रेलवे ने घटा दिए स्लीपर और जनरल कोच, पैसे देने के बाद भी सफर में यात्री परेशान.
एसी कोच में मुफ्त सफर करने वाले रेल मंत्री, जनप्रतिनिधि और रेलवे अधिकारी क्या जाने यात्रियों का दर्द?
तकलीफों को टिव्टर से बंया करने वाले यात्रियों की नहीं हो ही सुनवाई.
वेंकट विजय कुमार
भोपाल: 28 मई. देश- प्रदेश पूरी तरह गर्मी में झुलस रहा है. हीटवेब की चपेट में लोग आ रहे हैं. ऐसे में रेलवे की ट्रेनों में सफर करने वाले यात्री किस कदर परेशान हो रहे हैं, उनका दर्द वे ही बयां कर सकते हैं. कोरोना में घाटा होने पर रेलवे प्रशासन ने पिछले एक साल से अपनी आर्थिक आय बढ़ाने के लिए लंबी ट्रेनों में एसी कोच बढ़ा दिए, वही स्लीपर और जनरल कोच घटा दिए. इससे यात्री एसी में सफर करने अपनी जेबें हल्की करने को मजबूर है. लेकिन मध्यम और निम्न वर्ग वाले यात्रियों के लिए कोच घटना, किसी सजा से कम नहीं है. ये यात्री स्लीपर और जनरल कोच में भेड़- बकरियों की रहकर यात्रा करने को मजबूर है, उपर से 45 डिग्री के गर्मी का टार्चर सहना भी पड़ रहा है.
मौजूदा समय भीषण गर्मी और लू के थपेड़ों से हर कोई परेशान है. खासकर ट्रेन के जनरल कोच में सफर करने वाले यात्रियों को ज्यादा ही परेशानी हो रही है. क्?योंकि वे अगर विंडो खोलते हैं तो सीधी लू लगने का डर रहता है और बंद करते हैं तो पसीने से तरबतर हो जाते हैं. इन कोचों में लगा पंखा भी गर्म हवा देता है. लेकिन ये यात्री कुछ तरीके अपना कर गर्मी और लू से बच सकते हैं. वहीं, गर्मी से राहत देने के लिए रेलवे यात्रियों की मदद कर रहा है.
भारतीय रेल में मौजूदा समय करीब दो करोड़ लोग रोजाना सफर करते हैं. इनमें से करीब 95 फीसदी यात्री जनरल और स्लीपर कोच से सफर करते हैं, केवल पांच फीसदी एसी कोच में सफर करने वाले यात्री हैं. आंकड़ों के अनुसार ज्यादातर यात्रियां को गर्मी में सफर के दौरान परेशानी होती है. क्योंकि अब लंबी दूरी की ट्रेनों में 5 या 6 स्लीपर और दो जनरल कोच होते हैं. जनरल टिकट वाले यात्रियों को जब कोच में जगह नहीं मिलती, तो वे स्लीपर में घुस जाते है. इससे आरक्षित यात्रियों को सफर में बहुत ज्यादा परेशानी होती है, क्योंकि इनमें क्षमता से दो से तीन गुना तक यात्री सवार हो जाते हैं.
केस 1- गोरखपुर से एलटीटी जाने वाली कामायनी एक्सप्रेस के 6 स्लीपर कोचों में लगभग 900 यात्री बैठे हैं. एक आरक्षित बर्थ पर औसतन 3 से 4 यात्री बैठे हैं. इसमें से 3 यात्री जनरल टिकट वाले हैं. ऐसे में कमलापति और भोपाल स्टेशन पर इस ट्रेन में सवार यात्रियों को चढऩे में काफी मशक्कत करी पड़ती है.
केस 2 – राप्तीसागर एक्सप्रेस जम्मू से कन्याकुमारी जाने वाली इस ट्रेन की हालत तो बंया करना मुश्किल है. देश की सबसे लंबी 3000 किमी चलने वाली इस ट्रेन में 16 एसी, 5 स्लीपर और दो जनरल है. इस ट्रेन के एसी कोच में दरवाजों के पास जनरल टिकट वाले यात्री बैठकर सफर करने को मजबूर है.
केस 3 – कमलापति से रींवा के लिए रोज जाने वाली रेवाचंल एक्सप्रेस का हालत और भी खराब है. रेलवे इन मार्ग पर अतिरिक्त स्पेशल ट्रेन भी चला रही है, पर इस ट्रेन मे स्लीपर कोच कम होने से जनरल यात्री भी घुस जाते हैं.
शिकायत का कोई असर नहीं
भोपाल से गोरखपुर जाने वाले यात्री आर के श्रीवास्तव ने बताया कि हमने स्लीपर कोच में जनरल यात्रियों की घुसने की शिकायत रेल्वे और जी आर पी को ki, पर कोई फायदा नहीं हुआ. इसी तरह ब्रह्मपुत्र मेल मे यात्री विजय कुमार ने तो एसी कोच में जनरल यात्रियों के घुसने की शिकायत कल ट्विटर पर विडिओ समेत की, पर उन्हें भी न्याय नहीं मिला.
फ्री पास पर सफर करने वालों को दर्द से मतलब नहीं
यात्रियों की शिकायत है कि रेल्वे के मंत्री, जनप्रतिनिधि और अधिकारी फ्री पास पर एसी में सफर करते हैं, उन्हें आम यात्रियों की तकलीफों का अह्सास नहीं है, क्योंकि वे स्लीपर और जनरल मे सफर ही नहीं किया है. इसलिए वे क्या दर्द जाने? उल्टे स्लीपर मे घुसे यात्रियों पर जुर्माना लगा देते हैं. जब जनरल कोच कम होने और जगह नहीं मिले तो, स्लीपर मे घुसने की मजबूत है.
रेल्वे यात्रियों को हर तरह की सुविधा दे रहा है. यात्री संख्या अधिक होने पर अतिरिक्त कोच लगाती है. पश्चिम मध्य रेल्वे से चलने वाली ट्रेनों में यात्रियों से परेशानी की शिकायतें नहीं के बराबर है. अगर कोई शिकायत आती है, तो हम तत्काल कार्रवाई करते हैं.
– नवल अग्रवाल, पीआरओ भोपाल मंडल