नई पीढी से दूरी व योजनाओं के प्रभाव से राजगढ़ में हारे दिग्विजय

लाड़ली बहनों के प्यार और मोदी पर जनता के विश्वास से मजबूत हुई भाजपा

भाजपा के विरूद्ध कोई नेरेटिव बनाने में असफल रहीं कांग्रेस

भाजपा की नाराजगी योजनाओं ने दूर की, दिग्गी के प्रति आक्रोश को संघ ने हवा दी

गोविन्द बड़ोने

ब्यावरा 07 जून,का. दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेस के बड़े चेहरा का खुद के क्षेत्र से चुनाव हारना एक बड़ी राजनीतिक घटना है. कांग्रेस-भाजपा की हार-जीत की कोई एक वजह नहीं है. इसके कुछ प्रमुख कारण है जिसने दिग्विजय को उनके अपने क्षेत्र में बड़ी पराजय को मजबूर किया है.

राजगढ़ संसदीय क्षेत्र के चुनाव परिणाम की मौटे तोर पर समीक्षा करने में यह तथ्य सामने आता है कि कांग्रेस की नई पीढी से दूरी उसके लिये नुकसानदायक रही और योजनाओं से लाभांवित होने वाला वर्ग भाजपा के साथ मजबूती से खड़ा रहा.

दिग्विजय निश्चित ही प्रदेश व देश के बड़े नेता है लेकिन उनकी पिछले करीब एक दशक से सीधे तौर पर राजगढ़ संसदीय क्षेत्र के लोगो से संवादहीनता रही. इसमें नई पीढ़ी के लोगो से तो उनका कोई संवाद कभी नहीं रहा. वे सिर्फ उन युवा इंका कार्यकर्ताओं के संपर्क में रहे जो किसी पद पर रहे अथवा किसी इंका नेता के समर्थक अथवा विरोधी गुट में शामिल रहे. श्री सिंह का युवाओं से संपर्क भी उस समय अधिक होता था जब विधानसभा अथवा नगरीय निकायों के चुनाव सामने होते थे.

सामान्यत: श्री सिंह नई पीढ़ी से दूर ही रहे. इस तथ्य को उन्होंने समझ लिया था. इस खाई को पाटने के लिये ही उन्होंने पदयात्रा की थी. इससे कांग्रेस से जुड़े परिवारों के युवा तो उनके साथ हो लिये लेकिन आम युवाओं को जोडऩे में वे असफल रहे. इस संवादहीनता ने उन्हें चुनाव में कमजोर कर दिया.

भाजपा प्रत्याशी रोडमल नागर प्रारंभ में अपनी ही पार्टी में बैगाने हुए लेकिन उनका बारंबार माफी मांगना, संघ व संगठन ने बंद कमरे में कार्यकर्ताओं को राष्ट्र की प्रगति के लिये मोदी के हाथ मजबूत करने की सीख देने व राष्ट्र की सुरक्षा के लिये मोदी युग की निरंतरता को जरूरी बताकर कार्यकर्ताओं के आक्रोश को समर्थन में बदलने का पूरा प्रयास किया.

भाजपा के लिये संघ की टीम ने गांव-गांव इंका प्रत्याशी दिग्विजय सिंह के विरूद्ध उसके द्वारा पूर्व से फैलाई गई नकारात्मकता को समाज में पुन: उबारने में कोई कसर नहीं छोड़ी. गांव-गांव उन्हें गाय विरोधी, देश विरोधी, वर्ग विशेष का हितेषी, धर्म विरोधी आदि नकारात्मक पक्षों को सामने रख उद्वेलित करने का प्रयास किया. इसमें तो भाजपा सफल रही ही उसने लाड़ली बहनों तक पहुंचने के लिये विशेष तौर पर रणनीति बनाकर उसे अंजाम दिया. भाजपा के पास संसदीय क्षेत्र में 8 में से 6 विधायक थे, संघ-संगठन का मजबूत नेटवर्क था, दो मंत्री थे इसका लाभ उसने लिया.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अभाव में राष्ट्र कमजोर हो जायेगा और इसके दुष्परिणामों से समाज को अवगत कराने में भाजपा सफल रही. इसके साथ ही भाजपा को पीएम आवास योजना, किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं के लाभार्थी को अपने पक्ष में बनाएं रखने में सफल रही.

भाजपा के पास दिग्विजय सिंह के विरूद्ध बोलने व अपनी योजनाओं से जनता को प्रभावित करने का आधार था लेकिन दिग्विजय के पास ऐसा कोई हथियार नहीं था जिसके बल पर वो भाजपा को पटकनी दे दे. कांग्रेस ने चुनाव को भाजपा प्रत्याशी रोडमल नागर विरूद्ध दिग्विजय करने का पूरा प्रयास किया लेकिन दिग्विजय सिंह खुद नरेन्द्र मोदी के विरूद्ध अधिक मुखर रहे. उन्हें लगा होगा कि उनकी जीत होती है तो वे राष्ट्रीय स्तर इसे खुद को नरेन्द्र मोदी के विरूद्ध जीत का आधार बनाने में सफल होंगे.

 

 

भाजपा संगठन ने दिग्विजय के सामने आने पर तमाम शक्ति झोंक दी और कांग्रेस भाजपा के आक्रोश में अपनी सफलता तलाशती रही. कांग्रेस न तो भाजपा के प्रतिबद्ध वोट को खिसका पाई न वह योजनाओं के लाभार्थियों का हृदय परिवर्तन कर पाई. कांग्रेस नई पीढ़ी से दूर रहने के साथ ही यहां बेरोजगारी, संविधान खत्म होने जैसे माहौल को अपने पक्ष में करने में सफल नहीं हुई. इससे बड़ी बात यह भी रही कि इस चुनाव में दिग्गी राजा को पारिवारिक सहयोग नहीं मिलता नजर आया. इंकाईयों ने इस तथ्य को दबी जबान से स्वीकार किया कि अगर युवाओं में गहरी पैठ रखने वाले जयवर्धन सिंह अपनी सक्रियता बढ़ाते तथा लक्ष्मण सिहं सकारात्मक नजर आते तो कांगे्रस के माहौल में परिवर्तन नजर आता.

 

 

कांग्रेस को इस चुनाव में जातिवाद का लाभ नहीं मिला, स्थानीय परिस्थितियों व विभिन्न समीकरणों के कारण पिछड़ा वर्ग उसके विरूद्ध गया, कांग्रेस का संगठन कमजोर रहा. कांग्रेस ने भाजपा के सत्ता में आने के बाद जातिवादी घटनाओं को छोड़ कभी जनता का साथ नहीं दिया इसलिये जनता से भी उसका जुड़ाव नहीं रहा. इसके साथ ही सबसे बड़ा कारण यह भी रहा कि दिग्विजय सिंह को उनके खुद के क्षेत्र राघौगढ़, चाचौड़ा ने निराश किया. इन तमाम कारणों के कारण जो कांग्रेस अपने को मजबूत और भाजपा प्रत्याशी को कमजोर मान रही थी उसी के हाथों 01, 46, 089 मतों से पराजित हो गई.

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