एकला चलो की तर्ज पर चुनाव प्रचार में ताकत झोंक रहे परमार, कांग्रेस में नीरसता

उज्जैन:लोकसभा चुनाव में भले ही कांग्रेसी उम्मीदवार महेश परमार चुनावी मैदान में जोर लगा रहे हों। लेकिन उज्जैन में यह साफ नजर आ रहा है कि वे अलग थलग हैं। क्योंकि जिस तरह से वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को उनका साथ देना चाहिए वह साथ नहीं मिल रहा है। गौरतलब है कि उज्जैन संसदीय सीट के लिए 13 मई को मतदान होना है।
प्रदेश कांग्रेस में जिस तरह से टूट हो रही है अर्थात कांग्रेसियों का बीजेपी में जाने का सिलसिला जारी है। उससे उज्जैन में भी कांग्रेसियों में चुनाव को लेकर नीरसता है और यही कारण है कि महेश परमार एकला चलो की तर्ज पर चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। लोकसभा चुनाव में भले ही अब महज दस दिन भी शेष नहीं बचे हुए हों लेकिन कांग्रेस की यदि बात करें तो गुटबाजी तो हावी नजर आ ही रही है।

वहीं महसूस होता है कि कांग्रेस के उम्मीदवार महेश परमार अकेले पड़ गए हैं। क्योंकि जिस तरह से वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं को उनके साथ मैदान में कूद पडऩा था या फिर साथ देना था वह सब नहीं दिखाई दे रहा है। कांग्रेस के सूत्र ही यह बताते हंै कि यदि इसी तरह से होता रहा तो हो सकता है कि कांग्रेस को उज्जैन में इसका विपरीत असर देखने को मिले..! जिस तरह से प्रदेश में कांग्रेस की गति बनी हुई है उससे यह साफ दिखाई दे रहा है कि कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार या फिर चुनाव महज औपचारिक बनकर ही रह गया है। बीते कुछ दिनों पहले ही इंदौर में कांग्रेस के उम्मीदवार अक्षय कांति बम ने धमाका किया था। उसकी गूंज उज्जैन में भी कांग्रेसियों ने सुनी थी और इसका भी असर शहर कांग्रेसियों में देखा जा रहा है और इस बात की चर्चा सुनाई दे रही है कि कांग्रेस पूरी तरह से बिखर चुकी है..।

बता दें कि अक्षय कांति बम ने नामांकन वापस लेने के अंतिम दिन अपना नामांकन वापस ले लिया था और इसी दिन वे कांग्रेस को छोडक़र बीजेपी में चले गए थे। कुल मिलाकर इंदौर के इतिहास में संभवत: ऐसा पहली बार हुआ होगा कि किसी राष्ट्रीय राजनीतिक दल अर्थात कांग्रेस के किसी प्रत्याशी ने अपना नामांकन ऐन वक्त पर वापस लिया हो। इस घटनाक्रम के बाद तो इंदौर लोकसभा सीट पर कांग्रेस का कोई उम्मीदवार मैदान में ही नहीं है। खैर इंदौर का उदाहरण देना इसलिए जरूरी था कि पड़ोसी शहर के हुए राजनीतिक घटनाक्रम के बाद उज्जैन के भी कांग्रेसी स्तब्ध है वहीं
जो स्थितियां महेश परमार के साथ दिखाई दे रही है वह भी कुछ कम नहीं है। क्योंकि कांग्रेसी ही यह स्वीकार कर रहे है कि हमें इस लोकसभा चुनाव में रूचि ही नहीं है। सिर्फ औपचारिकता निर्वहन की जा रही है। संभवत: यही कारण है कि महेश परमार अलग थलग नजर आ रहे है।

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