रामेश्वरम को देश से जोड़ने वाला देश का पहला वर्टिकल रेलवे पुल तैयार

  • पंबन पुल पर 75 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ेगी ट्रेन
  • समुद्री जहाज को रास्‍ता देने के लिए ऊपर उठ जाएगा यह पुल

रामेश्वरम- हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार द्वीप है रामेश्वरम. भारत के सुदूर दक्षिण में स्थित इस द्वीप को देश के मुख्य भागों से जोड़ने के लिए पंबन ब्रिज तैयार है. रेल मंत्रालय ने फरवरी 2019 में पंबन रेलवे पुल के निर्माण को मंजूरी दी थी. इसे तैयार होने में 5 साल का समय लगा और यह नवम्बर 2024 में तैयार हो गया. इस पुल की लंबाई 2.10 किलोमीटर है. इसके निर्माण में कुल 531 करोड़ रुपए की लागत आई है.

अत्याधुनिक तकनीक से बना यह पुल भारत का ऐसा पहला रेलवे पुल है, जो बड़ी समुद्री नौकाओं को रास्ता देने के लिए 5 मिनट 30 सेकंड में अधिकतम 17 मीटर ऊपर तक उठ सकता है. रेलवे ट्रैक के साथ लिफ्ट स्पैन का कुल वजन 660 मीट्रिक टन है, जिसे उठाने के लिए सिर्फ़ चार लोगों की जरूरत पड़ेगी. पुराने पुल को 2020 में बंद कर दिए जाने के बाद से ट्रेनों का आवागमन पूरी तरह बाधित था.

रेल विकास निगम लिमिटेड के वरिष्ठ उप महाप्रबंधक वी रामास्वामी ने बताया कि रेल मंत्रालय ने फरवरी 2019 में पंबन रेलवे पुल के निर्माण को मंजूरी दी थी. नवंबर 2024 में 2.10 किलोमीटर लंबे इस पुल के निर्माण में कुल 531 करोड़ रुपये की लागत आई है. उन्होंने बताया कि रेलवे बोर्ड की विशेषज्ञ समिति ने पुल में कुछ तकनीकी खामियों का पता लगाया था, जिन्हें दुरुस्त कर लिया गया है और यह किसी भी समय उद्घाटन के लिए तैयार है. रेलवे अधिकारियों ने बताया कि पुल के निर्माण के समय तेज समुद्री हवाओं के बीच काफी कठिनाइयों का सामना करनापड़ा. उन्होंने बताया कि कुछ मशीनों को छोड़कर पुल के निर्माण में पूरी तरह स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। केवल इसका गियर बॉक्स जर्मनी में बना है, जबकि बियरिंग और रिजिड ओवरहेड उपकरण स्विट्जरलैंड में बने हैं.

इस पुल की बुनियाद पाइल फाउंडेशन तकनीक पर आधारित है, जिसमें कुल 333 पाइल हैं, जो समुद्री सतह से लगभग 33 मीटर नीचे से शुरू होतीहैं. इसके निर्माण में 5772 मीट्रिक टन एसएस रिइनफोर्समेंट और 25,000 घन मीटर कंक्रीट का इस्तेमाल किया गया है। पुल के निर्माण में 3 लाख, 38 हजार 14 बोरी सीमेंट और 4 हजार 500 मीट्रिक टन स्ट्रक्चरल स्टील लगाया गया है.

रामास्वामी ने बताया कि पुल के आरपार 34 मीटर लंबे जो चार टॉवर बनाए गए हैं, काउंटर वेट के साथ उनका कुल वजन 1470 मीट्रिक टन है.काउंटर वेट की वजह से ट्रैक को ऊपर उठाने में इस्तेमाल होने वाली बिजली की काफी बचत होती है.

पुल समुद्र तल से 22 मीटर ऊपर है। उन्होंने बताया कि समुद्र के बीचोबीच होने की वजह से मीठे पानी की व्यवस्था के लिए यहां एक ऐसा संयंत्र लगाया है जो वातावरण से जल वाष्प को खींचकर प्रतिदिन लगभग 250 लीटर उपयोग लायक पानी बना देता है.

बता दें कि पंबन ब्रिज के निर्माण में खामी पाए जाने के बाद, रेलवे बोर्ड ने एक तकनीकी कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी का उद्देश्य, रेलवे सुरक्षा आयुक्त की रिपोर्ट में बताई गई खामियों की जांच करना था. कमेटी में प्रधान कार्यकारी निदेशक (पीईडी), पुल

पीईडी, अनुसंधान डिजाइन और मानक संगठन (आरडीएसओ), मुख्य पुल इंजीनियर (दक्षिणी रेलवे, रेल विकास निगम लिमिटेड के निदेशक और एक स्वतंत्र सुरक्षा विशेषज्ञ शामिल हैं। कमेटी की रिपोर्ट सरकार को सौंपे जाने के बाद पुल का उद्घाटन संभवतः फरवरी के अंत या मार्च में कर दिया जाएगा

रामास्वामी ने बताया कि पुल की तकनीकी खामियों को दूर करने के बाद ट्रेन संचालन के बाद पुल का सफल परीक्षण किया जा चुका है. पुल से ट्रेनों की गुजरने की अधिकतम गति 75 किलोमीटर प्रति घंटे निर्धारित की गई है।पुराने पुल पर ट्रेन की गति केवल 10 किलोमीटर प्रति घंटा थी और इसे ऊपर उठाने के लिए पुरानी तकनीक में 16 लोगों की जरूरत पड़ती थी.

तकनीकी विशेषज्ञों ने बिना किसी मरम्मत के इस पुल की आयु 38 वर्ष और न्यूनतम मरम्मत के साथ 58 वर्ष निर्धारित की है.

नया पंबन पुल इस तरह बनाया गया है कि किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा के समय मानवीय भूल की कोई गुंजाइश न रहे. पुल के दोनो तरफ लगे सेंसर प्राकृतिक आपदा का पता पहले से ही लगा सकते हैं. इसमें ऐसी व्यवस्था की गई है कि खतरे की संभावना होने पर ड्राइवर चाह कर भी ट्रेन को आगे नहीं बढ़ा सकता है.

मालूम हो कि मुख्य भूमि को रामेश्वरम से जोड़ने के लिए ब्रिटिश काल में एक रेलवे पुल का निर्माण किया गया था, जो नए पुल के ठीक बगल में स्थित है. रामेश्वरम में धनुषकोडी आखिरी रेलवे स्टेशन हुआ करता था. 1964 में आए भीषण चक्रवात में यह स्टेशन पूरी तरह नष्ट हो गया था, जिसके अवशेष आज भी बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर के मिलन स्थल पर देखे जा सकते हैं। इस चक्रवात में लगभग 164 यात्रियों से भरी ट्रेन भी समुद्र में समा गई थी, जिसके अवशेष कभी मिले ही नहीं.

Next Post

नागा बाबा ने बागेश्वर बाबा को दी चुनौती

Sun Jan 19 , 2025
महाकुंभनगर, 19 जनवरी (वार्ता) दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महाकुंभ में गुजरात से आए एक नागा संन्यासी ने बागेश्वर बाबा को चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि यदि उनके अंदर इतनी क्षमता है तो कुंभ मेले में आ जाए उसको हम बताते है चमत्कार क्या होता है। हम […]

You May Like