पांच से छह साल में मिशन मोड में लगाया जाएगा कवच 4.0 : वैष्णव

सवाई माधोपुर, 24 सितंबर (वार्ता) रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पश्चिम मध्य रेलवे के सवाई माधोपुर क्षेत्र में स्वचालित रेल सुरक्षा प्रणाली कवच 4.0 के परीक्षण की सफलता पर प्रसन्नता जताई और कहा कि देश में कवच को 5 से 6 साल में मिशन मोड में पूरे नेटवर्क पर लगाया जाएगा।

भारतीय रेलवे में रेलगाड़ियों की दुर्घटनाओं को रोकने के लिए स्वदेशी तकनीक से निर्मित स्वचालित सुरक्षा प्रणाली (एटीपी) कवच के नये संस्करण 4.0 आज यहां सफल परीक्षण किया गया।

रेल मंत्री श्री वैष्णव दिल्ली मुंबई के ट्रंक मार्ग पर सवाई माधोपुर – कोटा सेक्शन पर कवच 4.0 के परीक्षण के प्रत्यक्षदर्शी बने। पश्चिम मध्य रेल ने मात्र दो महीनों में 108 किलोमीटर रेल ट्रैक पर कवच संस्करण 4.0 स्थापित कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। श्री वैष्णव ने सवाई माधोपुर में ट्रैक के किनारे टाॅवर का अवलोकन किया। इसके बाद उन्होंने विशेष ट्रेन से 35 किलोमीटर दूर इंदरगढ़ सुमेरगढ़ मंडी तक कवच प्रणाली का अलग अलग गति पर परीक्षण किया।

श्री वैष्णव ने इंदरगढ़ सुमेरगढ़ मंडी स्टेशन पर संवाददाताओं से कहा कि यह दरअसल कवच 4.0 का परीक्षण नहीं प्रदर्शन था। कवच ने विश्व में सर्वोत्कृष्ट तकनीकी मानक का प्रमाणन एसआईएल-4 हासिल किया है। विश्व के तमाम उन्नत देश भी भारत की स्वचालित रेल सुरक्षा प्रणाली कवच को बहुत उत्सुकता से देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब 9000 किलोमीटर के रेलमार्ग पर कवच लगाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इस प्रणाली से रेलवे मानवीय त्रुटि के कारण दुर्घटनाओं को टालने में सक्षम हो गई है।

सवाई माधोपुर से सुमेरगंज मंडी तक कवच के सात परीक्षण किए गए। पहला, 130 किमी प्रति घंटे की गति से ड्राइवर गाड़ी दौड़ा रहा था लेकिन सिग्नल पार करने पर स्वचालित रूप से कवच होम सिग्नल पर रुक गया क्योंकि सिग्नल से 50 मीटर दूर जाने की अनुमति नहीं है।

स्थायी गति प्रतिबंध परीक्षण 120 किमी प्रति घंटे का था और ड्राइवर 130 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेन ले जा रहा था लेकिन कवच ने पूरी सावधानी से गति को नियंत्रित किया।

लूप लाइन सेटिंग के परीक्षण में ट्रेन को 130 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से लाया गया लेकिन कवच ने गति को 30 किमी प्रति घंटे तक नियंत्रित किया। चौथे परीक्षण में स्टेशन मास्टर ने असामान्यताओं का संदेश दिया और कवच ने स्वचालित रूप से ट्रेन रोक दी।

लेवल क्रॉसिंग सीटी परीक्षण में क्रासिंग पर चालक ने हॉर्न का उपयोग नहीं किया, लेकिन कवच ने क्रासिंग गेट नंबर 148 पार करते समय स्वचालित रूप से हॉर्न बजाया। लोको की कैब पर अगले सिग्नल पहलू के बारे में परीक्षण किया गया। यह कैब सिग्नलिंग का भी परीक्षण था। होम सिग्नल पार टेस्ट में ड्राइवर ने होम सिग्नल लाल होने पर उसे पार करने की कोशिश की। कवच ने उन्हें पार नहीं करने दिया और ब्रेक लगा दिया।

