महाकाल लोक में बनी 87 दुकान खा रही धूल
रेस्टोरेंट भी बंद, नहीं बेच पा रहे फूल
उज्जैन. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकाल लोक का लोकार्पण 11 अक्टूबर 2022 को किया था. उसके बाद उज्जैन को विकास के पंख लग गए. बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की वजह से रोजगार के वैकल्पिक साधन उपलब्ध हुए, इसमें एक बड़ा दावा महाकाल लोक की दुकानों को बनाकर जिला प्रशासन द्वारा किया गया था. दुकान तो बनकर तैयार है उनका आवंटन और रजिस्ट्री अब तक नहीं हो पाई है.
महाकाल लोक परिसर में 87 दुकानें बनाई गई जिसमें तीन विभागों द्वारा इन दुकानों को देने की प्रक्रिया हुई, जिसमें व्यापारी इन दुकानों को खरीद ओर ज्यादा उलझ कर रह गए. व्यापारियों को अब तक ना दुकान मिली है ना उनकी राशि वापस लौटाई जा रही है.
किसी को नहीं पता कौन देगा दुकान
व्यापारियों को समझ में नहीं आ रहा है कि दुकान नगर निगम देगी, स्मार्ट सिटी देगी या महाकाल मंदिर के माध्यम से ये दुकानें उपलब्ध होगी. 20 दुकान अलग है व 67 दुकान अलग है. इन दुकानों में हारफूल, पूजन सामग्री से लेकर रेस्टोरेंट खोलने की योजना के साथ दुकान बनाई गई थी.
करोड़ों खर्च नतीजा सिफर
महाकाल लोक की इन दुकानों के बदले करोड़ों रुपए जिला प्रशासन को प्राप्त होना है. हालांकि यह सारी दुकान महाकाल मंदिर को हेंडओवर हो गई है तो राशि भी मंदिर को ही प्राप्त होगी. यह दुकान महाकाल मंदिर क हेंड ओवर के पहले से विवाद शुरू हुए जो अब तक नहीं थमे. इन दुकानों के लिए 600 लोगों ने टेंडर डाला था, अब दुकान खरीदने वालों के लाखों रुपए फस गए हैं ना तो उन्हें दुकानें मिल पा रही है न उनकी राशि उन्हें वापस प्राप्त हो पा रही है.
कोर्ट पहुंच गया विवाद
ये सभी दुकान कब कैसे मिलेगी ये इन दुकानदारों को नहीं पता, इसमें 10 बड़ी दुकान भी है. मामला यदि उज्जैन नगर निगम स्मार्ट सिटी या महाकाल मंदिर समिति तक ही सीमित रहता तो बात अलग थी, अब यह पूरा मसला हाई कोर्ट की दहलीज पर पहुंच चुका है. 25 नवंबर 2021 को जो दुकान महाकाल मंदिर के पीछे से हटाई गई थी जिसमें लगभग 30 दुकानदार प्रभावित हुए थे. उसमें से 9 लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. दुकान के बदले दुकान नहीं देने की शिकायत कोर्ट में की गई.
दुकान नीलाम का विरोध
दुकानों को नीलाम करने का विरोध भी इन दुकान लेने वालों द्वारा किया जा रहा है. इधर बड़े व्यापारियों ने भी टेंडर डाला है, जिसमें 35 लख रुपए से लेकर 1 करोड़ से भी ऊपर तक की दुकान व्यापारियों को पड़ी है. कुल मिलाकर छोटे व्यापारियों से लेकर बड़े उद्योगपतियों तक अब महाकाल मंदिर से लेकर नगर निगम और स्मार्ट सिटी के चक्कर लगाए जा रहे हैं वहीं कोर्ट में भी तारीख है चल रही है.
रजिस्ट्री नहीं हो पा रही
कुल मिलाकर दुकानों का आवंटन और रजिस्ट्री नहीं होने से व्यापार व्यवसाय प्रारंभ नहीं हो पा रहा है और दुकान में भी धूल खा रही है. उधर जो श्रद्धालु महाकाल परिसर में घूमने के लिए आते हैं उन्हें भी खाद्य सामग्री नहीं मिल पाती है। अब तक दुकान खरीदने वालों को यह भी नहीं पता है कि इसमें स्मार्ट सिटी का क्या रोल है, नगर निगम की क्या भूमिका है और महाकाल मंदिर समिति कब दुकान मुहैया कराएगी.
इनका कहना है…
हमने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है, क्योंकि जिला प्रशासन हमें दुकान नीलाम कर रहा है, जबकि हमें यह दुकान नीलामी में नहीं लेना है. इस तरह खरीदना नहीं है दुकानें, हमारे पास इतना रुपया होता तो हम कोर्ट क्यों जाते हैं. हमें तो दुकान चाहिए थी.
– प्रभात शर्मा, याचिकाकर्ता