सोनी सब के कलाकारों ने दशहरा के यादगार पल साझा किये

मुंबई, (वार्ता) सोनी सब के कलाकारों ने दशहरा के अपने यादगार पल प्रशंसकों के साथ साझा किये हैं।
सोनी सब के कलाकार करुणा पांडे, ऋषि सक्सेना, गौरी टोंक और समृद्ध बावा ने साझा किया है कि दशहरा उनके लिए क्या मायने रखता है।
‘पुष्पा इम्पॉसिबल’ में पुष्पा की भूमिका निभा रही करुणा पांडे ने कहा,“दशहरा एक शक्तिशाली अनुस्मारक है कि अच्छाई हमेशा जीतती है, चाहे रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो। बचपन में मुझे रामलीला देखना और रावण दहन देखना बहुत पसंद था, यह हमेशा प्रतीकात्मक लगता था, जैसे हम अपने जीवन की सारी नकारात्मकता को जला रहे हों। आज भी मैं दशहरे को एक ऐसा दिन मानती हूं जब मैं रुककर बीते वर्ष पर विचार करती हूं और उन चीजों को छोड़ देती हूं जो मुझे पीछे खींचती हैं। यह सकारात्मकता और नई शुरुआत का समय होता है।”
‘पुष्पा इम्पॉसिबल’ में अश्विन की भूमिका निभा रहे समृद्ध बावा ने कहा, “मेरे लिए दशहरा एक बहुत ही आशाजनक पर्व है। यह याद दिलाता है कि चाहे हालात कितने भी कठिन हों, सही रास्ता हमेशा जीत की ओर ले जाता है। मुझे याद है बचपन में हमारी कॉलोनी में छोटा सा रावण दहन होता था और सभी बच्चे, बुज़ुर्ग उसे देखने के लिए इकट्ठा होते थे। इसके बाद मस्ती, भोजन और हंसी का दौर चलता था। आज भी मैं अपने परिवार के साथ समय बिताकर और उन सरल पलों को संजोकर इसे मनाता हूं।”
‘इत्ती सी खुशी’ में संजय की भूमिका निभा रहे ऋषि सक्सेना ने साझा किया, “मेरे लिए दशहरा हमेशा समुदाय और एकता का पर्व रहा है। जोधपुर में, जहां मैं बड़ा हुआ, दशहरा बहुत भव्य तरीके से मनाया जाता है ।हर जगह रावण के पुतले दिखाई देते हैं और पूरा शहर उत्सव की रोशनी से जगमगाता है। मुझे याद है कि मैं अपने परिवार के साथ रावण दहन देखने जाता था, मेरे पिता मुझे कंधों पर बैठाकर दिखाते थे। इसके बाद मिठाइयों, त्योहार के भोजन और पारिवारिक मिलन का आनंद लिया जाता था। यह उन त्योहारों में से एक है जो वास्तव में सभी को एक साथ लाता है और सत्य व धर्म की शक्ति की याद दिलाता है।”
‘इत्ती सी खुशी’ में नंदिनी की भूमिका निभा रही गौरी टोंक ने कहा, “मुझे दशहरा हमेशा इसके गहरे अर्थ के कारण पसंद रहा है। यह केवल रावण की हार नहीं है, बल्कि हमारे भीतर के रावण भय, अहंकार और नकारात्मकता पर विजय पाने का प्रतीक है। बचपन में मुझे अपने परिवार के साथ रामलीला देखना बहुत अच्छा लगता था, और आज भी मैं कोशिश करती हूं कि अपने बच्चों के साथ कम से कम एक पंडाल या रावण दहन कार्यक्रम में जरूर जाऊं। यह उन्हें मूल्यों और अच्छाई की बुराई पर विजय के महत्व को सिखाने का एक सुंदर तरीका है।”

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