जीएसटी दरों को युक्ति संगत बनाएं

देश में अब वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था ऐसे मोड़ पर पहुंच रही है, जहां इसके ढांचे में ही बदलाव करने पर बातचीत होनी चाहिए. जीएसटी की अभी चार दरें हैं, जिन्हें आगे जाकर घटाते हुए दो पर लाने का लक्ष्य रखा गया है. जीएसटी की परिभाषा देखें तो इसके लिए कुछ वस्तु और सेवाओं पर कर बढ़ाना होगा और कुछ पर घटाना होगा. उत्पादन में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर चुकाया गया इनपुट टैक्स इस कर व्यवस्था में वापस कर दिया जाता है. इसलिए यदि उन वस्तुओं या सेवाओं पर कर बढ़ाया जाता है, जिनका इस्तेमाल इनपुट यानी कच्चे माल के तौर पर होता है तो मामला बिगड़ जाएगा.कच्चे माल पर कर बढ़ा तो तैयार उत्पाद पर भी कर बढ़ाना पड़ेगा.

अब खरीदार इनपुट टैक्स वापस मांग लेंगे, इसलिए उत्पादों की मांग जस की तस रहने पर भी राजस्व में इजाफा नहीं होगा यानी कर दरें बढ़ाने का फायदा ही नहीं होगा. दूसरे शब्दों में कहें तो दरों को वाजिब बनाने के लिए सभी वस्तुओं और सेवाओं को दो श्रेणियों में रखना सही होगा.पहली कर योग्य गतिविधियों के लिए इनपुट और अन्य.दूसरी यानी अन्य श्रेणी पर कर की दरें बदलने का असर राजस्व पर पड़ सकता है. मगर पहली श्रेणी यानी इनपुट पर कर घटाने-बढ़ाने का कोई असर नहीं होगा.लेकिन इससे कई वस्तुओं और सेवाओं की दरें बदल जाएंगी, जिससे काफी उलटफेर हो सकता है. इसलिए ऐसे बदलावों को राजनीतिक और आर्थिक मोर्चों पर सावधानी के साथ संभालना होगा.

दरें दुरुस्त करने की चर्चा में एक पहलू वस्तुओं के दाम के हिसाब से कर की दरें अलग-अलग रखने का भी है. इसके तहत सस्ते सामान पर कम कर होगा और महंगे सामान पर ज्यादा कर. अलग-अलग कर दरों की यह व्यवस्था फुटवियर और परिधान में पहले ही चल रही है, जहां 500 रुपये से अधिक कीमत के फुटवियर और 1,000 रुपये से ज्यादा कीमत के परिधान पर कर बढ़ जाता है.कर की दरों में इस अंतर का मकसद कम आय वाले परिवारों पर कर का बोझ कम रखना है.कर की दरों को वाजिब बनाने के लिए गठित मंत्री समूह की चर्चाओं पर आई हालिया खबरों से लगता है कि और भी वस्तुओं को कीमत के हिसाब से अलग-अलग कर श्रेणी में रखा जा सकता है. बहरहाल,

जीएसटी संरचना में व्यापक सुधार की बात हो तो यह सवाल पूछना जरूरी है कि क्या जीएसटी के आधार में बढ़ोतरी का वाकई कोई फायदा होगा. पेट्रोल और डीजल को भी जीएसटी के दायरे में लाने की बात चल रही है मगर इसके खिलाफ कई तरह की दलीलें हैं क्योंकि ये प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन हैं. बिजली (उत्पादन एवं वितरण) ऐसा क्षेत्र है, जिसे जीएसटी के दायरे में लाने की जरूरत है.बिजली की जरूरत अर्थव्यवस्था की सभी बड़ी गतिविधियों में पड़ती है मगर इसके साथ ही दो और कारणों पर भी विचार करना होगा.पहला कारण, बिजली क्षेत्र में निवेश के लिए संसाधन बड़ी मात्रा में लगते हैं और उन्हें खरीदने पर कर भी काफी ज्यादा देना पड़ता है. अगर इस क्षेत्र को जीएसटी के तहत लाया जाता है तो बिजली के दाम कम हो सकते हैं और कर तथा कीमत के कारण आगे तक पडऩे वाला असर भी कम हो सकता है. दूसरा कारण यह है कि देश की अर्थव्यवस्था में बदलाव होता दिख रहा है, जिसमें ऊर्जा के स्रोत के तौर पर बिजली को ज्यादा अहमियत दी जा रही है.अभी पेट्रोल और डीजल से केंद्र तथा राज्य सरकारों को अच्छा खासा राजस्व मिलता है. अगर आगे जाकर इनकी मांग कम होती है तो बिजली को जीएसटी में लाने से कर में अच्छी खासी बढ़ोतरी हो सकती है.लेकिन इस बदलाव से कुछ समय तक तो राजस्व में कमी आएगी और इसकी मार राज्य सरकारों पर ज्यादा पड़ेगी.चर्चा से लगता है कि दरों को एक साथ बड़े स्तर पर दुरुस्त बनाए जाने की जरूरत है मगर राजस्व घटने की चिंता और स्थिरता की खातिर इसमें धीरे-धीरे बदलाव हो सकता है. ऐसा हुआ तो यह प्रणाली यथास्थिति यानी आज की स्थिति के इर्द-गिर्द ही घूमती रहेगी. कुल मिलाकर जीएसटी दरों को युक्ति संगत बनाना जरूरी है.

 

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