हाल की घटनाओं से पता चलता है कि सीमा पार के आतंकवादी फिर से भारत में संगठित होने की कोशिश कर रहे हैं. पहली घटना पिछले सप्ताह दिल्ली एनसीआर की स्कूलों में ईमेल के जरिए दहशत फैलाने की कोशिश करने से हुई. जबकि दूसरी घटना दो दिन पूर्व कश्मीर में हमले के रूप में सामने आई है.दरअसल,
जम्मू-कश्मीर के पुंछ में एयरफोर्स के वाहनों के काफिले पर शनिवार शाम को आतंकी हमला हो गया. इस हमले में 5 जवान घायल हो गए थे. सुरक्षा अधिकारियों ने बताया कि घायल जवानों को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान एक जवान शहीद हो गया, जबकि दूसरे जवान की हालत बेहद गंभीर है, उनका इलाज चल रहा है, जबकि तीन जवानों की हालत स्थिर है. बहरहाल,कश्मीर का एम हमला चुनाव के दौरान सियासत का सबब बना. जबकि
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और एनसीआर के लिए बुधवार की सुबह असामान्य रही.जिस तरह से एक के बाद एक अलग-अलग स्कूलों में बम रखे होने की खबर आने लगीं, उससे न केवल स्कूल के स्टाफ, बच्चों और अभिभावकों में घबराहट फैली बल्कि इसे देख-सुन रहे सभी लोग सकते में आ गए.हालांकि, करीब 200 स्कूलों को चपेट में लेने वाली यह खबर पूरी तरह फर्जी निकली, लेकिन देश की राजधानी में अफरातफरी की स्थिति तो इसने बना ही दी. यूं तो किसी आतंकी संगठन या ग्रुप ने अब तक इसकी जिम्मेदारी नहीं ली है, लेकिन जो शुरुआती संकेत मिले हैं, उनके मद्देनजर इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय साजिश से इनकार नहीं किया जा रहा. सभी स्कूलों को एक ही कंटेंट ईमेल किया गया. ईमेल भेजने के लिए रूसी वीपीएन का इस्तेमाल हुआ है, लेकिन सभी मेल एक ही आईडी से भेजे गए हैं.जिस तैयारी से ईमेल भेजी गई है, उसे देखते हुए विशेषज्ञ कह रहे हैं कि इसकी ओरिजिन पता लगाना आसान नहीं होगा.जाहिर है, इन दोनों घटनाओं से पता चलता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकी संगठन भारत में फिर से सक्रिय होने की कोशिश कर रहे हैं. संभव है उन्हें लगता हो कि देश में इन दिनों चुनाव चल रहे हैं इसलिए खुफिया एजेंसियों और अर्ध सैनिक बलों का ध्यान चुनाव पर रहेगा.ऐसे में किसी आतंकी वारदात को अंजाम देने के लिए यह समय अनुकूल लग सकता है. कुल मिलाकर सुरक्षा बलों की सतर्कता और साहस के कारण आतंकी बड़ी घटना को अंजाम नहीं दे पा रहे हैं लेकिन कश्मीर के दो-तीन जिलों में जरूर उनकी सक्रियता लगातार देखी जा रही है. दरअसल,आतंकवादी इसलिए भी बौखलाए हुए हैं क्योंकि जम्मू कश्मीर में जनवरी के बाद से अब तक पर्यटकों की तादाद में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है.आतंकवादियों की बौखलाहट का एक कारण यह भी है कि आतंकवाद को अब स्थानीय नागरिकों का समर्थन नहीं मिल रहा है. इस समय जो आतंकी वारदातें हो रही हैं वे सभी घुसपैठियों और भाड़े के टट्टूओं द्वारा की जा रही हैं. वास्तव में पाकिस्तान नहीं चाहता कि जम्मू कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव हो और जनता वहां भारी मतदान करें. यदि कश्मीर में 50 फ़ीसदी से अधिक मतदान होता है तो इससे पाकिस्तान को दिक्कत होती है. वह कश्मीर को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर मनचाहा नैरेटिव नहीं बन सकता. इसलिए चुनाव को प्रभावित करने के लिए आतंकवादी वहां नए सिरे से सक्रिय हुए हैं.
ताजा वारदात का कारण खराब मौसम बताया जा रहा है. फिर भी इसमें कोई शक नहीं कि कहीं ना कहीं सुरक्षा और सतर्कता में चूक रह गई है, जिसका फायदा आतंकियों ने उठाया. बहरहाल, इसमें कोई शक नहीं कि जम्मू-कश्मीर में 5अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से सुरक्षा स्थिति में सुधार हुआ है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं और आतंकवादियों की संख्या में काफी कमी आई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर में 2018 में आतंकी घटनाएं 417 थीं, जो 2021 में घटकर 229 रह गई. 2022 और 23 में इनमें और भी कमी देखी गई. जम्मू कश्मीर में बदले हालात की बानगी यह भी है कि पिछले 2 वर्षों से वहां रिकॉर्ड सैलानी आ रहे हैं. इस वर्ष भी गर्मी के मौसम में कश्मीर घाटी के सभी होटल और रिसॉर्ट पहले से ही बुक थे.आतंकियों की बौखलाहट का एक कारण यह भी है कि जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान को दुनिया में कहीं से भी समर्थन नहीं मिल रहा है. दरअसल, कश्मीर में हालात सुधर रहे हैं. इसलिए अब वहां लापरवाही की गुंजाइश नहीं है. जाहिर है जो भी आतंकी वहां बच गए हैं उनको भी नष्ट किया जाना जरूरी है. चुनाव के मध्य सुरक्षा बलों को कश्मीर में और अधिक सतर्कता बरतनी होगी.