सियासत
इंदौर में जिस तरह से कांग्रेस प्रत्याशी विहीन हो गई उससे पूरे इंदौर और उज्जैन संभाग में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का मनोबल प्रभावित हुआ है। इतना सब होने के बावजूद कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता जिस तरह से बयान बाजी कर रहे हैं उससे स्पष्ट है कि उन्होंने तय कर लिया है कि हम नहीं सुधरेंगे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी की प्रतिक्रिया से भी जाहिर है कि उन्होंने इस घटनाक्रम से कोई सबक नहीं लिया है। जीतू पटवारी का बड़बोलापन लगातार जारी है। उन्होंने इमरती देवी के लिए कह दिया कि अब इस इमरती में रस नहीं बचा है। उन्होंने कहा कि इस इमरती की चासनी खत्म हो गई है। जाहिर है उनके इस बयान से बवाल हो गया है। बवाल मचने के बाद जीतू पटवारी को बार-बार माफी मांगनी पड़ रही है। भिंड और मुरैना के दलित मतदाताओं के बीच जीतू पटवारी के इस कथन से गलत संदेश गया है। इन दोनों सीटों पर 7 मई को मतदान होगा। बहरहाल, इंदौर में भाजपा की सर्जिकल स्ट्राइक में अपना प्रत्याशी गंवाने के बाद से कांग्रेस के पदाधिकारी इस मनोवैज्ञानिक हार पर भले ही चिंतन-मनन कर लें, लेकिन लगातार बिगड़ती स्थिति के बीच बचे-खुचे नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल थामना सबसे बड़ी चुनौती है।
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद शायद ही कोई सप्ताह ऐसा बीता है, जब किसी न किसी बड़े कांग्रेस नेता ने अपनी पार्टी छोडक़र भाजपा का दामन नहीं थामा हो।प्रदेश में कांग्रेस की फजीहत शुरू हुई 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर बनी सरकार को डेढ़ साल बाद ही कांग्रेस के अपने नेताओं द्वारा गिरा देने के बाद। इसके बाद सत्तारूढ़ हुई भाजपा ने ऑपरेशन ‘कांग्रेस मुक्त मध्य प्रदेश’ शुरू कर दिया। 2023 के विधानसभा चुनाव के पहले तक कांग्रेसी नेता प्रदेश में बने छद्म माहौल से भरमाते रहे कि प्रदेश में अब उनके अच्छे दिन आने ही वाले हैं, लेकिन भाजपा की प्रचंड लहर से कांग्रेस के पैर ऐसे उखड़े कि तमाम कोशिशों के बाद भी कहीं टिक नहीं पा रहे हैं।विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस के वरिष्ठतम नेतृत्व को किनारे कर युवा पीढ़ी के हाथों कमान सौंपी गई। नए नेताओं के शुरुआती तेवरों से ऐसा लगा भी कि पार्टी नई ऊर्जा के साथ मैदान में उतरेगी, लेकिन ऊर्जा के बजाय कांग्रेस को ‘पतझड़’ का सामना करना पड़ा।
बड़े नेता चुनाव लडऩे को तैयार नहीं हुए
इंदौर के वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के अनुसार स्वतंत्रता के बाद से अब तक कांग्रेस इतने बुरे दौर से शायद ही कभी गुजरना पड़ा, जब चुनाव लडऩे के लिए पार्टी के नेता तैयार नहीं हैं। इस लोकसभा चुनाव के लिए खंडवा, धार, इंदौर और देवास लोकसभा क्षेत्रों में आधा दर्जन से ज्यादा नेताओं ने चुनाव लडऩे से साफ इनकार कर दिया। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रह चुके अरुण यादव जैसे नेता भी आगे नहीं आए। प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के गृह नगर इंदौर से भी अग्रिम पंक्ति के नेताओं ने पहले ही चुनाव लडऩे से किनारा कर लिया था। किसी तरह अक्षय कांति बम जैसे नए नेता को तैयार भी किया, तो वे भी नाम वापसी के अंतिम दिन अपना नाम वापस लेकर भाजपाई हो गए। अधिकृत उम्मीदवार के इस तरह साथ छोडऩे से कांग्रेस की जो फजीहत हुई, उसने प्रदेश भर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल बुरी तरह तोड़ दिया।
आदिवासी अंचल के मजबूत गढ़ों में भी पलायन नहीं रुका
मालवा-निमाड़ की जिन आदिवासी बहुल सीटों पर कांग्रेस खुद को मुकाबले में मान कर चल रही थी, वहां भी एक के बाद एक नेताओं के पार्टी छोडऩे से कार्यकर्ताओं में निराशा है। झाबुआ में युवक कांग्रेस जिला अध्यक्ष व जिला पंचायत सदस्य विजय भाबोर, जिला पंचायत सदस्य ममता हटीला, आलीराजपुर कांग्रेस के पूर्व जिला महासचिव सुरपाल अजनार, सोंडवा जनपद पंचायत अध्यक्ष रेवली गरासिया, उदयगढ़ क्षेत्र के नेता कमरू अजनार के पार्टी छोडऩे से हतप्रभ नेता स्थिति संभालते, उसके पहले ही धार से पूर्व सांसद व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी ने भी कांग्रेस छोडक़र भाजपा का दामन थाम लिया। यही नहीं, इंदौर में संजय शुक्ला और विशाल पटेल जैसे पूर्व विधायकों के साथ ही महू के अंतर सिंह दरबार भी कांग्रेस को झटका दे गए।
नोटा को लेकर इंडिया गठबंधन के दलों में सहमति नहीं !
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने ऐलान किया कि इंदौर में कांग्रेस नोटा बटन के लिए प्रचार करेंगी। इस संबंध में इंडिया गठबंधन के इंदौर में सक्रिय दलों से भी चर्चा हुई लेकिन अभी तक फैसला नहीं हो सका। कांग्रेस की एक समस्या यह भी है की नोटा के प्रचार का खर्चा कौन उठाएगा। जीतू पटवारी चाहते हैं कि नोटा का प्रचार भी वैसे ही किया जाए जैसे प्रत्याशी खड़ा होने पर किया जाता है। सवाल यह है कि प्रचार खर्च करने की मानसिकता में कोई भी कांग्रेसी नहीं है। शहर कांग्रेस अध्यक्ष सुरजीत चड्ढा और ग्रामीण कांग्रेस अध्यक्ष सदाशिव यादव पर वैसे ही निष्क्रियता के आरोप लग रहे हैं। ऐसे में नोटा का प्रचार कांग्रेस कैसे करेगी ? इस बीच कांग्रेस में नोटा के पक्ष में अपील करने न करने पर भी असमंजस की स्थिति दिख रही है। कई वरिष्ठ नेता जहां नोटा का बटन दबाने की अपील के साथ जनता के बीच जाने की योजना बना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कई वरिष्ठ नेता इससे सहमत नहीं हैं। इन नेताओं का कहना है कि मालवा-निमाड़ के आसपास की सीटों पर इंदौर के नेताओं और कार्यकर्ताओं को कांग्रेस का काम करने के लिए निकल जाना चाहिए। नोटा के समर्थन में ऊर्जा और समय बर्बाद करने से लाभ कुछ नहीं होगा। बेहतर है कि अन्य उम्मीदवारों के लिए काम कर लिया जाए।