान-परेशान हैं, वजह यह कि लोकसभा के चुनाव चल रहे हैं और उनके पास कोई काम नहीं है। पार्टी ने उन्हें कांग्रेस के लिए जुटने को कहा है लेकिन कांग्रेस की ओर से किसी बैठक या सभा के बुलावे का कोई संदेश अभी तलक नहीं आया है। पहले नगर निगम और फिर विधानसभा चुनाव में भले ही आप वालों को यहां कोई बड़ी जीत नहीं मिली लेकिन जब झाड़ू चली तो तमाम वोट बटोर ही लाई थी। निगम चुनाव में तो ग्वालियर में महापौर पद पर आप प्रत्याशी को 45 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। भिंड, मुरैना और श्योपुर में पहली बार आप के पार्षद बने। इसी तरह विधानसभा चुनाव में अंचल की 34 में से 13 सीटों पर आप ने ताल ठोकी थी। बहरहाल, आप के ग्वालियर चंबल के लीडरान ने लोकसभा चुनाव पूरी ताकत से लड़ने के मंसूबे बनाए थे। प्रत्याशियों के नामों पर मंथन भी शुरु हो गया था लेकिन इंडी गठबंधन में प्रदेश की 28 सीटें कांग्रेस के खाते में चली गई हैं। आप वालों को इस बात का मलाल है कि कांग्रेस ने जिस तरह खजुराहो की सीट सपा के लिए छोड़ी है, उसी तरह गठबंधन धर्म का पालन करते हुए कम से कम एक-दो सीट तो आप को दी जानी थी।
मातृशक्ति को एकजुट करने में जुटीं महारानी…
महल के मुखिया जब भी चुनाव मैदान में उतरते हैं तो महल के अन्य सदस्य भी उन्हें जिताने प्रचार अभियान में जुट जाते हैं। यह परंपरा माधवराव सिंधिया के समय से चली आ रही है, जब उनके हर चुनाव में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के अलावा माधवीराजे भी धुंआधार प्रचार करती थीं। 84 में जब माधवराव पहली बार ग्वालियर सीट से उतरे और उनके खिलाफ मैदान में अटलजी जैसे दिग्गज थे, तब महल दो हिस्सों में बंट गया था, राजमाता सिंधिया अटलजी का प्रचार कर रही थीं तो माधवराव के लिए महारानी माधवीराजे ने शहर और देहात में अनगिनत सभाएं लीं। इसी चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किशोरावस्था में ही चुनावी वीथिकाओं में पहली बार कदम रखा, जब वे अपनी मां के साथ पहली बार माधव महाराज के लिए सभाओं में वोट मांगते दिखे थे। हालांकि इस वाक्ये को चालीस साल होने को आए लेकिन चौबीस के चुनाव में एक बार फिर वही मंजर देखने को मिल रहा है, बस किरदार बदल गए हैं। तत्कालीन ग्वालियर रियासत की महारानी प्रियदर्शिनी राजे इन दिनों शिवपुरी और गुना में अपने पति की विजयश्री के लिए सघन प्रचार अभियान में जुटी हुई हैं। मातृशक्ति सम्मेलनों के सिलसिले की शुरुआत उन्होंने शिवपुरी के शहर कस्बों से की और अब उनका यह अभियान संसदीय क्षेत्र के आखिरी छोर मुंगावली तक पहुंच गया है। युवराज आर्यमन का भी दौरा कार्यक्रम बनने की खबर है।
इनकी चुनावी रणनीति पर पार्टी को भरोसा
जयसिंह कुशवाह सन 90 से भाजपा में ग्वालियर पूर्व सीट से टिकट के दावेदार बने हुए हैं लेकिन हर बार वंचित रहे। कभी शेजवलकर, अनूप तो कभी माया और मुन्ना को टिकट मिलता रहा। बीच में उनकी नाराजगी की खबरें भी आईं। वजह जो भी रही हो, लेकिन पार्टी की नजर में वे अभी भी इस अंचल में सबसे भरोसे के चुनावी रणनीतिकार बने हुए हैं। एक बार फिर से जयसिंह को ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र का चुनाव संयोजक बनाकर इस सीट पर पार्टी का करीब दो दशक से चला आ रहा कब्जा बरकरार रखने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर डाली गई है। उनके सहयोग के लिए विधायक रह चुके प्रह्लाद भारती और वीरेंद्र जैन को तैनात किया गया है। जिम्मेदारी मिलते ही जयसिंह बैठकों, मंत्रणाऔं और कार्यकर्ताओं से संपर्क में जुट गए हैं। वीडी शर्मा ग्वालियर आए तो उनसे गुफ्तगू कर प्रचार अभियान का शुरुआती खाका भी उन्होंने खींच लिया है।
बसपा को ग्वालियर में भी नारायण और मुंजारे की तलाश
बसपा ने ग्वालियर चंबल की चारों सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए पूरी तैयारी कर ली है। सतना के नारायण त्रिपाठी और बालाघाट के कंकर मुंजारे की तरह बसपा को इस अंचल में भी कांग्रेस, भाजपा के ऐसे बड़े असंतुष्ट चेहरों की तलाश है जो हाथ और फूल को झिड़क कर लोकसभा पहुंचने के लिए हाथी की सवारी करने उत्सुक हों। दावा यह भी किया जा रहा है कि टिकट से नाउम्मीद हो चुके ग्वालियर चंबल के मुख्य धारा के दोनों दलों से कुछ असंतुष्टों के बायोडाटा बसपा के प्रीतम विहार स्थित दफ्तर पहुंचे हैं लेकिन आखिरी फैसला लखनऊ से ही होगा। वैसे ग्वालियर में बसपा के जिलाध्यक्ष सुरेश सिंह बघेल ने खुद को संभावित उम्मीदवार मानकर तैयारी शुरु कर दी है। हालिया विधानसभा चुनाव में ग्वालियर ग्रामीण सीट पर मुकाबले में 27 हजार वोट हासिल कर वे जनाधार दिखा ही चुके हैं।