ग्वालियर चंबल डायरी
हरीश दुबे
सिंधिया के लोकसभा के लिए चुने जाने के चलते प्रदेश में राज्यसभा की एक सीट खाली हुई तो इस पर ग्वालियर चंबल के ही नए और पुराने भाजपा नेताओं की निगाहें लगी थीं, हालांकि इस सीट से राज्यसभासद् चुने जाने वाले नेता को सिर्फ दो साल का ही कार्यकाल मिलता लेकिन कभी शीर्ष पर रहे और अब राजनीतिक बेरोजगारी झेल रहे नेताओं को यह भी कुबूल था। लेकिन पीतांबरा नगरी के नरोत्तम और ग्वालियर के बजरंगी नेता से लेकर सिंधिया के लिए अपने टिकट की कुर्बानी देने वाले केपी की उम्मीदें टूट गईं जब केरल से आने वाले केंद्रीय मंत्री जार्ज कुरियन यह टिकट ले उड़े। संसद के उच्च सदन के लिए दौड़ धूप करने वाले ग्वालियर के ये तीनों नेता हाईकमान के इस निर्णय पर कोई टिप्पणी न करते हुए फिलवक्त चुप हैं। विवाद से बचने केपी तो फोन ही नहीं उठा रहे हैं।
इन तीनों ने शायद रहीम की इन पंक्तियों को आत्मसात कर लिया है- रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर, जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥ शिवराज सरकार के दौर में नरोत्तम प्रदेश की सत्ता के बड़े केंद्र बने रहे। ऑपरेशन लोटस को कामयाब कर सूबे की सत्ता में भाजपा की वापसी कराने से लेकर चुनाव के वक्त बडी संख्या में कांग्रेस नेताओं को भाजपा में शामिल कराने तक में उनकी अहम भूमिका रही थी लेकिन 23 के चुनाव में अपने कांग्रेसी चिरप्रतिद्वन्दी के मुकाबले मिली पराजय ने समीकरण बिगाड़ दिए। राज्यसभा के रास्ते केंद्रीय राजनीति में जाने का सपना भी टूट गया। गुना के केपी यादव को तो सीधे अमित शाह से सम्मानजनक पुनर्वास का भरोसा जनसभा के मंच से मिला था, वह भी पूरा नहीं हुआ। कुछ ऐसी ही बजरंगी नेता के साथ गुजरी है। अनुशासन में बंधी कैडरबेस पार्टी में अंदर की बात को बाहर कहने की परंपरा नहीं है, लिहाजा उच्च सदन के माननीय बनने से वंचित नेता मन मसोस कर बैठे हैं।
नहीं दोहराई गई दो अप्रैल की दर्दीली दास्तां…
अंततः प्रशासन के इंतजाम कामयाब रहे और भारत बंद बिना किसी हंगामे, तोडफोड़ और हिंसा के शांतिपूर्वक निबट गया। आरक्षण में क्रीमीलेयर के मसले पर बंद का कॉल होते ही पुलिस और प्रशासन के साथ अंचलवासियों के हाथ-पैर दो अप्रैल 2018 के वाक्यात को याद कर फूल गए थे, तब भी दलित संगठनों ने एट्रोसिटी एक्ट के मसले पर बंद बुलाया था। तत्कालीन प्रशासन इसे साधारण बंद ही मानता रहा और इंतजाम नाकाफी रहने से भड़की हिंसा में करीब आधा दर्जन लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा और दर्जनों लोग बुरी तरह घायल हुए। सरकारी संपत्ति से लेकर निजी माल असबाब को नुकसान पहुंचा सो अलग।
बहरहाल, इस मर्तबा प्रशासन पहले से ही अलर्ट था। बंद का कॉल भीम आर्मी, आजाद समाज पार्टी, भारत आदिवासी पार्टी और दलित उत्थान संघर्ष समिति ने किया था, बसपा भी साथ थी। बंद के इंतजामों को लेकर कलेक्टर और एसपी ने अफसरों की कई मैराथन बैठकें लीं। रैली, धरना व प्रदर्शन पर पाबन्दी लगाते हुए शहर की सड़कों पर तीन हजार जवान तैनात कर दिए गए। हालांकि बंद को शांतिपूर्ण निबटाने में दलित संगठनों के सकारात्मक तेवरों की भी भूमिका रही। कहीं भी टकराव की नौबत नहीं बनी। प्रशासन सुकून से है और दलित संगठन भी खुश हैं कि बिना किसी बवाल के उन्होंने अपनी बात सरकार तक पहुंचा दी है।
ग्वालियर में आएंगे नए उद्योग धन्धे
भारत बंद का कॉल पुरअमन निबट गया लेकिन प्रशासन की चुनौतियाँ खत्म नहीं हुई हैं। इस 28 अगस्त को ग्वालियर में हो रही रीजनल इंडस्ट्री काँक्लेव में देश विदेश से हजारों उद्योगपति जुट रहे हैं। प्रशासन के तमाम आला अफ़सरान इस जलसे को निर्विध्न बनाने में जुटे हैं। उम्मीद लगाई गई है कि इस काँक्लैब से देश के उद्योग नक्शे पर ग्वालियर की सूरत में चार चाँद लगेंगे। यह सच है कि पिछले कुछ दशकों में ग्वालियर का औद्योगिक ग्राफ गिरता गया है।
यहाँ उद्योग बंद ही होते गए, नए नहीं खुले। कभी यहाँ मालनपुर और बानमोर में इंडस्ट्रीयल एरिया बसाए गए थे लेकिन एमपी आयरन और हॉटलाइन जैसे तमाम बड़े कारखाने बंद होने से हजारों लोग बेरोजगार हुए। एक बात और, करीब एकसौ इंडस्ट्रीज ने यहाँ उद्योग विभाग से जमीन तो ले ली लेकिन यहाँ कारखाने नहीं डाले। बहरहाल, ग्वालियर में औद्योगिक क्रांति लाने के मकसद से ही सूबे के नए सीएम मोहन यादव की पहल पर ग्वालियर में यह रीजनल इंडस्ट्री काँक्लैब आयोजित की जा रही है। हमारा कहना यही है कि इस उद्योग मेले में होने वाले एमओयू और करारनामे कागजों से जमीन पर भी उतरें…!
बुरे फंसे पार्षद के पिताजी…
नरेंद्र सिंह से लेकर भारत सिंह जैसे बड़े नेताओं तक के बारे में फ्रीस्टाइल उवाच करने वाले भाजपा नेता भीकम खटीक पार्टी का नोटिस मिलते ही माफी की मुद्रा में आ गए हैं, हालांकि वे वायरल वीडियो में कांटछांट की बात कह कर इसे अपने खिलाफ साजिश करार भी दे रहे हैं लेकिन अंदरखाने खबर है कि पार्टी ने उनके खिलाफ कड़ा एक्शन तय कर लिया है