25 जून 2025 भारतीय अंतरिक्ष इतिहास में यह दिन स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया है.एक लंबे अंतराल के बाद, 41 वर्षों बाद, भारत ने पुन: एक बार अंतरिक्ष में अपनी उपस्थिति दर्ज की है. यह अवसर और भी गौरवपूर्ण हो जाता है जब हम देखते हैं कि इस बार यह उपलब्धि किसी राज्य प्रायोजित अभियान के तहत नहीं, बल्कि वैश्विक वाणिज्यिक सहयोग के माध्यम से संभव हुई है. अमेरिका की वाणिज्यिक अंतरिक्ष कंपनी एक्सियोम स्पैस द्वारा लॉन्च किए गए एक्सियोम -4 मिशन में भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ल पायलट के रूप में शामिल हैं. यह केवल एक अंतरिक्ष यात्रा नहीं, अपितु भारत की वैज्ञानिक आकांक्षाओं का पुनर्पुष्टि है. राकेश शर्मा के बाद यह दूसरा अवसर है जब किसी भारतीय ने अंतरिक्ष की सीमाएं छुई हैं,परंतु इस बार यह प्रयास पूरी तरह से निजी, वैश्विक सहयोग और नवाचार के समन्वय से साकार हुआ है.
एक्सियोम -4 मिशन केवल एक तकनीकी उड़ान नहीं, यह नव युग की वह घोषणा है जिसमें अंतरिक्ष अब केवल राष्ट्रों के बीच प्रतिस्पर्धा का विषय नहीं, बल्कि वैश्विक भागीदारी और वैज्ञानिक योगदान का साझा मंच बन चुका है. स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट और ड्रैगन कैप्सूल से जुड़ा यह मिशन बताता है कि कैसे अमेरिकी निजी क्षेत्र, नासा, और विभिन्न देशों के अंतरिक्ष एजेंसियाँ मिलकर मानवता के साझा भविष्य का निर्माण कर रही हैं. एक्सियोम द्वारा प्रस्तावित 2030 तक का निजी अंतरिक्ष स्टेशन इस बात का संकेत है कि आने वाले दशक में वाणिज्यिक स्पेस मिशन और वैज्ञानिक अनुसंधान, राज्य-नियंत्रण की परिधियों से परे जाकर निजी क्षेत्र की लचीली और त्वरित कार्यसंस्कृति के जरिए संचालित होंगे. भारत को चाहिए कि वह इस उभरती व्यवस्था में नीति, प्रतिभा और निवेश—तीनों स्तरों पर सजग भागीदार बने.
ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ल, भारतीय वायुसेना के वह गौरव हैं जिन्होंने ना केवल हजारों घंटों की युद्धक उड़ानों का अनुभव प्राप्त किया, बल्कि अब वह भारत के गगनयान मानव मिशन के भी प्रमुख उम्मीदवार हैं. एक्सियोम -4 मिशन उनके लिए एक पूर्वाभ्यास मात्र नहीं, बल्कि भारतीय वैज्ञानिक समुदाय के आत्मविश्वास का भी प्रतीक है. एक्सियोम-4 मिशन में भारत के साथ अमेरिका, पोलैंड और हंगरी के अंतरिक्ष यात्रियों की सहभागिता वैश्विक सहअस्तित्व और शांति की वह छवि प्रस्तुत करती है जिसकी आज मानवता को नितांत आवश्यकता है.जब पृथ्वी की सीमाएं युद्धों, जलवायु संकट और वर्चस्व की राजनीति से थक चुकी हों, तब अंतरिक्ष में सहयोग का यह स्वर ही हमें आगे बढऩे का मार्ग दिखा सकता है.
एक्सियोम -4 मिशन भारत के लिए न केवल वैज्ञानिक गरिमा का क्षण है, बल्कि यह उस भविष्य की आहट भी है जिसमें भारत पृथ्वी के पार भी अपनी सार्थक उपस्थिति सुनिश्चित करेगा. शुभांशु शुक्ल इस दिशा में हमारे अग्रदूत बन चुके हैं.अब भारत को चाहिए कि वह अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को केवल रक्षा या गर्व के माध्यम से न देखे, बल्कि उसे विज्ञान, शिक्षा, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और आर्थिक विकास के चतुर्दिक केंद्र में लाकर स्थापित करे.
