ईवीएम : सभी संदेह दूर होना चाहिए

2024 के लोकसभा चुनाव में मतदान का पहला चरण पूर्ण हो चुका है.इसलिए चुनाव प्रक्रिया में कोई बड़ा बदलाव हो यह संभव नहीं है लेकिन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ईवीएम को लेकर विपक्षी दल लगातार सवाल उठा रहे हैं. वैसे यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी दायर हो चुका है. सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा है. पहली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय निर्वाचन आयोग से अनेक सवाल पूछे हैं जिनका लिखित जवाब निर्वाचन आयोग को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दाखिल करना है. वैसे तो सुप्रीम कोर्ट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को लेकर उठ रहे तमाम सवालों का गंभीर परीक्षण करेगा ही लेकिन केंद्रीय चुनाव आयोग को भी चाहिए कि वह इस संबंध में तमाम संदेहों को दूर करें जिससे निर्वाचन प्रक्रिया और पारदर्शी तथा निष्पक्ष हो सके. दरअसल,

मसला इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ईवीएम में डाले गए वोटों के वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपेट) पर्चियों से मिलान का है.ईवीएम के जरिए वोटिंग की शुरुआत 2004 के लोकसभा चुनावों में हुई थी. तब से सरकारें बदलती रहीं, लेकिन ईवीएम की गड़बडय़िों के आरोप लगते रहे.इस बार सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह बात पहले ही स्पष्ट कर दी कि बैलट पेपर की ओर वापसी का विकल्प नहीं है,लेकिन उसने यह भी कहा कि चुनाव प्रक्रिया की शुचिता और उसकी विश्वसनीयता से किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता.ईवीएम विश्वसनीयता के सवाल से जूझते हुए ही 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से वीवीपेट लाया गया. इससे मतदाताओं को यह देखने का मौका मिलता है कि उनका वोट उसी को गया है जिसे वह देना चाहते थे. इसने निश्चित रूप से ईवीएम की विश्वसनीयता बढ़ाने वाले एक टूल के रूप में अपनी जगह बनाई है, लेकिन विवाद का कोई सर्वमान्य हल उसके बाद भी नहीं निकल सका.

2019 के लोकसभा चुनावों से पहले यह मामला एक बार फिर जोरदार ढंग से उठा. तब सुप्रीम कोर्ट में पिटिशन के जरिए मांग की गई कि हर लोकसभा क्षेत्र में 50 फीसदी वीवीपेट पर्चियों का मिलान किया जाए. इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिट्यूट का कहना था कि अगर बिना किसी तय आधार के यूं ही चुन लिए गए 479 ईवीएम का वीवीपेट से मिलान किया जाता है तो 99 फीसदी सटीक नतीजे आ सकते हैं. चुनाव आयोग ने बताया कि वह इससे आठ गुना ज्यादा ईवीएम लेता है.

बहरहाल, देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस आज भले ही इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर संदेह जाता रही है लेकिन, ईवीएम की शुरुआत कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार के ही दौरान हुई थी. 2004 के उस दौर से लेकर आज तक करीब 340 करोड़ मतदाता अपने संवैधानिक मताधिकार का इस्तेमाल ईवीएम से कर चुके हैं और 4 लोकसभा चुनाव ईवीएम के जरिए सम्पन्न कराए जा चुके हैं. 26 विधानसभा चुनावों और एक लोकसभा चुनाव में वीवीपैट पर्ची का भी इस्तेमाल किया जा चुका है.एक आम चुनाव में 55 लाख से अधिक ईवीएम का इस्तेमाल किया जाता है और करीब 1.5 करोड़ चुनावकर्मी मतदान प्रक्रिया में हिस्सा लेते हैं.सभी एक विशेष पार्टी के पक्षधर हो जाएं या ईवीएम का प्रोग्राम एक ही पार्टी के पक्ष में तय कर दिया जाए और इतने चुनावकर्मी एक साथ ‘भ्रष्ट’ हो जाएं, यह बिल्कुल भी संभव नहीं है. ईवीएम किसी लैपटॉप, कम्प्यूटर अथवा इंटरनेट नेटवर्क से जुड़ी हुई नहीं है, उसे हैक करना या छेड़छाड़ करना भी संभव नहीं है, अलबत्ता मशीन में तकनीकी खराबी जरूर आ सकती है. चुनाव आयोग ने अदालत में अपना समूचा पक्ष रखा है.वीवीपैट पर्ची और वोटिंग के आपसी मिलान पर भी स्पष्टीकरण दिया है.पर्ची 7 सेकंड के लिए दिखती है. उसके बाद पर्ची मशीन में ही चली जाती है. न्यायिक पीठ को बताया गया कि पर्ची को मतदाता को देना जोखिम का काम है. इससे गोपनीयता भंग हो सकती है और बाहर निकालने पर पर्ची का दुरुपयोग भी किया जा सकता है.सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक पीठ के सामने चुनाव आयोग ने यह भी खुलासा किया कि 4 करोड़ ईवीएम वोट और वीवीपैट पर्चियों के मिलान कराए गए हैं, जिनमें कभी कोई गड़बड़ी नहीं मिली. वैसे तो सभी को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए लेकिन फिर भी चूंकि चुनाव प्रक्रिया जारी है. इसलिए निर्वाचन आयोग को पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए ईवीएम के सभी संदेह दूर करना चाहिए.

 

Next Post

भारत की पहली फीमेल सुपरस्टार थी कानन देवी

Tue Apr 23 , 2024
Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email मुंबई, (वार्ता) भारतीय सिनेमा जगत में कानन देवी को पहली फीमेल सुपरस्टार के तौर पर याद किया जाता है, उन्होंने न सिर्फ फिल्म निर्माण की विद्या से बल्कि अभिनय और पार्श्वगायन से भी दर्शकों के बीच अपनी […]

You May Like