क्या भारत में शिक्षकों का महत्व कम हो रहा है ?

गुरुवार को पूरे देश में महान शिक्षाविद, दार्शनिक तथा देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया गया. प्रतिस्पर्धा के इस युग में ऐसा लगता है कि आजकल शिक्षक का महत्व कम होता जा रहा है. शिक्षा को करियर का माध्यम मान लिया गया है और शिक्षक को वेतन भोगी कर्मचारी ! भारत में प्राचीन काल से ही ज्ञान की परंपरा रही है. ज्ञान को दान करने वाले गुरु को ईश्वर से भी अधिक महत्व दिया गया है. इसलिए भारत में शिक्षक का जितना महत्व होना चाहिए उतना आज नजर नहीं आता. विद्यालयों में स्थिति यह है कि शिक्षक विद्यार्थी को निखारने के लिए सजा भी नहीं दे सकता. शिक्षक द्वारा सजा दिए जाने से बवाल मच जाता है.एक समय ऐसा था कि पूर्व विद्यार्थी, यदि शिक्षक को कहीं देख लेता था तो झुक कर चरण स्पर्श करता था. आज वो बात नहीं है. शिक्षक भी अब वैसे नहीं है. जिस तरह से अधिकांश डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में नाम मात्र को जाते हैं और निजी प्रैक्टिस करते हैं इस तरह अधिकांश शिक्षक भी विद्यालयों में पढ़ाने की औपचारिकता करते हैं.जबकि उनकी असली कमाई का जरिया ट्यूशन और कोचिंग होता है. यह सब स्थितियां अपनी जगह है लेकिन इसके बावजूद देश में शिक्षक को जो सम्मान मिलना चाहिए, जो वेतन मिलना चाहिए वो नहीं मिल रहा है. सरकारी शिक्षकों का वेतन जरूर अच्छा है लेकिन निजी विद्यालयों और संस्थानों में उनका शोषण हो रहा है. शिक्षा के सुधारों और शिक्षा नीति बनाते समय शिक्षक के महत्व को भी रेखांकित किया जाना चाहिए. दरअसल,शिक्षकों का हमारी जिंदगी में बहुत महत्व होता है. जो शिक्षक बच्चों को जीवन जीने का सलीका सिखा सके, समाज को नेतृत्व दे सके, ऐसे ही शिक्षक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन और डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम हुए हैं जिन्होंने देश को सीखने व जल्द विकसित होने की भूख पैदा की है. भारत में लाखों विद्यार्थी ऐसे अच्छे अध्यापकों का इंतजार बेसब्री से कर रहे हैं.शिक्षक के दायरे में केवल बच्चों को किताबी ज्ञान बांटना या फिर सीखने के प्रतिफल को कक्षा कक्ष में उतारना ही नहीं बल्कि विद्यार्थियों में जीवन कौशलों का विकास करते हुए उन्हें आधुनिक जीवन के संघर्ष से अवगत कराना और नशे से बचाना भी शामिल है.अध्यापक दिवस पर अध्यापकों से नई उभरती हुई अपेक्षाएं व चिंताएं भी हैं.नई शिक्षा नीति, नई पाठ्यचर्या एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकास तुरंत व महत्वपूर्ण ध्यान चाहते हैं. यह उदारीकरण, निजीकरण, भूमंडलीकरण, विश्व व्यापार संगठन, सूचना एवं संचार तकनीकी, नव शैक्षिक प्रयोग, खुली अधिगम प्रणाली, जीवन कौशलों का विकास आदि विशेषताएं शिक्षकों में विशेष तौर पर अपेक्षित रहेंगी. किसी भी देश के अध्यापक तथा वहां की शिक्षा नीति पर यह निर्भर करता है कि उस देश का विकास मानव विकास में परिवर्तित हो और विद्यालय ही एक ऐसी जगह है, जहां से यह संभव है.भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 अध्यापकों के मानकों को बढ़ाने एवं वर्तमान स्थिति में परिवर्तन की कल्पना करती है.शिक्षकों से यह अपेक्षा है कि वे पढ़ाने व लेक्चर देने के बजाय फैसिलिटेटर और मैंटर के रूप में कार्य करें.अध्यापक कक्षा कक्ष में इस तरह से सिखाएं कि बच्चों के बीच रचनात्मक, जिज्ञासा, ज्ञान व सूचना की भूख बढ़े. शिक्षा में सूचना प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रचार व प्रसार एवं बच्चों में इसकी लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए शिक्षकों से यह अपेक्षा है कि वे डिजिटल रूप से भी साक्षर हों और कक्षा कक्ष में इंटरनेट व कंप्यूटर के माध्यम से बच्चों को प्रतिदिन पढ़ाएं व सिखाएं ताकि सीखने के मानकों (स्टैंडर्ड) में प्रगति सुनिश्चित की जा सके और अध्यापक बच्चों में समग्र विकास की लौ जगा सकें.आर्थिक सहयोग और विकास संगठन की रिपोर्ट के अनुसार लक्जमबर्ग में दुनिया में सबसे अधिक वेतन पाने वाले शिक्षक हैं.इसके अतिरिक्त स्विट्जरलैंड, जर्मनी, नॉर्वे, डेनमार्क, अमरीका, मैक्सिको, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड हैं, जहां शिक्षकों को सबसे ज्यादा सैलरी मिलती है और वे अपने आप को सम्मानित महसूस करते हैं. भारत में शिक्षकों की दशा को सुधारने के लिए व्यापक प्रयासों की जरूरत है. सरकार और निजी संस्थाओं को इस बारे में ध्यान देना चाहिए तभी शिक्षक दिवस की सार्थकता होगी.

 

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