अभेद्य किला बनी जबलपुर लोकसभा सीट, हर बार बढ़ा वोट शेयर

महाकौशल की डायरी
अविनाश दीक्षित

महाकौशल की धुरी जबलपुर लोकसभा सीट भाजपा के लिए अभेद्य किला बनी हुई है। कांग्रेस ने उम्मीदवार बदलकर और सियासी रणनीतियों में अनेक बदलाव किये, किन्तु उसका कोई पैंतरा काम नहीं आया। इस बार भी दिनेश यादव के रूप में नया चेहरा मतदाताओं के बीच भेजा,मगर फिर भी उसे सफलता नहीं मिल सकी,इसके उलट भाजपा हर बार अपना वोट शेयर बढ़ाने में सफल रही है। जबकि कांग्रेस अपने वोट शेयर को स्थिर रख पाने में भी विफल रही। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव से अब तक के चुनाव के वोट शेयऱिंग के आकड़ों पर गौर करें तो 2004 के चुनाव मेंं भाजपा का मत प्रतिशत 54 प्रतिशत रहा जो हाल ही के लोकसभा चुनाव तक 68 प्रतिशत को पार कर गया। 2009 के आम चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत 54.29 प्रतिशत तक पहुंच गया।

2014 में 56.34 फीसदी तथा 2019 में 65.41 प्रतिशत रहा। 2024 के लोकसभा चुनाव में लगभग 8 प्रतिशत मतदान कम होने के बावजूद भाजपा प्रत्याशी आशीष दुबे 4 लाख 86 हजार से अधिक मतों से रिकार्ड जीत हासिल करने में सफल रहे। भाजपा का वोट शेयर 68.03 प्रतिशत रहा। बात कांग्रेस की करें तो 2004 के कुल मतदान 42.49 प्रतिशत में कांग्रेस का वोट शेयर 37.12 फीसदी तथा 2009 में हुये चुनाव में 37.56 प्रतिशत रहा। इसके बाद हुये चुनावों में कांग्रेस का उक्त वोट शेयर का ग्राफ नीचे की ओर ही गिरता रहा। 2014 के लोकसभा चुनाव में 35.52 तथा 2019 में 29.42 प्रतिशत तक गिर गया।

2024 में भी कांग्रेस प्रत्याशी 4,86,674 के विशाल अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी दिनेश यादव को पराजय को सामना करना पड़ा। केवल 2004 के चुनाव में जब कांग्रेस ने स्व. विश्वनाथ दुबे को अपना प्रत्याशी बनाया था,तब भाजपा से पहली बार चुनाव मैदान में उतरे राकेश सिंह सिर्फ 99531 मतों से जीते थे। इसके बाद 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने प्रत्याशी बदलकर रामेश्वर नीखरा को मैदान में उतारा, किन्तु वह राकेश सिंह से 1,06,003 मतों से हार गये। लिखने का आशय यह कि भले ही इस बार भाजपा ने पाला बदलवाने की रणनीति पर अमल कर कांग्रेस की ताकत को भारी क्षति पहुंचाई है, लेकिन ऐसे हालात पिछले 3 चुनावों के दौरान नहीं रहे, तब कांग्रेस अपना जनाधार बढ़ाने में कामयाब क्यों नहीं रही। अब जबकि प्रदेश में भाजपा क्लीन स्वीप करने के अपने लक्ष्य को हासिल कर चुकी है, ऐसे में कांग्रेस के लिए अपना जनाधार बढ़ाना और भी कठिन होगा। इसके लिए कांग्रेस के प्रादेशिक संगठन से लेकर ब्लॉक स्तर तक आमूलचूल परिवर्तन करने की ओर ध्यान देना होगा।

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