आखिरकार मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के निर्देश पर इंदौर के कलेक्टर आशीष सिंह ने बीआरटीएस क्षेत्र में रात भर दुकान खुली रखने के पुराने परिपत्र को समाप्त कर नाइट कल्चर की इति श्री कर दी. देखा जाए तो नाइट कल्चर इंदौर पुलिस की अक्षमता की भेंट चढ़ गया. पुलिस कर्मियों की लापरवाही और कथित भ्रष्टाचार के कारण एक प्रयोग विफल हो गया. हालांकि इस फैसले का व्यापक स्वागत किया जा रहा है, क्योंकि आम जनता नाइट कल्चर के खिलाफ थी. इस मामले में लंबे समय से मांग की जा रही थी जो अब जाकर पूरी हुई है. नाइट कल्चर को मेट्रो सिटी की ओर बढ़ते इंदौर के लिए आवश्यक बताया जा रहा था. यह भी कहा जा रहा था कि इससे आईटी उद्योग में काम कर रहे हैं प्रोफेशनल्स को फायदा होगा. इस नाइट कल्चर का आईटी प्रोफेशनल्स ने कितना फायदा उठाया यह तो पता नहीं चला लेकिन दो साल पहले लिए गए इस फैसले का बुरा असर यह रहा कि महज 11 किलोमीटर के दायरे में चार हत्याएं, सौ से ज्यादा मारपीट और हमले के प्रकरण तथा नशे के हालात में अनेक रोड एक्सीडेंट की घटनाएं हो गई. इसके अलावा इस क्षेत्र से खड़े हुए विवाद अन्य इलाकों तक भी पहुंचे जिनकी गणना ही नहीं है.नाईट कल्चर को परिभाषित बड़े अच्छे ढंग से किया गया था.पर फैसला लेने वालों ने इसे एक तरफा रूप से लागू कर दिया.पहले ना तो जनप्रतिनिधियों के साथ रायशुमारी की गई और न ही जनता का पक्ष जाना गया. बस हम सब आजाद है की तर्ज पर उन्मुक्त, उन्मादी और उच्श्रृंखल युवाओं की जद में पूरा शहर आ गया.बीते दो साल में सबसे ज्यादा तस्वीर बीआरटीएस की वायरल हुई है. बरसात में पूरे रोड पर भरने वाले पानी की या फिर नशे में बस लेन में घुसने वालों की. इस रोड़ पर स्थित बार, पब में होने वाले विवादों की तस्वीरें और वीडियों हो या पब से निकल कर सडक़ों पर झगड़े लड़ाई के सीन ! सब कुछ खूब वायरल हुआ. यह इंदौर की तासीर नहीं थी. यहां का युवा इतना गैर जिम्मेदार नहीं है. नशे में डूबती युवा पीढ़ी को गलत राह पर ले जाने वाले धंधेबाज राष्ट्रद्रोही लोग है जिन्होंने इस फैसले का सबसे ज्यादा फायदा उठाया और आज भी उठा रहे है.दरअसल, मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, हैदराबाद, बेंगलुरु जैसी मेट्रो सिटीज रात भर चालू रहती हैं,लिहाजा मिनी मुम्बई यानी इंदौर को भी जागना चाहिए.ठीक बात है जागना चाहिए पर शहर के किस हिस्से को जागना चाहिए ? बस स्टेंड, रेलवे स्टेशन, राजबाड़ा से सराफा बाजार ये वो हिस्से हैं जिन्हें खुला रखा जा सकता था. सराफा और राजवाड़ा चौक पर रात को 2 बजे तक दुकानें खुली रहती हैं लेकिन वहां नशे के कारण लड़ाई झगड़े की खबरें नहीं आती. जाहिर है बीआरटीएस नाइट कल्चर के लिए सही स्थान नहीं था. पिछले दो स्थान सालों में इस क्षेत्र में 20 से ज्यादा बार और पब्स खुल गए. इसका मतलब साफ है कि नाइट कल्चर का उपयोग शराब और नशीली वस्तुओं को खपाने में किया जा रहा था. नशे के आदि युवा इंदौर के आसपास के शहरों से रात को यहां आने लगे इससे और विवाद बढ़ा. बीआरटीएस के 11 किलोमीटर रास्ते में इंदौर पुलिस के पांच थाने लगते हैं. इन थानों के पुलिसकर्मी कथित रूप से वसूली में लग गए. जाहिर है पुलिस अपराध रोकने की बजाय अपराधियों को संरक्षण देने में लगी रही. इसी वजह से यह कथित नाइट कल्चर बदनाम हो गया. वास्तव में जिन आईटी प्रोफेशनल्स को रात को बाजार की जरूरत थी वो प्रोफेशनल्स बीआरटीएस की तरफ आने से घबराने लगे.दरअसल, धन कमाने के लिए धंधेबाजों ने खानपान की आड़ में नशा परोसने की दुकाने खोल ली.नाईट कल्चर तो अवैध कारोबार को बढाऩे का खास जरिया बन गया.
जाहिर है इस कल्चर को देर सवेर वापस लिए जाना था सो ले लिया गया. अब सवाल यह है कि नाइट कल्चर बंद होने से सैकड़ों की संख्या में बावर्ची, वेटर और रेस्टोरेंट उद्योग से जुड़े श्रमिक अचानक बेरोजगार हो गए. अब इनका क्या होगा ? जाहिर है इंदौर को नाइट कल्चर की आवश्यकता तो पड़ेगी. लेकिन इसके लिए पूरी तैयारी की जानी चाहिए. जनता और सामाजिक संगठनों से व्यापक विचार विमर्श किया जाना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अधिकतम दुकानें राजवाड़ा के आसपास की खुली रखी जाएं. इससे नशाखोरी को काबू करने में आसानी रहेगी क्योंकि राजवाड़ा क्षेत्र में बार और पब्स नहीं हैं.