विक्रांत पर बढ़ रहा आलाकमान का भरोसा

मालवा- निमाड़ की डायरी
संजय व्यास

पूर्व युवा कांग्रेस अध्यक्ष व झाबुआ विधायक डॉ. विक्रांत भूरिया पर कांग्रेस आलाकमान का भरोसा दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है. थोड़े समय पहले ही उन्हें राष्ट्रीय आदिवासी कांग्रेस की कमान सौंप अध्यक्ष बनाया गया था. अब अहमदाबाद राष्ट्रीय अधिवेशन की जिम्मेदारी दी गई है. अब तक दिल्ली दरबार में अंचल के युवा आदिवासी नेता व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार का जलवा दिखाई देता रहा है. चाहे उड़ीसा चुनाव रहा चाहे झारखंड, आदिवासी बहुल इन राज्यों में लुभाने के लिए प्रचार-प्रभार उमंग सिंघार को मिला. लगता है अब सिंघार को दरकिनार किया जा रहा है और विक्रांत भूरिया को आगे बढ़ाया जा रहा है.

यह इसी से साबित होता है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन जैसे महत्वपूर्ण आयोजन के लिए भूपेश बघेल, रणदीप सुरजेवाला जैसे वरिष्ठ नेताओं के साथ विक्रांत भूरिया को कमेटी में लिया गया है. विक्रांत भूरिया को कॉर्डिनेटर बनाया है, जबकि इस टीम के संयोजक राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला हैं. ये सभी नेता मिलकर अधिवेशन की तैयारियां करेंगे. बताया जा रहा है कि यह कमेटी राष्ट्रीय अधिवेशन में जिन मुद्दों पर चर्चा होनी है, उसका ड्राफ्ट तैयार करेगी और आने वाली रणनीतियों पर चर्चा करेगी. इस कमेटी में 15 सदस्य हैं जो अलग-अलग राज्यों से आते हैं. मप्र से विक्रांत को मौका दिया गया है.

सिंघार से क्यों फेर रहे मुंह?

उमंग सिंघार ने राहुल गांधी के साथ देश का पहला ट्राइबल टूर किया जिसमें आदिवासियों के लिए नीति बनाने का कार्य किया गया. सिंघार ने कांग्रेस आलाकमान द्वारा समय-समय पर सौंपी गई कई अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां जैसे ओडिशा, झारखंड चुनाव, अमेठी चुनाव के इलेक्शन कैंपेन में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया. एआइसीसी के राष्ट्रीय सचिव और अनुसूचित जनजाति मोर्चा के सदस्य रहे. सिंघार झारखंड राज्य के सह प्रभारी भी रहे. इन सब के बावजूद सिंघार से कांग्रेस नेतृत्व का दूरी बनाना कई सवाल खड़े कर रहा है. राजनीतिक गलियारे में फुसफुसाहट है कि इसके पीछे उनका व्यक्तिगत विवादों में घिरना है. मामला पुराना है, पर इसके हाल ही में सुप्रीम कोर्ट पहुंचने से फिर चर्चा में आ गया है. उनकी महिला मित्र की संदिग्ध मौत मामले में सु्प्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है.

याचिका में जांच की मांग की गई है ताकि यह बात सामने आ सके कि उमंग सिंघार की महिला मित्र की हत्या की गई थी या यह वाकई आत्महत्या का ही मामला है . इस संदिग्ध मौत की गहराई से जांच की मांग की जा रही है. आरोप लगाया जा रहा है कि एक अधिकारी की मदद से हत्या के इस केस को सुसाइड का रूप दे दिया गया. पुलिस में मामला दर्ज होने के बाद केस ट्रायल के लिए पहुंचा था, इसी बीच हाईकोर्ट जबलपुर में अपील पर 5 जनवरी 2022 को एफआईआर निरस्त करने के आदेश दिए. याचिका कर्ता ने इसी आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की है. याचिकाकर्ता और कोई नही उनकी तथाकथित पत्नी प्रतिमा मुदगल हैं. अब बात कुछ भी हो सिंघार को इसमें फंसता देख पार्टी अभी कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती. कहा जा रहा है कि इसीलिए उनको नई जिम्मेदारी देने से मुंह फेरा जा रहा है.

निशाने पर विजय शाह

जनजातीय कार्य विभाग मंत्री विजय शाह की एक नोटशीट के आधार पर राजभवन सचिवालय की जनजातीय सेल में हुई आदिवासी विधि सलाहकार की नियुक्ति मात्र सात दिनों में रद्द कर दी गई. यह फैसला इसलिए लिया गया क्योंकि नियुक्त विधि सलाहकार सोनल दरबार मंत्री शाह के विरोधी परिवार से संबंध रखती हैं. इसके बाद से विजय शाह विपक्षी दलों के निशाने पर हैं.

विपक्षी दलों ने इस नियुक्ति को रद्द किए जाने की मंशा पर सवाल उठाए हैं, जिसमें नेताओं के विरोधी व्यक्तियों को महत्वपूर्ण पदों से दूर रखा जा रहा है. विपक्ष का कहना है कि यह फैसला योग्यता के बजाय राजनीतिक संबद्धता के आधार पर लिया गया है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है. हालांकि शाह बचाव में कहते हैं कि सोनल दरबार इंदौर संभाग की रहने वाली हैं. पहले से ही इंदौर संभाग की एक महिला सदस्य जनजातीय सेल में कार्यरत हैं. चूंकि जनजातीय सेल में पूरे प्रदेश का प्रतिनिधित्व हो सके, इसलिए जरूरी है कि जबलपुर संभाग से किसी जनजातीय महिला को नियुक्त किया जाए.

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