प्रदूषित भू जल रोकने के उपाय करें

देश में जिस तरह से भू जल लगातार प्रदूषित हो रहा है वह निश्चित रूप से चिंता जनक है.दरअसल,धान व अन्य फसलों की बंपर पैदावार के लिये भूजल का अंधाधुंध दोहन करने वाले पंजाब और हरियाणा राज्यों का भूजल का स्तर उस गहराई तक जा पहुंचा है, जहां उसमें यूरेनियम जैसे घातक पदार्थों की मात्रा गंभीर स्थिति तक जा पहुंची है.पूरे देश में भूजल की गुणवत्ता की जांच हेतु लिए गए बीस प्रतिशत सैंपल निर्धारित कसौटी पर खरे नहीं उतरे हैं.इन सैंपलों में नाइट्रेट का स्तर सीमा से अधिक मिला है. पानी की गुणवत्ता को लेकर केंद्रीय भूजल बोर्ड की सालाना रिपोर्ट गंभीर चिंताओं का खुलासा करती है.

जहां अरुणाचल, मिजोरम, मेघालय, जम्मू- कश्मीर आदि के सौ प्रतिशत सैंपल भारतीय मानक ब्यूरो के मानकों पर खरे उतरे हैं, वहीं पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उ.प्र. तथा आंध्र प्रदेश में पानी बड़े पैमाने पर प्रदूषित मिला है.देश में कुल 15,259 भूजल निगरानी स्थानों का चयन पानी की क्वालिटी नापने के लिये किया गया. मगर पंजाब के पानी के नमूने में मिले घातक तत्व चिंता बढ़ाने वाले हैं.पंजाब के भूजल में तीस प्रतिशत सैंपलों में अधिक यूरेनियम पाया गया. फिक्र की बात यह है कि पंजाब व राजस्थान यूरेनियम प्रदूषण के मद्देनजर हॉट स्पॉट हैं. इस यूरेनियम के अधिक प्रदूषण का मुख्य कारण भूजल का अत्यधिक दोहन है.जो भूजल स्रोत अधिक यूरेनियम वाले क्लस्टर हैं, वे अति दोहित, गंभीर व अर्ध गंभीर श्रेणी वाले इलाके हैं. वास्तव में भूजल के अंधाधुंध दोहन से पानी का स्तर उस स्थान तक जा पहुंचा है, जहां पानी में यूरेनियम अधिक है. जो कि कैंसर जैसी अनेक गंभीर बीमारियों का कारण बनता जा रहा है.हाल के वर्षों में पंजाब के कई इलाकों में कैंसर के अधिक मामले सामने आए हैं. यहां तक कि पंजाब से राजस्थान रोगियों को इलाज के लिए ले जाने वाली ट्रेन को कैंसर ट्रेन तक कहा जाता रहा है.केंद्रीय भूजल बोर्ड की यह रिपोर्ट चिंता बढ़ाने वाली है. हमने मुनाफा बढ़ाने के लिये जिस भूजल का अंधाधुंध दोहन किया है वह अब अपना नकारात्मक प्रभाव दिखाने लगा है. निश्चित रूप ने कुदरत ने हमें आवश्यकता का जल तो दिया है, लेकिन उसके अनियंत्रित दोहन की अनुमति नहीं दी है.पंजाब बड़े पैमाने पर धान की खेती करता रहा है.हालांकि, पंजाब के भोजन में चावल प्राथमिक नहीं रहा है. वहां व्यावसायिक हितों की पूर्ति के लिये धान की खेती को प्रश्रय दिया गया.इस खेती की वजह धान की फसल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य का मिलना भी है.अब किसानों को फसलों के विविधीकरण के लिये प्रेरित किया जाना चाहिए.ग्लोबल वार्मिंग संकट के मद्देनजर यह चुनौती और गंभीर हो जाती है क्योंकि वर्षा जल के पैटर्न में बड़ा बदलाव आया है. जिसके चलते सूखे व बाढ़ जैसी स्थितियां कभी भी पैदा हो जाती हैं.ग्लोबल वार्मिंग के संकट के मद्देनजर उन फसलों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जो कम पानी में उग सकें और अधिक मुनाफा दे सकें.सरकारों की ओर से मुफ्त सिंचाई की सुविधा के सवाल पर भी पुनर्विचार किया जाना चाहिए.दरअसल, हमें जो चीज मुफ्त उपलब्ध हो जाती है, हम उसके उपयोग में किफायत नहीं बरतते.हमें हर मुफ्त चीज की बड़ी कीमत कालांतर में चुकानी पड़ती है.वहीं दूसरी ओर केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट राजस्थान व गुजरात के भूजल में निर्धारित मानक से अधिक फ्लोराइड होना बताती है.यहां एक विचारणीय प्रश्न यह भी है कि कई स्थानों पर मानसून के बाद पानी गुणवत्ता में सुधार देखा गया. ऐसे में हमें वर्षा जल को धरती में रिचार्ज करने की दिशा में गंभीरता से सोचना चाहिए.दरअसल, रिपोर्ट बताती है कि बारिश के पानी के रिचार्ज होने से घातक पदार्थ का असर कम हो जाता है.गंभीर बात यह भी है कि इस रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के 440 जिलों के भूजल में नाइट्रेट खतरनाक स्तर तक पाया गया है. जो कि अनेक गंभीर बीमारियों का कारक बन सकता है. इस गंभीर संकट पर समाज, सरकार व स्वयंसेवी संगठनों को गंभीरता से विचार करना चाहिए.

 

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