केंद्रीय एजेंसियों की स्वायत्तता सुनिश्चित हो

सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से सीबीआई को पिंजरे का तोता कहा उससे लगता है कि केंद्रीय एजेंसियां सरकार के दबाव में काम कर रही हैं. जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए. खासतौर पर सीबीआई जैसी शीर्ष संस्था को स्वायत्तता मिलनी ही चाहिए. दरअसल,शराब घोटाले के मामले में 13 सितंबर को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी. जमानत की अर्जी पर सुनवाई करते हुए जस्टिस भुइयां ने देश की प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई पर गंभीर टिप्पणी की कि उसे ‘पिंजरे में बंद तोते’ की धारणा से बाहर आना चाहिए और ‘सीजर की पत्नी’ की तरह ईमानदार होना चाहिए. यकीनन यह सीबीआई की निष्पक्षता और स्वायत्तता पर गंभीर सवाल है. करीब 11 साल पहले 2013 में भी सर्वोच्च अदालत ने ही सीबीआई को ‘तोता’ करार दिया था, जो अपने मालिक की आवाज ही सुनता है. तब केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार थी और प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह थे.देश की शीर्ष अदालत के न्यायाधीश ही, देश की प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई पर, ऐसी टिप्पणियां कर कमोबेश यह संदेश दे रहे हैं कि सीबीआई ईमानदार नहीं है और अपने मालिक के आदेशानुसार ही काम करती है. नतीजतन सभी गंभीर और संवेदनशील जांच-प्रक्रियाएं दांव पर रखी महसूस होती हैं. दरअसल किसी भी बड़े, विवादित और पेचीदा मामले में देश की राज्य सरकारें और सामान्य जन, अंतत: मांग करते हैं कि जांच सीबीआई को सौंपी जाए, लेकिन सीबीआई की कार्यप्रणाली तो ‘सवालिया और संदेहास्पद’ है.क्या इसके मायने ये हैं कि भारत में जांच-प्रक्रिया तटस्थ और निष्पक्ष ही नहीं है? केजरीवाल केस में जस्टिस भुइयां ने सीबीआई से सवाल पूछा था कि केस 22 महीने पहले दर्ज किया गया, लेकिन गिरफ्तारी की याद 2024 में क्यों आई? इस दौरान एजेंसी क्या करती रही? जब ईडी केस में जमानत दे दी गई, तो उसके एकदम बाद ही आरोपी को गिरफ्तार क्यों किया गया? जाहिर है कि कुछ संदेह तो होते हैं. इसी संदर्भ में न्यायाधीश ने ‘तोते’ वाली टिप्पणी की, जिसके निहितार्थ हो सकते हैं कि सीबीआई ने किसी के अदृश्य, अघोषित आदेश पर ही केजरीवाल को गिरफ्तार किया हो! जमानत की शर्तों पर जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस भुइयां के बीच मतभेद दिखे. जस्टिस सूर्यकांत ने अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को न्याय संगत माना. बहरहाल,जमानत के बाद केजरीवाल तिहाड़ जेल से बाहर आ गए, लेकिन उन पर ऐसी शर्तें थोपी गई हैं, जिनसे वह मुख्यमंत्री रहते हुए भी मुख्यमंत्री नहीं होंगे. इसीलिए शायद उन्होंने रविवार को अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी. केजरीवाल के जेल में रहने के कारण करीब 4000 फाइलें मंत्रियों के पास लंबित पड़ी हैं. स्पष्ट है कि अब इन फाइलों का फैसला नई मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना करेंगी.हम लोकतंत्र में रहते हैं. न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका सभी उस लोकतंत्र के हिस्से हैं.अदालत ने केजरीवाल को जमानत पर रिहा किया है.अभी तक वह मासूम और बेगुनाह हैं, क्योंकि अदालत ने उन्हें दंडित नहीं किया है.बहरहाल, जहां तक सीबीआई, ईडी जैसे केंद्रीय एजेंसियों का प्रश्न है तो इनका राजनीतिक दुरुपयोग नहीं होना चाहिए. लोकतंत्र की परिपक्वता और मजबूती इसी में है कि हमारी जांच एजेंसियां निष्पक्षता के साथ कम करें. सीबीआई एक महत्वपूर्ण जांच एजेंसी है जिसमें अतीत में कई मामले देश हित में सुलझाएं हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई है. ऐसे में सीबीआई की सक्रियता स्वाभाविक रूप से बढ़ गई है . कुल मिलाकर केंद्रीय एजेंसियों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता सुनिश्चित होना चाहिए.

Next Post

रेलवे में स्वच्छता पखवाड़ा शुरू

Wed Sep 18 , 2024
Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Total 0 Shares Facebook 0 Tweet 0 Mail 0 WhatsApp 0

You May Like