मुर्मु ने स्लोवाक कंपनियों से ‘मेक इन इंडिया’ पहल में शामिल होने का आह्वान किया

नयी दिल्ली 10 अप्रैल (वार्ता) स्लोवाकिया की यात्रा पर गई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने स्लोवाक कंपनियों से भारत की ‘मेक इन इंडिया’ पहल में शामिल होने का आह्वान किया है।

श्रीमती मुर्मु ने यात्रा के दूसरे दिन गुरुवार को ब्रातिस्लावा में स्लोवाकिया-भारत व्यापार मंच को संबोधित करते हुए यह बात कही।

राष्ट्रपति ने कहा, “भारत और स्लोवाकिया के बीच ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं। पिछले कई वर्षों से हमारे देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग किया है। अब समय आ गया है कि हम अपने व्यापार क्षेत्र में विविधता लाने की संभावनाओं पर विचार करें।”

उन्होंने कहा, “भारत उल्लेखनीय परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है और प्रौद्योगिकी, नवाचार और सतत विकास में वैश्विक नेता के रूप में उभर रहा है। हमने अक्षय ऊर्जा, डिजिटल प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, दूरसंचार, ऑटो और ऑटो-घटक, फार्मा और जैव प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष और फिनटेक में महत्वपूर्ण सफलता देखी है। आने वाले वर्षों में भारत के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की उम्मीद है और हम स्लोवाकिया जैसे अपने मित्रों के साथ साझेदारी में ऐसा करने की उम्मीद करते हैं।”

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, और स्लोवाकिया, अपने मजबूत औद्योगिक आधार और यूरोप में रणनीतिक स्थान के साथ, गहरे व्यापार और निवेश संबंधों के लिए बेहतरीन अवसर प्रदान करता है। यूरोपीय संघ के एक प्रमुख सदस्य और ऑटोमोटिव, रक्षा और उच्च तकनीक उद्योगों के केंद्र के रूप में, स्लोवाकिया भारत के विशाल उपभोक्ता बाजार, कुशल कार्यबल और संपन्न स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र से लाभान्वित होने की स्थिति में है। उन्होंने स्लोवाक कंपनियों को भारत की’मेक इन इंडिया’ पहल में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। राष्ट्रपति ने कहा कि स्लोवाकिया-भारत व्यापार मंच तालमेल तलाशने और पारस्परिक रूप से लाभकारी साझेदारी बनाने के लिए एक उत्कृष्ट मंच के रूप में कार्य करता है। उन्होंने व्यापार जगत के नेताओं से अवसरों का लाभ उठाने और इन्हें ठोस परिणामों में बदलने का आग्रह किया। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि मंच पर विचार-विमर्श से स्थायी साझेदारी की ओर अग्रसर होंगे।

इसके बाद राष्ट्रपति ने नाइट्रा में कॉन्स्टेंटाइन द फिलॉसफर यूनिवर्सिटी का दौरा किया, जहां उन्हें लोक सेवा और शासन में उनके विशिष्ट करियर, सामाजिक न्याय और समावेशन की वकालत, तथा शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और सांस्कृतिक और भाषाई विविधता को बढ़ावा देने में योगदान के लिए डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।

राष्ट्रपति ने कहा कि यह एक ऐसा सम्मान है, जो उस देश और सभ्यता को दिया जा रहा है, जो अनादि काल से शांति और शिक्षा का प्रतीक रहा है। दार्शनिक संत कॉन्स्टेंटाइन सिरिल के नाम पर बने संस्थान से यह उपाधि प्राप्त करना विशेष रूप से सार्थक है।

राष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा न केवल व्यक्तिगत सशक्तिकरण का साधन है, बल्कि राष्ट्रीय विकास का भी साधन है। इसे स्वीकार करते हुए भारत ने शिक्षा को अपनी राष्ट्रीय विकास रणनीति के केंद्र में रखा है। अपनी आधी आबादी की आयु 25 वर्ष से कम होने के कारण भारत भविष्य की ज्ञान अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए अपने युवाओं में निवेश कर रहा है।

राष्ट्रपति ने कहा कि भले ही भारत आधुनिकता और प्रौद्योगिकी को अपना रहा है, लेकिन हमारी प्रगति हमारी प्राचीन दार्शनिक परंपराओं के ज्ञान में गहराई से निहित है। उन्होंने कहा कि जिस तरह सेंट कॉन्स्टेंटाइन सिरिल के काम ने स्लाव भाषाई और सांस्कृतिक पहचान की नींव रखी, उसी तरह भारतीय दार्शनिक परंपराओं ने लंबे समय से हमारे समाज के बौद्धिक और आध्यात्मिक ताने-बाने को आकार दिया है। भारतीय शास्त्रीय दर्शन वास्तविकता की समृद्ध और विविध खोज प्रदान करता है, जिसमें आत्मनिरीक्षण और नैतिक आचरण पर जोर दिया जाता है। यह कई दृष्टिकोणों और आत्म-ज्ञान और आंतरिक अनुभव के महत्व पर प्रकाश डालता है। उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि उपनिषदों का कालातीत ज्ञान स्लोवाकिया में भी गूंजता है।

अगले कार्यक्रम में, राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति पीटर पेलेग्रिनी के साथ ब्रातिस्लावा में जगुआर लैंड रोवर फैक्ट्री का दौरा किया और प्लांट की विनिर्माण सुविधाओं को देखा।

इससे पहले सुबह, राष्ट्रपति ने स्लोवाक बच्चों द्वारा बनाई गई पेंटिंग की एक प्रदर्शनी देखी। स्लोवाक-भारतीय मैत्री सोसायटी, भारतीय दूतावास के सहयोग से, 2015 से पेंटिंग प्रतियोगिता ‘परियों की कहानियों में छिपी सुंदरता – स्लोवाक बच्चों की नज़र से भारत’ का आयोजन कर रही है। उन्होंने सुश्री लेनका मुकोवा द्वारा रामायण पर आधारित कठपुतली शो भी देखा। सुश्री लेनका प्रेसोव में बाबादलो कठपुतली थियेटर का हिस्सा हैं, जो 30 वर्षों से कठपुतली के माध्यम से बच्चों को शिक्षित कर रहा है।

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