जल संकट से निपटने की अभी से तैयारियां करें

मौसम विभाग के अनुसार इस बार ज्यादा गर्मी पड़ेगी. ऐसा ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रहा है. पर्यावरणविद् भी इस संबंध में चिंता जाता चुके हैं. बढ़ती गर्मी के साथ ही जल संकट की स्थिति दिनों दिन विकराल होती जा रही है.अभी मार्च का महीना बीता भी नहीं है, लेकिन देश के कई हिस्सों में जल संकट की आहट सुनाई दे रही है. दरअसल, देश के सभी हिस्सों का मुख्य जल स्रोत तो बारिश ही है और जलवायु परिवर्तन के कारण साल दर साल बारिश का अनियमित होना, बे समय होना और अचानक तेजगति से होना घटित होगा ही.आंकड़ों के आधार पर भारतीय पानी के मामले में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा समृद्ध हैं, लेकिन चिंता का विषय यह है कि पूरे पानी का कोई 85 प्रतिशत बारिश के तीन महीनों में समुद्र की ओर बह जाता है और नदियां सूखी रह जाती हैं.

यह सवाल देश में हर तीसरे साल खड़ा हो जाता है कि जब‘औसत से कम पानी बरसेगा या बिल्कुल नहीं बरसेगा, तब क्या होगा ? देश के 13 राज्यों के 135 जिलों की कोई दो करोड़ हेक्टर कृषि भूमि के किसान प्रत्येक दस साल में चार बार पानी के लिए त्राहि-त्राहि करते हैं. दरअसल, लेाग नजरअंदाज कर रहे हैं कि यदि सामान्य से कुछ कम बारिश भी हो और प्रबंधन ठीक हो तो समाज पर इसके असर को कम किया जा सकता है.आंकड़े कहते हैं भारत में दुनिया की कुल जमीन या धरातल का 2.45 क्षेत्रफल है.दुनिया के कुल संसाधनों में से चार प्रतिशत हमारे पास हैं व जनसंख्या की भागीदारी 16 प्रतिशत है. हमें हर साल औसतन 110 सेंटीमीटर बारिश से कुल 4000 घन मीटर पानी प्राप्त होता है, जो कि दुनिया के अधिकांश देशों से बहुत ज्यादा है.इसके बावजूद हमारे यहां बरसने वाले कुल पानी का महज 15 प्रतिशत ही संचित हो पाता है. शेष पानी नालियों, नदियों से होते हुए समुद्र में जाकर मिल जाता है. कम बारिश में भी उग आने वाले मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, कुटकी आदि की खेती का इस्तेमाल सालों-साल कम हुआ है.वहीं ज्यादा पानी मांगने वाले सोयाबीन व अन्य कैश क्रॉप ने खेतों में स्थान बढ़ाया गया है.इसके चलते बारिश पर निर्भर खेती बढ़ी है. जाहिर है थोड़ा भी कम पानी बरसने पर किसान दुखी दिखता है.

हमारे देश का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.80 लाख वर्ग किलोमीटर है, जबकि सभी नदियों का सम्मिलित जलग्रहण क्षेत्र 30.50 लाख वर्ग किलोमीटर है. भारतीय नदियों के मार्ग से हर साल 1645 घन किलोलीटर पानी बहता है जो सारी दुनिया की कुल नदियों का 4.445 प्रतिशत है. देश के उत्तरी हिस्से में नदियों में पानी का अस्सी फीसदी जून से सितंबर के बीच रहता है, दक्षिणी राज्यों में यह आंकड़ा 90 प्रतिशत का है.

देश में आठ महीनों में पानी का जुगाड़ ना तो बारिश से होता है और ना ही नदियों से. यह दुखद है कि बरसात की हर बूंद को सारे साल जमा करने वाली गांव-कस्बे की छोटी नदियां बढ़ती गरमी, घटती बरसात और जल संसाधनों की नैसर्गिकता से लगातार छेड़छाड़ के चलते या तो लुप्त हो गई या गंदे पानी के निस्तार का नाला बना दी गईं हैं. देश के चप्पे-चप्पे पर छितरे तालाब तो हमारा समाज पहले ही चट कर चुका है. कुएं तो भूली -बिसरी बात हो गए. प्रकृति तो हर साल कम या ज्यादा, पानी से धरती को सींचती ही है, जो कमी है वो हममें है.दरअसल, हमने पानी को ले कर अपनी आदतें खराब की हुई हैं.जब कुएं से रस्सी डाल कर पानी खींचना होता था तो जितनी जरूरत होती थी, उतना ही जल उलिचा जाता था. लेकिन ट्यूबवेल या बोरिंग में ऐसा नहीं होता. बहरहाल,हमारी परंपरा पानी की हर बूंद को सहेजने की है. नदियों के प्राकृतिक मार्ग में बांध, रेत निकालने, मलबा डालने, कूड़ा मिलाने जैसी गतिविधियों से बच कर, पारंपरिक जल स्रोतों- तालाब, कुएं, बावड़ी आदि के हालात सुधारे जाने चाहिए. कुल मिलाकर पेयजल संकट को लेकर युद्ध स्तर पर अभी से तैयारियां की जाने की जरूरत है.

 

 

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