जमीन अधिग्रहण के मसले कोर्ट कचहरी में उलझने से आवासीय योजना पर लगा ग्रहण
प्रमोद व्यास
उज्जैन. स्वयं के आशियाने का सपना देखने वाले हितग्राहियों ने एक-एक पैसा जोड़कर खून पसीने की गाड़ी कमाई हाउसिंग बोर्ड में जमा की थी, सभी सरकारी स्वीकृति मिलने के बावजूद जमीन का मसला कोर्ट में गया, इस कारण ना तो शहर को नई विकासात्मक सौगात मिल पा रही है, न ही हितग्राहियों को उनकी छत मिल पा रही है. हाउसिंग बोर्ड में लाखों रुपए की राशि जमा है सो अलग.
भरतपुरी स्थित मध्य प्रदेश गृह निर्माण मंडल (हाउसिंग बोर्ड) की ऐसी दो योजनाएं वर्षों से आकर नहीं ले पा रही है, जिनकी जमीन अधिग्रहण हाउसिंग बोर्ड द्वारा कर ली गई थी. शासन को लाखों करोड़ों रुपए जमा भी कर दिए गए, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से लेकर नगर निगम, रेरा परमिशन से लेकर डायवर्सन और डेवलपमेंट भी कर दिया गया, बावजूद इसके आवासीय योजनाएं कोर्ट कचहरी से लेकर मालिकाना हक को लेकर उलझ गई जिसमें अब तक यह भी स्पष्ट नहीं है कि यह योजनाएं आकर ले पाएगी या नहीं.
जमीन विवाद नंबर 1
उज्जैन में नानाखेड़ा बस स्टैंड के आगे इंजीनियरिंग कॉलेज के सामने गुलाब की खेती की जाती थी, यह जमीन उज्जैन हाउसिंग बोर्ड ने किसानों से अधिग्रहित की. वर्ष 2007 में 1 करोड़ की राशि शासन को जमा की गई. इस जमीन के एक टुकड़े पर 33 मकान बनाकर बेच भी दिए. बाकी बची जमीन पर एलआईजी मकान बनाने के लिए टेंडर कर दिए गए. मकान बनाना शुरू होने के बाद 27 लोगों ने लगभग 40 लाख रुपए की राशि हाउसिंग बोर्ड में जमा करवा दी. इधर किसानों ने फिर कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया और उनके पक्ष में इंदौर हाई कोर्ट ने निर्णय दे दिया और जमीन पर अपने आधिपत्य का बोर्ड भी लगा दिया हालांकि 24 जून 2024 को एक बार फिर हाउसिंग बोर्ड की रिव्यू पिटीशन पर स्टे आ गया. कुल मिलाकर जमीन का मसला उलझने से न सिर्फ सौगात पर ग्रहण लग गया बल्कि हितग्राहियों की राशि भी लगभग 50 लाख रुपए उलझ गई और उन्हें मकान भी नहीं मिले.
जमीन विवाद नंबर 2
इसी तरह उदयन मार्ग पर निमनवासा क्षेत्र में एक और आवासीय योजना 1997 से लेकर अब तक उलझी हुई है. वर्ष 2001 में इस जमीन पर जब हाउसिंग बोर्ड काम शुरू करने गया तो विवाद प्रारंभ हो गया. किसान गजानन माली ने भू अर्जन को लेकर अपना दावा ठोक दिया. यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट में है. हालांकि 9 जुलाई 2024 को हाउसिंग बोर्ड के पक्ष में एक स्टे आया है जिसमें ओआईसी से लेकर वकील और बाकी अधिकारी रिकॉर्ड और फाइल लेकर लगातार सुप्रीम कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं. इस उलझे प्रोजेक्ट के आसपास रेलवे पटरी तक काफी जमीन रिक्त पड़ी है, जहां जनहित की योजनाएं बन सकती है, बशर्ते हाउसिंग बोर्ड शिद्दत से अपना पक्ष मजबूती से रखकर हितग्राहियों के पक्ष में निर्माण कार्य शुरू कर पाए.
इनका कहना है…
गुलाब की खेती वाली इंदौर रोड पर जो जमीन है उस पर हमारा दावा अभी भी मजबूत है, हम यहां आवासीय योजना जरूर बनाएंगे. अभी रिव्यू पिटीशन जो दायर की थी उसमें हमारे पक्ष में स्टे आ चुका है, रही बात उदयन मार्ग वाली निमानवासा स्कीम की तो वहां से भी सुप्रीम कोर्ट से स्टे मिल गया है जल्द ही यह प्रोजेक्ट भी आगे बढ़ेगा.
– निर्मल गुप्ता, कार्यपाली यंत्री, हाउसिंग बोर्ड, उज्जैन