भोपाल, 20 जुलाई (वार्ता) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्य क्षेत्र कार्यकारिणी सदस्य यशवंत इंदापुरकर ने कहा कि भारत 1947 में स्वतंत्र हो गया, लेकिन उसे स्वाधीनता में बदलने का आंदोलन अभी चल रहा है और अंग्रेजों ने कुटिलतापूर्वक शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन कर भारत को मानसिक गुलाम बना दिया।
श्री इंदापुरकर कल विश्व संवाद केंद्र की ओर से आयोजित देवर्षि नारद जयंती समारोह एवं परिचर्चा को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत 1947 में स्वतंत्र हो गया, लेकिन उसे स्वाधीनता में बदलने का आंदोलन अभी चल रहा है और अंग्रेजों ने कुटिलतापूर्वक शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन कर भारत को मानसिक गुलाम बना दिया। इससे उबरने का एक ही तरीका है- जनजागरण। यही कार्य देवर्षि नारद करते थे।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में दूरदर्शन के वरिष्ठ संपादक अशोक श्रीवास्तव उपस्थित थे। अध्यक्षता विश्व संवाद केंद्र न्यास के अध्यक्ष लक्ष्मेंद्र माहेश्वरी ने की।
‘सांस्कृतिक पुनर्जागरण और मीडिया की भूमिका’ विषय पर श्री इंदापुरकर ने कहा कि डॉ हेडगेवार ने 1911 में कहा था कि समाज में जागरुकता और प्रशिक्षण बेहद आवश्यक है। सभी मनीषियों का मानना है कि जब तक संपूर्ण समाज नहीं बदलेगा, तब तक भारत के पुनरुत्थान का स्वप्न पूरा नहीं हो सकता।
उन्होंने कहा कि देवर्षि नारद का नाम कलह कराने वाले के रूप में ही प्रचारित किया जाता रहा है, लेकिन उस विचार को बदलने का काम हम सबने किया है। अब पत्रकारों ने अपने आद्य पुरुष को पहचान लिया है। जब हम सांस्कृतिक पुनर्जागरण की बात करते हैं तो हमें अपने आसपास घटित होने वाली सकारात्मक चीजों को भी देखना होगा।
इस अवसर पर प्रख्यात पत्रकार एवं डीडी न्यूज नई दिल्ली के संपादक अशोक श्रीवास्तव ने कहा कि हमें बचपन से पाठ्यक्रम में अकबर की वंशावली पढ़ाई गई, लेकिन राम की नहीं। यह सब योजना पूर्वक किया गया। हमें किताबों में यह तो पढ़ाया गया कि अकबर महान थे। बाबर महान थे। प्राइमरी से हमें अकबर की वंशावली पढ़ाई गई, लेकिन राम की वंशावली नहीं पढ़ाई गई। इस प्रकार भारत की सांस्कृतिक विरासत को खत्म किया गया।
उन्होंने राम मंदिर आंदोलन को पुनर्जागरण का सबसे बड़ा प्रतीक बताया।