क्राइम रेट कम हुआ लेकिन संगठित अपराध नहीं !

यह संतोष जनक है कि मध्य प्रदेश में क्राइम रेट कम हुआ है. इसके लिए पुलिस और प्रशासन अपनी पीठ थपथपा सकता है लेकिन हकीकत यह है कि अभी भी प्रदेश में संगठित अपराध यानी माफिया तंत्र के हौसले बुलंद हैं. खास तौर पर रेत और खनन माफिया, परिवहन माफिया, खनन माफिया,भू माफिया और टिंबर माफिया का समूल नाश जरूरी है.दरअसल, स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एससीआरबी) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, जनवरी से जुलाई 2024 के बीच प्रदेश में कुल अपराधों में 3.53 $फीसदी की कमी दर्ज की गई है.2023 में जहां इस अवधि के दौरान 1,89,178 अपराध दर्ज किए गए थे, वहीं 2024 में यह आंकड़ा घटकर 1,82,714 रह गया. यह 6,464 अपराधों की कमी को दर्शाता है, जो प्रदेश की जनता के लिए एक राहत भरी खबर है.

एससीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, गंभीर अपराधों जैसे डकैती में 51.56 $फीसदी की कमी आई है, जो सुरक्षा व्यवस्था की मजबूती को दर्शाता है.लूट के मामलों में 23.22 $फीसदी नकबजनी में 9.53 फीसदी सामान्य चोरी में 6.51 $फीसदी और हत्या के मामलों में 7.15 फीसदी की कमी आई है.यह दिखाता है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था में सुधार हो रहा है और लोगों का प्रशासन पर भरोसा बढ़ा है. सबसे महत्वपूर्ण यह है कि

महिलाओं से जुड़े अपराधों में भी सुधार देखने को मिला है. 2024 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 7.91 $फीसदी की कमी आई है. ये आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश में लंबे समय बाद अपराधों में इस तरह की व्यापक गिरावट देखने को मिली है. यह न केवल कानून व्यवस्था के सुधार को दर्शाता है, बल्कि मुख्यमंत्री मोहन यादव के नेतृत्व में प्रशासन के सुशासन के प्रति प्रतिबद्धता का प्रमाण भी है.प्रदेश की जनता के लिए यह एक सकारात्मक संकेत है, जो राज्य को अपराधमुक्त और सुरक्षित बनाने की दिशा में बढ़ता कदम है. निश्चित रूप से प्रदेश सरकार की इस मामले में सराहना की जानी चाहिए लेकिन प्रदेश में खास तौर पर संगठित अपराधों यानी माफियाओं का इलाज होना जरूरी है. मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के किनारे बड़ी संख्या में रेत माफिया सक्रिय है. यहां हो रहे अवैध खनन से पर्यावरण और नदी को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है. रेत माफिया के कारण नदी किनारे बसे क्षेत्र में कानून व्यवस्था की दृष्टि से गंभीर खतरा पैदा हो गया. इन माफियाओं के इतने हौसले बुलंद है कि ये आईएएस और आईपीएस अधिकारी को भी कुछ नहीं समझते. प्रदेश भर में रेत माफिया धड़ल्ले से सरकारी कर्मचारियों को निशाना बना रहे हैं.दरअसल, प्रदेश के कई इलाके रेत माफियाओं के आतंक से प्रभावित हैं. इन इलाकों में सोन नदी से सटे शहडोल, रीवा, सीधी और सिंगरौली शामिल हैं. वहीं नर्मदा नदी के तट पर बसे जबलपुर, बैतूल, होशंगाबाद, खरगोन, खंडवा समेत कई जिलों में अवैध रेत उत्खनन का काम धड़ल्ले से चल रहा है. इन इलाकों के अलावा मध्य प्रदेश का उत्तरी क्षेत्र (ग्वालियर-चंबल क्षेत्र) भी अवैध रेत उत्खनन से प्रभावित है. यहां चंबल नदी से भारी मात्रा में रेत का अवैध परिवहन किया जाता है.इन जिलों में खुलेआम-धड़ल्ले से चल रहे अवैध रेत परिवहन को रोकने में नाकाम प्रशासन पर कई तरह के गंभीर आरोप लगते रहे हैं. रेत माफिया के अलावा जंगल कटाई के लिए कुख्यात माफिया भी प्रदेश की कानून व्यवस्था के लिए सर दर्द बना हुआ है. दरअसल संगठित अपराधों पर नकेल के लिए भी ठोस उपाय करना जरूरी है. कानून और व्यवस्था का मसला केवल शांति और सुरक्षा से ही जुड़ा नहीं होता,बल्कि आर्थिक निवेश भी प्रभावित होता है. जाहिर है अपराधों के साथ ही संगठित अपराध भी प्रदेश में कम होने चाहिए.

 

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