रेलवे के सूत्रों का कहना है कि भारतीय रेलवे द्वारा स्वदेशी तकनीक से विकसित स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली, कवच, ने अपने पूर्ववर्ती, ट्रेन सुरक्षा और चेतावनी प्रणाली (टीपीडब्ल्यूएस) की कई समस्याओं का समाधान किया है और इसके विकास से रेलवे सुरक्षा में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।

कवच प्रणाली का उद्देश्य रेल यातायात की सुरक्षा और दक्षता में सुधार करना है, और यह भारतीय रेलवे की सुरक्षा और आधुनिकीकरण योजनाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

कवच एटीपी सिस्टम रेल परिवहन में ऐसी सुरक्षा प्रणाली है, जो ट्रेनों को सुरक्षित गति से अधिक गति से चलने या लाल सिग्नल पार करने से रोकती है। यह स्वचालित रूप से ट्रेन की गति को नियंत्रित करती है और दुर्घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यकता पड़ने पर ब्रेक लगा सकती है। एटीपी सिस्टम आधुनिक रेलवे सिग्नलिंग प्रणालियों का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो मानव त्रुटि के विरुद्ध एक सुरक्षा कवच प्रदान करता है और ट्रेनों की सुरक्षित ऑपरेशन सुनिश्चित करता है।

विश्वभर में एटीपी प्रणाली लगाने के इतिहास पर नजर डालें तो अमेरिका में पॉजिटिव ट्रेन कंट्रोल (पीटीसी) 1980 के दशक में लगाना शुरू हुआ था। 1990 के दशक में इसका विस्तार किया गया और 2010 में फेडरल रेलरोड एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा पीटीसी के कार्यान्वयन के लिए अगले 30 साल के नियम जारी किये गये।

यूरोप में यूरोपीय ट्रेन कंट्रोल सिस्टम (ईटीसीएस) विकसित करने के लिए 1989 में कार्यसमूह गठित किया गया। 1990 के दशक के अंत में स्विट्जरलैंड और जर्मनी में पायलट परियोजना शुरू हुई। वर्ष 2005 में ईटीसीएस के यूरोप के अन्य सभी नेटवर्कों में क्रियान्वयन का समझौता किया गया।

ऑस्ट्रेलिया में 1990 के दशक में एटीपी सिस्टम लागू किया गया। शहरी और उच्च यातायात क्षेत्रों में ईटीसीएस प्रणाली पर आधारित आधुनिक एटीपी सिस्टम धीरे-धीरे क्रियान्वित किया गया।

लेकिन स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली के मामले में जापान सबसे आगे रहा है। जापान में सबसे पहले 1920 के दशक में स्वचालित ट्रेन नियंत्रण के विभिन्न माॅडलों पर काम शुरू किया था। वर्ष 1964 में एटीपी का एक उन्नत रूप शिंकांसेन एटीपी को विकसित किया गया।

भारत में सबसे पहले 1986 से मुंबई उपनगरीय क्षेत्र में ऑक्सिलियरी वार्निंग सिस्टम (एडब्ल्यूएस) लगाया गया था। लेकिन इसमें कई कमियां थीं। इसकी चोरी रोकना मुश्किल था, यह रेडियो आधारित नहीं था और इससे गति पर निगरानी नहीं हो सकती थी और यह एसपीएडी यानी लाल सिग्नल पार करने को रोकने में असमर्थ था। जुलाई 2006 में टक्कर रोधी उपकरण एंटी-कोलिजन डिवाइस (एसीडी) बना कर उत्तरी पूर्व रेलवे में लगाया गया।

