कहां गए जनता से जुड़े मुद्दे !

तीसरे चरण के मतदान के साथ ही 2024 का आधा चुनाव निपट गया है. संतोष की बात यह है कि अभी तक के तीनों चरण शांतिपूर्ण रहे हैं. हालांकि केंद्रीय निर्वाचन आयोग अपनी तमाम कोशिशें के बावजूद नेताओं की बदजुबानी और हेट स्पीच को रोक नहीं पाया है. दरअसल,इस मामले में निर्वाचन आयोग के अधिकार सीमित हैं. वो ज्यादा से ज्यादा नोटिस दे सकता है या चुनाव प्रचार पर प्रतिबंध लगा सकता है. जबकि इस मामले में उसके पास दंड देने या जेल भेजने जैसे अधिकार होने चाहिए. बहरहाल, चुनाव सुधार निरंतर प्रक्रिया है और अलग बहस का विषय है. इस बार का पूरा चुनाव देखने के बाद यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि पक्ष और विपक्ष दोनों के चुनाव अभियान पूरी तरह से अनावश्यक मुद्दों से लैस हैं. यानी ना तो नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस एनडीए और ना ही इंडिया गठबंधन जनता से जुड़े मुद्दों को उठा रहे हैं. बुनियादी मुद्दों को छोडक़र सभी अनावश्यक मुद्दों को दोनों ही पक्षों द्वारा उठाया जा रहा है. भाजपा जहां भावनात्मक आधार पर अपने मतदाताओं को उकसाने का प्रयास कर रही है. वहीं विपक्षी गठबंधन भाजपा पर संविधान और लोकतंत्र खत्म करने का आरोप लगा रहे हैं. होना तो यह चाहिए कि जनता के बुनियादी सवालों पर चुनावों में बहस की जाए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. बहरहाल,देश में लोकसभा चुनाव का तीसरा चरण संपन्न हो गया.कहने को चार चरण और बचे हैं, लेकिन कुल 283 लोकसभा क्षेत्रों में मतदान हो चुका है, जबकि बहुमत का जादुई आंकड़ा 272 है. ऐसे में कहा जा सकता है कि हम मध्य अप्रैल से लेकर जून के पहले सप्ताह तक फैले इस चुनावी सफर का आधा रास्ता तय कर चुके हैं.इस बार अब तक के चुनावों का सबसे दिलचस्प पहलू मतदान प्रतिशत साबित हुआ है. शुरुआती दोनों दौर में वोटिंग 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के मुकाबले कम रही. तीसरे चरण में भी यह ट्रेंड बदलता नहीं दिखा.हालांकि चुनाव आयोग के आधिकारिक आंकड़े आने में अभी वक्त है, फिर भी शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक कुछ खास राज्यों और चुनाव क्षेत्रों में भले वोट प्रतिशत कुछ ज्यादा हो, राष्ट्रीय औसत देखते हुए कहा जा सकता है कि मतदाताओं में कोई अतिरिक्त उत्साह इस बार भी नजर नहीं आया.

यह तथ्य दिलचस्प इसलिए भी बन गया है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों खेमे इसकी अपने मुताबिक व्याख्या करते हुए इसे जीत के अपने दावे का आधार बना रहे हैं. सत्तारूढ़ एनडीए का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत लोकप्रियता को ध्यान में रखें तो साफ हो जाता है कि भाजपा और सहयोगी दलों के समर्थक मतदाता पहले की तरह वोट दे रहे हैं.वे इसमें भाजपा की चुस्त चुनावी मशीनरी की भूमिका को भी रेखांकित करते हैं.इसके विपरीत विपक्षी खेमे का कहना है कि 2014 और 2019 के चुनावों को मोदी समर्थक मतदाताओं के उत्साह ने ही खास बनाया था. इस बार लोगों में वैसा जोश नहीं है. वे कहते हैं कि यह तथ्य जैसे वोटिंग प्रतिशत में नजर आया है, वैसे ही रिजल्ट में भी दिखेगा.

इस चुनाव प्रक्रिया की जीवंतता का एक उदाहरण यह भी है कि अब तक के दौरों में वोटरों के रेस्पॉन्स के आधार पर विभिन्न दलों की प्रचार शैली में खास बदलाव दिख रहा है.पहले और दूसरे चरण के बाद चुनाव प्रचार ज्यादा तीखा होता दिखा.न केवल राजनीतिक दल एक-दूसरे को लेकर ज्यादा आक्रामक हुए बल्कि ऐसे मुद्दों पर उनका जोर बढ़ा जो आम मतदाताओं को उद्वेलित करके उन्हें चुनाव बूथों तक जाने को प्रेरित करे.भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में हर चुनाव ही खास होता है, फिर भी ये चुनाव विशेष रूप से देश-विदेश का ध्यान खींच रहे हैं तो उसकी वजह यह भी है कि विपक्ष ने इस बार लोकतंत्र को भी चुनावी मुद्दा बना दिया है. दूसरी ओर सत्ता पक्ष भी पीछे न रहते हुए यह आरोप लगा रहा है कि विदेशी ताकतें इन चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की कोशिश में हैं . खैर, इन सब पर जनता क्या सोचती है, यह तो 4 जून को नतीजों के आने पर ही पता चलेगा. जहां तक चुनाव अभियान का प्रश्न है तो इस मामले में सभी दलों ने जनता को निराश किया है. स्थिति यह है कि इन चुनावों में जनता को कम खराब दल का चुनाव करना है. अभी भी चार चरणों का चुनाव बाकी है. ऐसे में अपेक्षा की जानी चाहिए कि सभी राजनीतिक दल जनता से जुड़े सवालों को अपने चुनाव अभियान का मुद्दा बनाएंगे !

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