भाजपा को विपक्षी दलों की एकता का नुकसान उठाना पड़ा

पहली बार मोदी को मिली जुली सरकार का नेतृत्व करना पड़ेगा

कांग्रेस को जबरदस्त सफलता दिलाकर राहुल गांधी ने राष्ट्रीय राजनीति में खुद को नरेंद्र मोदी के समक्ष मजबूती के साथ खड़ा किया

विशेष प्रतिनिधि

नई दिल्ली : 2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों को यदि एक लाइन में विश्लेषित करना पड़े तो यही कहा जाएगा की भाजपा को विपक्षी दलों ने गठबंधन बनाकर बहुमत प्राप्त करने से रोक दिया। खासतौर पर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठजोड़ ने उत्तर प्रदेश में जिस तरह से सोशल इंजीनियरिंग की उससे भाजपा को देश के सबसे बड़े राज्य में निर्णायक नुकसान हुआ है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए को बहुमत जरूर मिला है लेकिन भाजपा अपने बलबूते बहुमत नहीं ला पाई है।

इसलिए इसमें कोई शक नहीं कि चुनाव परिणाम का सबसे बड़ा धक्का भाजपा को ही लगा है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा में विपक्षी दलों की एकजुटता ने भाजपा को भारी नुकसान किया है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की रणनीति सफल रही। उन्होंने कांग्रेस और वामपंथी दलों के साथ गठबंधन नहीं करके अपने खिलाफ का वोट विभाजित कर दिया। नतीजा यह रहा कि इस बार भाजपा को 2019 के मुकाबले पश्चिम बंगाल में 6 सीटों का नुकसान हुआ है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात और नई दिल्ली में भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे और मजबूत संगठन के बल पर एक तरफा जीत दर्ज की है। जबकि राजस्थान में भाजपा को गलत टिकट वितरण और जाटों की नाराजगी का नुकसान हुआ है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला गुजरात की राजकोट सीट से भले ही चुनाव जीत गये हों, लेकिन उनके राजपूतों के खिलाफ कथित बयान ने भाजपा को राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात की 20 सीटों पर काफी नुकसान किया। अग्नि वीर योजना और बेरोजगारी के कारण युवा मतदाताओं ने इस बार मतदान में कम हिस्सा लिया। भाजपा को 2014 और 2019 की मिली सफलता के पीछे पहली बार मतदान करने वाले युवा मतदाताओं का बड़ा रोल था। इस बार ये युवा मतदाता पूरी तरह से उदासीन थे। खासतौर पर उत्तर प्रदेश में भाजपा को अपने कार्यकर्ताओं के उदासीनता का भी नुकसान हुआ। 400 पार के नारे के कारण भाजपा का मैदानी कार्यकर्ता घर से बाहर नहीं निकला कि पार्टी तो जीत ही रही है !

राहुल गांधी राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित हुए

चुनाव परिणामों से जाहिर है कि कांग्रेस ने अपनी सीटों में लगभग दुगना इजाफा किया है। कांग्रेस की जीत का श्रेय निश्चित रूप से राहुल गांधी की भारत जोड़ो और भारत जोड़ो न्याय यात्रा को भी जाएगा। इसके अलावा राहुल ने जिस तरह से अपनी सभाओं में संविधान और आरक्षण समाप्त कर दिया जाएगा का मुद्दा उठाया उसका असर महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के दलित मतदाताओं पर पड़ा है। राहुल गांधी राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के बाद दूसरे लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित हुए हैं। यदि वे नेता प्रतिपक्ष की जवाबदारी संभालते हैं तो 2029 के चुनाव में राहुल मोदी के सामने मजबूती के साथ खड़े होते नजर आएंगे।

मिली जुली सरकार का पहली बार नेतृत्व करेंगे नरेंद्र मोदी

नरेंद्र मोदी ने 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री की शपथ ली थी। उन्होंने तीन बार पूर्ण बहुमत के साथ गुजरात में मुख्यमंत्री पद संभाला है। इसके बाद 2014 और 2019 में उन्होंने पूर्ण बहुमत की केंद्र सरकार चलाई है। लेकिन अब उन्हें सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार चलानी पड़ेगी क्योंकि भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। भाजपा को जनता दल यूनाइटेड और तेलुगू देशम पार्टी के सहयोग की हमेशा जरूरत पड़ेगी। जाहिर है इसका असर केंद्रीय मंत्रिमंडल के गठन पर भी पड़ेगा।

संभव है एक बार फिर अमित शाह संगठन संभालें

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल समाप्त हो गया है। उनके स्थान पर नया अध्यक्ष अगले 3 महीनों में चुना जाएगा। भाजपा को यदि राष्ट्रीय राजनीति में सबसे बड़ा दल बने रहना है तो उसे उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में मजबूती के साथ काम करना पड़ेगा। ऐसे में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की भूमिका बढ़ जाती है। एक संभावना यह भी है कि जेपी नड्डा के स्थान पर फिर से संगठन की कमान अमित शाह को दी जाए। निश्चित रूप से भाजपा अब राष्ट्रीय स्तर पर अपने संगठन को मजबूत करने के लिए विशेष प्रयास करेगी।

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