बाद में एसीडी से उन्नत ट्रेन सुरक्षा और चेतावनी प्रणाली (टीपीडब्ल्यूएस) बनी। लेकिन इसमें सुरक्षा प्रमाणीकरण की कमी, जीपीएस पर निर्भरता, अत्यधिक अनावश्यक ब्रेकिंग, लूप लाइन टकराव को रोकने में असमर्थता, एसपीएडी और गति पर निगरानी की कमी, एकल विक्रेता, चोरी और तोड़फोड़ तथा पूर्ण सुरक्षा का अभाव जैसी कमियां इसकी स्वीकार्यता में बाधक बनीं।

इसके बाद ट्रेन कोलिजन एवाॅयडेंस सिस्टम (टीसीएएस) बनाया गया जिसे रेलवे के अनुसंधान अभिकल्प एवं मानक संगठन (आरडीएसओ) ने विकसित किया। इसी टीसीएएस को अपग्रेड करके इसे कवच का नाम दिया गया। रेल मंत्री के अनुसार कवच के सभी तीन अनुमोदित निर्माता नये संस्करण 4.0 के परीक्षण के लिए तैयार हैं। रेल मंत्री का संकल्प है कि कवच 4.0 तैयार होते ही सभी लोकोमोटिव में मिशन मोड में योजनाबद्ध तरीके से कवच उपकरणों की स्थापना की जानी चाहिए। इंस्टालेशन की प्रक्रिया में जहां जहां पहले कवच लगाया जा चुका है, वहां मौजूदा सिस्टम को कवच 4.0 में अपग्रेड किया जाएगा।

स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (एटीपी) कवच का विकास रेलवे सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। 1980 के दशक में दुनिया की अधिकांश प्रमुख रेलवे प्रणालियाँ एटीपी में स्थानांतरित हो गईं। भारतीय रेलवे ने 2016 में ट्रेन टक्कर रोधी प्रणाली के पहले संस्करण की मंजूरी के साथ यह यात्रा शुरू की थी। वर्ष 2019 में उच्चतम स्तर के सुरक्षा प्रमाणन एसआईएल-4 को हासिल करने के लिए सिस्टम का परीक्षण किया गया था।

भारतीय रेलवे अलग अलग प्रकार के ट्रैक वाले नेटवर्क संचालित करता है। विभिन्न परिदृश्यों का अध्ययन करने और उन्हें सुरक्षा प्रणालियों में शामिल करने की आवश्यकता है क्योंकि एक ट्रेन रेलवे नेटवर्क पर कहीं भी यात्रा कर सकती है। इसके बाद कवच प्रणाली को 2020 में राष्ट्रीय एटीपी प्रणाली के रूप में अनुमोदित किया गया था। कोविड काल के बावजूद, आगे का परीक्षण और विकास जारी रहा।

किसी भी एटीपी प्रणाली को कार्य करने के लिए पांच उपप्रणालियों की आवश्यकता होती है। रेलवे पटरियों के किनारे ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क, रेलवे पटरियों के किनारे टावर और रेडियो उपकरण, रेलवे पटरियों पर आरएफआईडी टैग लगाना, रेलवे स्टेशनों पर डेटा सेंटर और सिग्नलिंग प्रणाली के साथ एकीकरण तथा प्रत्येक ट्रेन और लोकोमोटिव पर कवच उपकरण स्थापित करना। यदि अलग अलग उपकरणों के रूप में समझें तो ये स्टेशन कवच, आरएफआईडी टैग, संचार नेटवर्क, लोको कवच, ऑन-बोर्ड उपकरण, ड्राइवर मशीन इंटरफेस और वेसाइड उपकरण हैं।

कवच प्रणाली की मुख्य विशेषताओं में स्वचालित ब्रेक लगाना, लोको के केबिन में लाइन-साइड सिग्नल की पुनरावृत्ति यानी केबिन में सिग्नल दोहराना, रेडियो संदेशों द्वारा गति अधिकार का निरंतर अपडेट किया जाना, समपार फाटकों यानी लेवल क्रॉसिंग गेट पर स्वचालित सीटी बजना, एक लोको से दूसरे लोको के बीच टकराव की स्थिति आने पर रेडियो संकेतन एवं संपर्क स्थापित करना तथा किसी भी दुर्घटना की स्थिति में अलार्म या चेतावनी देना शामिल है।

