पश्चिम बंगाल की कानून और व्यवस्था की स्थिति पर सवालिया निशान लंबे समय से लगते रहे हैं. बिहार के बारे में कहा जाता था कि वहां जंगल राज है लेकिन वास्तविक जंगल राज किसी को देखना है तो पश्चिम बंगाल इसकी सबसे सही मिसाल है. पश्चिम बंगाल में किसी भी स्तर का चुनाव हो वहां हिंसा होती ही है.सबसे अधिक राजनीतिक हत्याएं भी पश्चिम बंगाल में होती हैं. डॉक्टर बेटी की हत्या और उसके दुष्कर्म के बाद पश्चिम बंगाल में जो चल रहा है उसे अराजकता के लक्षण ही माने जाना चाहिए. यह समझ से परे है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री आर्मी मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रमुख डॉक्टर संदीप घोष को किसी भी हद तक बचाने की कोशिश क्यों कर रही है ? जब वह खुद कह चुकी हैं कि दोषियों को फांसी की सजा मिलनी चाहिए तो फिर वो निष्पक्ष जांच में अड़ंगा क्यों लगा रही हैं ? पूरे देश को तो छोडि़ए खुद तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को लग रहा है कि कोलकाता पुलिस पीडि़ता के पक्ष में नहीं बल्कि आरोपी के पक्ष में काम करती दिख रही है ? हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता पुलिस की फंक्शनिंग को लेकर बेहद गंभीर टिप्पणियां की हैं. यदि ममता बनर्जी की सरकार जांच को सचमुच प्रभावित नहीं करना चाहती तो उसे अविलंब कोलकाता पुलिस के कमिश्नर को अपने पद से हटा देना चाहिए. पश्चिम बंगाल की सरकार साफ तौर पर आरोपी के पक्ष में खड़ी दिख रही है. इसी वजह से वहां दिन ब दिन आक्रोश बढ़ता जा रहा है. इस आक्रोश को ठंडा करने की बजाय मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद उकसावे की राजनीति कर रही हैं. पहले तो उन्होंने सडक़ पर आकर आंदोलन किया और अब बुधवार को पार्टी के कार्यक्रम में देशभर में आग लगाने की बात कह दी. दरअसल,ममता बनर्जी का रवैया पूरी तरह से गैर जिम्मेदाराना है. उनके भाषण ऐसे होते हैं जैसे कोई प्रतिपक्ष का नेता बोल रहा हो. कभी ममता दीदी शासनकर्ता की तरह ना तो व्यवहार करती हैं ना भाषण देती हैं. ऐसे में पश्चिम बंगाल में धारा 356 लगाने की मांग की जा रही हो तो उसमें आश्चर्य क्या ? दरअसल, पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ राज्य के भीतर और शेष पूरे देश में भयंकर गुस्सा है . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ममता बनर्जी की सरकार को बर्खास्त करने का चौतर$फा दबाव है, इसके बावजूद सरकार और संगठन के उच्च पदस्थ सूत्र बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी ममता सरकार को बर्खास्त करने के कतई पक्ष में नहीं है. मोदी और शाह की जोड़ी नहीं चाहती कि सरकार को बर्खास्त कर ममता बनर्जी को राजनीतिक रूप से शहीद होने का मौका दिया जाए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पिछले 10 वर्ष के कार्यकाल में केवल एक बार उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्थगित कर दिया था. इस एक अपवाद के अलावा नरेंद्र मोदी की सरकार ने कभी किसी राज्य सरकार को बर्खास्त नहीं किया.बहरहाल, ऐसा सब बहुत कम होता है कि राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति ने कभी किसी राज्य की घटनाओं पर टिप्पणी की हो. मौजूदा महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पश्चिम बंगाल की घटनाओं पर टिप्पणी की है.राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू बेहद संजीदा, सौम्य और सरल नेता मानी जाती हैं. आमतौर पर सार्वजनिक रूप से उन्होंने कभी भी नाराजगी जाहिर नहीं की लेकिन पश्चिम बंगाल की घटनाओं ने उन्हें भी विचलित कर दिया है.राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कोलकाता में हुई डॉक्टर बेटी की रेप-हत्या की घटना पर पहली बार मुंह खोलते हुए कहा है कि वह हताश और संत्रस्त हैं.अब बहुत हो गया ! राष्ट्रपति की इस टिप्पणी को भी गंभीरता से लेने की आवश्यकता है. बहरहाल,यह सही है कि पश्चिम बंगाल की घटनाएं देश के लिए अच्छी नहीं है इसके बावजूद किसी भी निर्वाचित सरकार को बर्खास्त करना इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता. इस संबंध में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पश्चिम बंगाल के अधिकारियों से चर्चा करनी चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ममता बनर्जी से चर्चा करके उनसे राज्य की स्थिति सुधारने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए कह सकते हैं. इसके अलावा केंद्र के पास धारा 355 लगाने का विकल्प भी है. जाहिर है धारा 356 की फिलहाल पश्चिम बंगाल में आवश्यकता नहीं दिखती.