टुकड़े-टुकड़े में हुए व्यवस्थापन, शासन को करोड़ों की हानि, अब एक्शन में आया राजस्व विभाग
नीमच। शहर के बहुचर्चित वीर पार्क रोड स्थित बंगला नंबर 36 के टुकड़े-टुकड़े में हुए व्यवस्थापन से शासन को हुई करोड़ों की हानि के मामले में राजस्व विभाग ने एक्शन लेना शुरू कर दिया है।
राजस्व विभाग के अवर सचिव राजेश कुमार कौल ने नीमच कलेक्टर दिनेश जैन को पत्र जारी किया है और इस प्रकरण में स्पष्ट रूप से शासन को करोड़ों की हानि होने की बात लिखते हुए कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं। एक माह के दौरान कलेक्टर नीमच को बंगला नंबर 36 में कार्रवाई करना सुनिश्चित करना होगी।
यह पत्र जारी होने के बाद बंगला नंबर 36 से जुड़े हुए लोग और गलत ढंग से व्यवस्थापन करवाने में लिप्त अधिकारी और कर्मचारियों की सांसे उपर नीचे होना शुरू हो गई है। सूत्र बताते है कि इस बंगला का सौदा राजस्थान के एक प्रभावशाली व्यक्ति को कर दिया था। लेकिन अब मामला उलझने के बाद मौखिक रूप हुआ सौदा खटाई में पड़ सकता है। शहर के वीर पार्क रोड स्थित शिवप्रसाद जगधारी सहित उनके परिजनों के नाम से बंगला नंबर 36 में करीब 47 हजार वर्गफीट की भूमि खुली पड़ी हुई है।
इस बंगले का न्यायालय में पारिवारिक बंटवारा लगाया और उसकी आड़ लेकर टुकड़े टुकड़े में व्यवस्थापन बोर्ड के समक्ष फाइल लगाई और व्यवस्थापन करवा लिया गया। नगरीय विकास एवं आवास विभाग के प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई ने शिकायत के आधार पर इस पूरे प्रकरण की बारीकी से जांच करवाई, इसके बाद राजस्व विभाग के पास मामला भेजा गया, क्योंकि नगरपालिका को करोड़ों की क्षति का मामला था। प्रमुख सचिव ने जांच में पाया कि बंगला नंबर 36 की भूमि पांच हजार वर्गफीट से अधिक है। ऐसे में अधिक भूमि का राजस्व कलेक्टर गाईड लाइन से सौ प्रतिशत लेना बंगला बगीचा व्यवस्थापन नियम में तय किया गया है। प्रकरण की जांच में सीएमओ नीमच से प्रतिवेदन मंगवाया गया और उसका परीक्षण किया। परीक्षण में पाया कि माननीय न्यायालय द्वारा मौखिक बंटवारा पत्र को स्वीकार करने से पूर्व आम इश्तहार जारी नहीं किया गया है।
तथापि न्यायालय द्वारा भूमि का उप विभाजन वैधानिक सिद्ध किया गया है तथा उक्त आधार पर ही पीठासीन अधिकारी द्वारा पृथक पृथक व्यवस्थापन आदेश जारी किए गए है। इस संबंध में राजस्व विभाग के अवर सचिव द्वारा पत्र में 30 जून 2024 तक कलेक्टर नीमच को कार्यवाही सुनिश्चित करने को कहा है।
इस पूरे प्रकरण में एक तरफ जांच चलती रही, वहीं दूसरी और व्यवस्थापन पर वैध का ठप्पा लगाने की भी पुरजोर कोशिश की गई। कई पार्षदों ने लिखित आवेदन देकर सम्मेलन बुलाने की मांग की गई और अपनी लिखित सहमति प्रदान की गई थी। जबकि कई पार्षदों को पता था कि मामला उलझन भरा है, लोकायुक्त सहित कई एजेंसियों को शिकायत हुई है, फिर भी परिषद में प्रस्ताव पास करने की गणित में रहे। अब सवाल उठता है कि परिषद में प्रस्ताव पास करवाने के पक्ष में शामिल पार्षद भी इस मामले में उलझेंगे। इस पर संशय बना हुआ है।