वर्ष 2021 में, कवच के संस्करण 3.2 को प्रमाणित और क्रियान्वित किया गया था और 2022 की अंतिम तिमाही में दिल्ली – मुंबई और दिल्ली – हावड़ा के अत्यधिक व्यस्त मार्गों पर काम शुरू किया गया था। इस तरह से अब तक जो संस्करण लगाया जा रहा था, वह कवच 3.2 था। अब देश में प्रत्येक रेलवे नेटवर्क की सभी विविधताओं, विशेषताओं को समग्रता से समझ कर सब नेटवर्क में काम करने वाले संस्करण 4.0 को विकसित किया गया है।

इस प्रणाली में कैब सिग्नलिंग का लाभ यह है कि कवच स्टेशन पर लगी हुई इंटरलॉकिंग से अगले सिग्नल को पढ़ कर उसके आस्पेक्ट को रेडियो तरंगों के माध्यम से सीचे इंजन में प्रदर्शित कर देगा। इस पद्धति को हम कैब सिग्नलिंग कहते हैं। इस प्रणाली से चालक दल को 160 किमी प्रतिघंटा की गति पर सिग्नल आस्पेक्ट को पढ़ने में सुविधा होगी क्योंकि अब उसे लाइन पर लगे सिग्नलों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। उसे अगले सिग्नल का आस्पेक्ट इंजन में ही कवच के द्वारा दिख जायेगा। इस सुविधा से हम कोहरे या अन्य खराब दृश्यता वाले मौसम में भी ट्रेनों को सही समय पर चला सकेंगे।

कवच द्वारा गति नियंत्रण का तरीका यह है कि यदि ट्रेन की गति अनुमत सीमा से 2 किमी/घंटा से अधिक है, तो कवच सिस्टम द्वारा ओवर स्पीड अलार्म जारी होगा। अगर ट्रेन की गति अनुमत सीमा से 5 किमी/घंटा अधिक है, तो सामान्य ब्रेकिंग होगा। यदि ट्रेन की गति अनुमत सीमा से 7 किमी/घंटा अधिक है, तो पूर्ण ब्रेक लागू होगा। अगर ट्रेन की गति अनुमत सीमा से 9 किमी/घंटा अधिक है, तो आपातकालीन ब्रेक लागू होगा।

कवच 4.0 के एक सुरक्षा प्रणाली होने के नाते, कवच अनुमोदन को प्रमाणित होने से पहले अंतरराष्ट्रीय मानकों पर सावधानीपूर्वक परीक्षण की आवश्यकता होती है। इसके विकास और इसके प्रमाणन के बाद, रेलवे मिशन मोड में कवच की लगाने को गति देने जा रही है। इस समय कई निर्माता इस प्रणाली को विकसित कर रहे हैं जो विकास के विभिन्न चरणों में हैं।

दक्षिण मध्य रेलवे में 1465 किलोमीटर मार्ग पर कवच पहले से ही लागू है, और दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा मार्ग पर 3,000 किलोमीटर के मार्ग पर कवच 4.0 में अपग्रेड करने का कार्य प्रगति पर है। सभी लगभग 10 हज़ार लोकोमोटिव पर अगले 4 वर्षों में कवच उपकरण लगाने का लक्ष्य है।

जानकारी के अनुसार दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा मार्ग के कुल 2949 किलोमीटर के मार्ग पर लगभग 80 प्रतिशत मार्ग पर ओएफसी बिछाई जा चुकी है, 95 प्रतिशत से अधिक टाॅवर लगाए जा चुके हैं। 70 प्रतिशत से अधिक स्टेशनों पर स्टेशन कवच उपकरण लगाए जा चुके हैं। ट्रैकसाइड उपकरण भी 50 प्रतिशत मार्ग पर लग चुके हैं तथा 45 फीसदी से अधिक लोको भी कवच लोको उपकरण युक्त हो चुके हैं।

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