फरवरी से लेकर अप्रैल माह तक 20 बच्चों की भर्ती नही करा पाया आईसीडीएस का मैदानी अमला, डीपीईओ की कार्यप्रणाली की भूमिका संदिग्ध
सिंगरौली : पोषण पुनर्वास केन्द्र में भर्ती होने वाले कु पोषित बच्चों की संख्या लगातार घट रही है। फरवरी महीने से लेकर 15 मई की स्थिति में निर्धारित लक्ष्य के अनुसार बेड रिक्त रह जा रहे हैं। पोषण पुनर्वास केन्द्र बैढऩ में 20 कुपोषित बच्चों को भर्ती करने के लिए लक्ष्य है।दरअसल जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जबकि बच्चों एवं माताओं के कुपोषण को दूर कराने के लिए सरकार प्रत्येक वर्ष करोड़ों रूपये खर्च कर रही है। फिर भी कुपोषण के उन्मूलन महिला एवं बाल विभाग विकास के कागजों में ही भागदौड़ कर रहा है। जबकि धरातल में कुछ और है। बताया जा रहा है कि जिले के पोषण पुनर्वास केन्द्र बैढऩ समेत अन्य देवसर-चितरंगी में पर्याप्त संख्या में कुपोषित बच्चों को महिला एवं बाल विकास विभाग का मैदानी अमला भर्ती नही करा पा रहा है। पोषण पुनर्वास केन्द्र बैढऩ में फरवरी महिने में 17, मार्च एवं अप्रैल महिने में 15-15 तथा 18 मई तक 14 बच्चों को ही भर्ती कराया जा सका है।
कुपोषित बच्चों को पोषण पुनर्वास केन्द्र में भर्ती न कराये जाने के मुख्य कारण महिला एवं बाल विभाग विकास का मैदानी अमला है। जिनकी लापरवाही की वजह से बच्चे पोषण पुनर्वास केन्द्र तक नही पहुंच पा रहे हैं। गनिमत है कि जिला चिकित्सालय एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों के स्वास्थ्य सेवकों के द्वारा जांच के दौरान अति कुपोषित बच्चों की हालत देख बच्चों की माताओं को समझाइस देकर पोषण पुनर्वास केन्द्र में भर्ती करने के लिए प्रेरित करते हैं। स्वास्थ्य सेवको के बदौलत उक्त के न्द्रों में संख्या कुछ सामान्य तौर पर दिख रही है। उधर आरोप है कि महिला एवं बाल विभाग विकास के जिला कार्यक्रम अधिकारी उक्त मामले में दिलचस्पी नही दिखाते।
लिहाजा आईसीडीएस का मैदानी अमला लगातार सुस्त पड़ता जा रहा है। यहां बताते चले की कुपोषण के मामले में प्रदेश सबसे ज्यादा शिकार वाला राज्य है। यहां के बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता लगातार क्षीण हो रही है। जबकि इसके लिए भारत सरकार राष्ट्रीय पोषण मिशन के तहत पर्याप्त मात्रा में राशि खर्च कर रही है। फिर भी महिला बाल विकास विभाग के जिम्मेदारी इसके प्रति संजीदा नही है। फिलहाल पोषण पुनर्वास केन्द्र में अति कुपोषित बच्चों की तदाद लगातार घटने से महिला एवं बाल विकास विभाग के मैदानी एवं जिम्मेदार अधिकारियों की कार्यशौली को लेकर विभाग के अन्दर-बाहर तरह-तरह की चर्चाएं की जा रही हंै।
गहन समीक्षा की दरकार, अनियमितता का बोलबाला
कुपोषित बच्चों की लगातार बढ़ती संख्या को लेकर केन्द्र एवं प्रदेश सरकार भले ही चिंता कर रही हो, लेकिन विगत डेढ़ वर्षो से महिला एवं बाल विक ास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी गंभीर नही दिखे। आरोप है कि डीपीओ की सबसे ज्यादा दिलचस्पी एनसीएल के सीएसआर से मिलने वाली रकम पर ज्यादा रहती है। सामग्रियों की खरीददारी कहां से करनी है। करीब-करीब पूरा ध्यान इसी पर केन्द्रीत रहता है। यहां बताते चले की एनसीएल के सीएसआर से मिले करोड़ रूपये की राशि में पिछले वर्ष डीपीओ ने भारी खेला किया है। शिकायतकर्ता का इस तरह का आरोप है। शिकायत के आधार पर ईओडब्ल्यू ने कलेक्टर सिंगरौली को 8 महीने पूर्व जांच के लिए निर्देशित किया था। तत्कालीन कलेक्टर अरूण परमार ने जाच का जिम्मा जिला पंचायत सीईओ को सौंपा था। लेकिन जांच का अब तक पता नही चल पाया।
आंगनवाड़ी केन्द्रो का संचालन भगवान भरोसे
जिला मुख्या बैढऩ समेत पूरे विकास खण्ड में आंगनवाड़ी केन्द्रों का संचालन भगवान भरोसे है। आरोप है कि ऐसे कई आंगनवाड़ी केन्द्र हैं। जहां आंगनवाड़ी कार्यकर्ता केन्द्र में गिनती भर दिनों के लिए आती हैं और यहां का पूरा कामकाज सहायिकाओ पर छोड़ दे रहे हैं। इस तरह की शिकायते परियोजना कार्यालयों में भी पहुंचती रहती है। यह भी आरोप है कि परियोजना अधिकारी से लेकर सुपरवाइजर सब कुछ जानते हुये भी अंजान हैें। इन्हीं के संरक्षण में कई आंगनवाड़ी कार्यकर्ता कभी कभार ही केन्द्र में उपस्थिति देने आती हैं, या फिर सुबह हाजिरी देने के बाद चन्द घण्टों में ही सहायिकाओं को समझाबूझाकर केन्द्र से चली जाती हैं और केन्द्रों में आने वाली गर्भवती महिलाओं एवं बच्चों को पौष्टिक पोषण में भी इधर उधर कर वितरण कर खानापूर्ति कर ली जा रही है।