स्नान तो दूर पशुओं के पीने लायक भी नहीं पानी

शहर के बड़े तालाबों में से एक देवताल और महानद्दा तालाब के हाल

जबलपुर: कभी रानी दुर्गावती की प्रमुख बावड़ी रहे देवताल तालाब गंदगी की भेंट चढ़ चुका है। एक ओर नगर प्रशासन स्वच्छ भारत की ओर शहर में मौजूद ताल – तालाबों को अग्रसर करने में लगा तो वहीं दूसरी ओर शहर के प्रमुख ताल – तालाबों का पानी दूषित हो चला है इस पानी में स्नान करना तो दूर यह पानी पशु पक्षियों के पीने लायक भी नहीं बचा है। शहर के प्रमुख एवं बड़े तालाबों में से एक देवताल में आस-पास के घरों का कचरा एवं फूल माला  से पटा हुआ है। कुछ समय पहले पूर्व विधायक तरूण भानोत द्वारा महानद्दा तालाब से गंदगी निकालकर उसका जीणोंद्धार कराया गया था, किंतु आज फिर लापरवाही के चलते दूषित हो गया है। इतना ही नहीं सूत्रों की माने तो इस तालाब को व्यापार का साधन भी बनाया जा रहा है। जिसके चलते शहर में मौजूद ताल-तालाबों के पानी की गुणवत्ता खतरे में आ चुकी है। तरह-तरह के कचरे से पटे इन तालाबों में मौजूद मछली एवं अन्य जीव भी अपने प्राण त्यागने को मजबूर हैं।
शहर की शान रहा देवताल
देवताल के आस-पास के क्षेत्रवासियों की माने तो जिले की शान माने जाने वाला यह तालाब आज अव्यवस्था का शिकार हो चला है। ना ही क्षेत्रीय पार्षद औेर ना ही नगर प्रशासन द्वारा इनका बचाव के उपाय किए जा रहे हैं । जिसके कारण यह तालाब बद से बदतर होते जा रहे हैं। जानकारों की मानें तो शहर में मौजूद ज्यादातर ताल-तालाबों में रहवासियों द्वारा कपड़े बर्तन भी धोए जा रहे हैं जिसके चलते जल जीव अपनी जान गंवा रहे है।
उद्यान में आने वाले जन भी फेंकते हैं कचरा
देवतालाब से जुड़े जानकार बताते हैं कि इस तालाब के आस-पास बने लेक व्यू उद्यान एवं अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों में आने वाले आमजन तालाब में कचरा फेंककर इसे दूषित कर रहे हैं। इसके साथ ही तालाब के आस-पास बैठकर नशेडियों द्वारा अनैतिक कार्यों को अंजाम दिया रहा है। जिन पर लगाम लगाने के लिये प्रशासन की ओर से कोई भी जिम्मेदार नहीं रहता है।
इनका कहना है
शहर के ताल तलाबों की देख रेख अमृत योजना के तहत की जाएगी। टेण्डर के द्वारा एजेंसी को कार्य सौंपा जाएगा देखरेख और सफाई से जल्द ही सारे ताल तालाब स्वच्छ होंगे ।
प्रीति यादव , कमिश्नर , जबलपुर

देव तालाब में हमेशा कचरा पड़ा रहता है । लोगों द्वारा कपड़े भी धोए जाते है । देख रेख के लिये यहां कोई नहीं आता हैं।
कर्ण
संस्कारधानी झीलो की नगरी है। अफसोस यह उपाधि हमसे अलग होती जा रही है तालाबों को बचाना जरूरी है।
शंभु दादा

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