शौचालय में गंदगी का अंबार, हैंडपंप से बच्चे बुझा रहे अपनी प्यास, मामला प्राथमिक विद्यालय बिलौंजी का
नवभारत न्यूज
सिंगरौली 28 सितम्बर। जिला मुख्यालय बैढ़न के शासकीय प्राथमिक विद्यालय बिलौंजी में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। पेयजल से लेकर बाउण्ड्रीवाल एवं शौचालय जैसे सुविधाएं नौनिहालों को नही मिल पा रही है। जबकि यह विद्यालय जिला मुख्यालय की हृदय स्थली है। फिर भी बुनियादी सुविधाओं का टोटा है।
ज्ञात हो कि साल 2008 में सीधी जिले से अलग कर सिंगरौली को जिला बनाया गया। लेकिन व्यवस्थाएं आज भी मुख्यालय में संचालित विद्यालयों कि दुरस्त नहीं हो पाई तो ग्रामीण अंचलों की क्या होगी यह बखूबी समझा जा सकता है। साल 1987 में वर्तमान बैढ़न मुख्यालय के हृदय स्थलीय में बिना बाउंड्री के शासकीय प्राथमिक विद्यालय बिलौंजी में बनवाया गया। विद्यालय भवन जर्जर हालत में हैं। आलम यह है कि छत से पानी टपकता दीवारों में सीलन हैं साथ ही विद्यालय ना बाउंड्री बनी और ना ही शौचालय की व्यवस्था में सुधार हुआ। आवारा पशुओं से बच्चों के जान को खतरा है। स्वच्छता का पाठ पढ़ाने वाले विद्यालय के शौचालय में गंदगी का अंबार है। आज भी बच्चे सीलन लगी क्षत और दीवार के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं। गौरतलब हैं कि जिला बनने के 15 साल बाद भी शासकीय प्राथमिक विद्यालय बिलौंजी संचालन व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं हुआ है। सरकारी स्कूल भवन जर्जर हालत में हैं। छत से पानी टपक रहा है। दीवालों में सीलन हैं तो वहीं सुरक्षा के लिए बाउंड्री का निर्माण कार्य 37 साल से पेंडिंग में है। स्कूल में 38 छात्र और 42 छात्राएं अध्ययनरत हैं। जबकि इन बच्चों को बढ़ाई का जिम्मा तीन शिक्षकों पर हैं। विद्यालय में बाउंड्री नहीं बनें होने से स्कूल परिसर में मवेशी पहुंच रहे हैं। जिससे मासूमों के साथ कब बड़ा हादसा हो जाएं कुछ कहा नहीं जा सकता। स्कूल परिसर में गोबर और गोमूत्र से बच्चे और शिक्षक दोनों परेशान हैं। साथ ही स्कूल की बाउंड्री न होने के कारण असामाजिक तत्व दिन ढलते ही स्कूल परिसर में बैठकर शराब, गांजा पीते हैं और बोतलों को वहीं पर फेंक जाते हैं। स्कूल में बाउंड्री न होने के कारण छात्रों व शिक्षकों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
हैंडपंप से स्कूली छात्र पी रहे हैं पानी
सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाने के साथ ही अच्छी सुविधा देने का दावा करती है। लेकिन हकीकत इससे एकदम अलग है। प्राथमिक स्कूल बिलौजी में छात्रों के लिए शुद्ध पेय जल की व्यवस्था नहीं है और ना ही पानी की शुद्धता की जांच कराने की ही कोई व्यवस्था है। ऐसे में मजबूर होकर बच्चे घर से ही पानी लेकर आ रहे हैं या फिर हैंडपंप का पानी पीने को मजबूर हैं। यह अलग बात है कि दिखानें के लिए यहां नल की 6 टोंटियां लगी है। लेकिन पानीं किसी में नहीं आता। बच्चे स्कूल में लगें हैंडपंप से अपनी प्यास बुझाते हैं। जबकि कोयलांचल का पानी दूषित हो चुका है। यहां का भूगर्भ का पानी पीने योग्य तो बिल्कुल भी नही हीं।
शौचालय में गंदगी का अंबार
छात्रों के लिए टूटे-फूटे शौचालय हैं। वहां की हालत देखकर और बदबू से कोई अच्छा-भला इंसान भी बीमार पड़ जाए। शौचालय से लगें पेड़ होने से शौचालय में सूखी पत्तियों के साथ जंगली वेल उग गई है। देखने से पता चलता है कि वहां वर्षों से सफाई नहीं हुई लगती। सवाल है कि शिक्षा विभाग बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर बड़ी डींगे हांकता है। निरीक्षण भी होते आए हैं। लेकिन सुधार शून्य है।