सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में एक सेमिनार में बोलते हुए एक महत्वपूर्ण समस्या पर ध्यान आकर्षित किया है. यह समस्या केंद्र और राज्यों को हल करनी चाहिए. दरअसल, हाल ही में संसद में तीन नए कानून पारित किए गए. इन कानूनों ने अंग्रेजों के समय के अपराध कानूनों का स्थान लिया है.मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने इन कानून के प्रशंसा की है.इन बदलावों से ई कोर्ट की अवधारणा मजबूत हुई है. सरकार ने इन कानून के जरिए यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि मुक़दमों के फैसले एक निश्चित सीमा के भीतर हो जाएं. इसके लिए डिजिटल साक्ष्य, हाई टेक्नोलॉजी के जरिए जांच और परीक्षण तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग पर जोर दिया गया है. ई अदालतों के लिए देश की निचली अदालतों के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर अपग्रेड करने होंगे. वकीलों और जजों में डिजिटल लिटरेसी बढ़ानी होगी. सारे दस्तावेजों का डिजिटलीकरण करना होगा. यह ध्यान रखना होगा ई कोर्ट पेपरलेस होंगे.यह सब काम इतना आसान नहीं है. सरकार ने ई कोर्ट की अवधारणा जरूर पेश की है लेकिन इसके क्रियान्वयन का कोई एक्शन प्लान सामने नहीं आया है.दरअसल, इन कानूनों के पारित होने के कुछ ही दिनों के भीतर देश में आचार संहिता लग गई. इसलिए स्वाभाविक रूप से इन सभी सवालों के जवाब अब नई सरकार ही दे सकेगी, लेकिन देश के मुख्य न्यायाधीश ने इन समस्याओं की ओर केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल की मौजूदगी में ध्यान आकर्षित किया है. दरअसल, अदालतों को डिजिटलाइज करना समय की जरूरत है क्योंकि देश में साइबर अपराध लगातार बढ़ रहे हैं. इन अपराधों को रोकने के लिए पुलिस तंत्र को भी पूरी तरह से डिजिटलाइज़ करना होगा. वस्तुत: साइबर क्राइम दुनिया भर के लिए बड़ी चुनौती के रूप में उभर कर सामने आया है.भारत भी बढ़ते साइबर क्राइम के खतरों से अछूता नहीं है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी की ओर से जारी ताजा रिपोर्ट बताती है कि भारत को इस चुनौती से निपटनेे के लिए बहुत तेज गति से कदम उठानेे की जरूरत है. यह जरूरत इसलिए भी क्योंकि भारत को साइबर क्राइम के हिसाब से हॉट स्पॉट करार देते हुए इस खतरे की गंभीरता की दृष्टि से दुनिया के दस देशों की सूची में शामिल किया गया है.यह जानकारी सचमुच देश में साइबर क्राइम के प्रसार की भयावहता बताती है. साथ ही यह अंदाजा भी आसानी से लगाया जा सकता है कि दुनिया भर में नागरिक साइबर क्राइम को कितने व्यापक स्तर पर झेल रहे होंगे.इंटरनेट ने इंसान के हर पहलू को प्रभावित किया है. इसने संचार के क्षेत्र में क्रांति की है, लेकिन इससे साइबर क्राइम का दंश भी मिला है.यह ऐसा दंश है जो पिछले एक दशक से शूल की तरह चुभ रहा है.चिंता इस बात की भी कि जब साइबर क्राइम के खतरों से निपटने के प्रयासों की शुरुआत होती है तो दूसरे नए खतरे भी उभर कर आ जाते हैं. सिस्टम हैकिंग, फिशिंग, ऑनलाइन धोखाधड़ी व डेटा चोरी की छोटी-बड़ी घटनाएं आम होने लगी हैं.आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) को तकनीकी रूप से कई मामलों में बेहद उपयोगी समझा जाता है, लेकिन इससे जुड़ी चुनौतियां भी कम नहीं हैं. तकनीकी दृष्टि से समृद्धि का दौर आने वाले समय में क्या तस्वीर पेश करेगा, इसका अंदाजा भी आसानी से नहीं लगाया जा सकता. साइबर क्राइम ऐसा क्षेत्र है जिससे कोई एक देश नहीं, बल्कि पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है. यह वाकई चिंता की बात है. ऐसा भी नहीं है कि दुनिया इन खतरों को जानते-समझते भी लाचार बैठी हुई है. सभी देश और अंतरराष्ट्रीय संगठन इन खतरों से निपटने के लिए कुछ न कुछ कर रहे हैं.इंटरपोल तक ने भी इस दिशा में जागरूकता पैदा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सेमिनारों का आयोजन भी किया है.अच्छा पहलू यह है कि पूरी दुनिया इस बारे में एकमत है कि साइबर क्राइम वैश्विक अपराध है.इसलिए इससे निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर तंत्र विकसित करना होगा. इतना जरूर कहा जा सकता है कि साइबर क्राइम को तकनीक के जरिए ही रोकने की दिशा में अभी कोई उल्लेखनीय काम नहीं हो पाया है.वैश्विक तंत्र विकसित करने के लिए भारत को भी आगे आना होगा.साथ ही साइबर क्राइम के बरगद को जड़ से उखाडऩे का काम भी करना होगा.भारत में जिस तेजी से इंटरनेट का प्रसार हुआ है और विभिन्न क्षेत्रों में डिजिटलाइजेशन हुआ है, उससे साइबर क्राइम का खतरा भी तेजी से बढ़ा है. जाहिर है देश के मुख्य न्यायाधीश ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय को पूरी गंभीरता के साथ देश के समक्ष रखा है. चुनाव लड़ रहे सभी राजनीतिक दलों ने इसका संज्ञान लेना चाहिए ताकि नई सरकार बनने के बाद इस दिशा में जल्दी से जल्दी काम हो सके.
अदालतों के समक्ष चुनौतियां
