जबलपुर: जिले में बीते सालों में डकैतियां तो हुई लेकिन सब अनसुलझी रहीं । क्राइम ब्रांच से लेकर थानों की पुलिस इन डकैतियों को सुलझाने मेें फिसड्डी साबित हुई। दरअसल डकैतों के लिए शहर सबसे सॉफ्ट टारगेट रहा है जहां दूसरे राज्यों के डकैत आसानी से आते है और बेखौफ कुछ दिन रहने के बाद रैकी करते है और पुलिस को खुली चुनौती देकर डकैती डाल कर शहर छोडक़र फरार भी हो जाते है और पुलिस इन डकैतों तक पहुंचने में नाकाम ही साबित होती है।
सन् 2015 से अगर आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाएं तो 2023 तक जिले में कई डकैतियां हुई लेकिन जबलपुर पुलिस इन वारदातों को अंजाम देने वाले एक भी डकैत को पकडऩे में कामयाब नहीं हो पाईं हैं। डकैत पुलिस के लिए चुनौती बने हुए हैं। हालांकि 2024 में हुई डकैती को पुलिस ने जरूर सुलझा लिया है। यह डकैती माढ़ोताल थाना क्षेत्र स्थित जैन मंदिर में पड़ी थी पुलिस ने डकैती का खुलासा करने के साथ पांच आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था इस साल जरूर पुलिस ने डकैती सुलझाने में कामयाबी हासिल की परंतु बीते सालों मेेंं हुई डकैती इस साल भी अनसुलझी रह गई।
यह डकैतियां अनसुलझी
…21 अप्रेल 2015 में रेलवे ब्रिज चार के पास रहने वाली लिज्जत पापड़ समूह की संस्थापक पुष्पा बेरी और उनके परिवार को बंधक बनाकर डकैती डाली गई।
…14 मई 2016 में नेपियर टाउन में निवासी शराब कारोबारी रामअवतार गुप्ता के घर में डकैत घुसे और लाखों का माल लूटकर फरार हो गए।
…11 नवम्बर 2016 में संजीवनी नगर इलाके में रहने वाले अधिवक्ता हर्षवर्धन शुक्ला के घर में डकैत घुसे लाखें की नगदी ले गए।
.. 07 मई 2018 में ओमती के नेपियर टाउन निवासी कलर लैब संचालक निखिल अग्रवाल के घर भी डकैती की वारदात हुई।
… 2023 में नेपियर टाउन निवासी स्पेयर पाट्र्स के कारोबारी दलवीर टुटेजा के बंगले में शनिवार-रविवार की दरमियानी डकैत घुसे और 15 तोला सोना चांदी के साथ 20 हजार की नगदी ले गए।
इसका खुलासा
2024 में माढ़ोताल थानांतर्गत नक्षत्र नगर स्थित जैन मंदिर में डकैती डाली गई थी। पुलिस इस डकैती का खुलासा किया था। साथ ही पांच आरोपी भी पकड़े थे। भगवान की प्रतिमाएं, दानपेटी, छत्र, अष्टधातु की दो प्रतिमाएं एवं दानपेटियां बरामद की थी।
ये लापरवाही पड़ती है भारी-
रात्रि में पुलिस गश्त नहीं करती हैं। रात्रि गश्त कमजोर होने से अपराधियों के हौंसले बुलंद रहते हैं। रात में अधिकांश अधिकारी फील्ड की जगह थानों में बैठते हैं। रात के वक्त प्रमुख मार्गों में अगर कभी कभार पुलिस दिख भी जाए तो कॉलोनियों और सूनसान इलाकों में दूर-दूर तक खाकी नजर नहीं आती हैं। इसके अलावा रात के वक्त घूमने वाले संदेहियों से किसी प्रकार की कोई पूछताछ नहीं होती हैे। होटल, ढाबों, मुसाफिरखानों और धर्मशालाओं की जांच सिर्फ वीआईपी मूवमेंट के दौरान होती हैं। किराएदारों की पुलिस कोई जानकारी नहीं होती है।
कॉलोनियों से रैकी, रेलवे ट्रैक से भागते डकैतोंं के निशाना पर सबसे अधिक रेल की पटरियों के पास रहने वाले बनते हैं। क्योंकि डकैत वारदात को अंजाम देने के बाद टे्रन के जरिए आसनी से शहर से फरार हो जाते है। सूनसान कॉलोनियां भी डकैतों के निशाने पर रहती हैं। वारदातके बाद टे्रनों में चेन पुलिंग, ऐरिया में कितने मोबाइल सक्रिय रहे समेत अन्य बिन्दुओं पर सिर्फ जांच करती रह जाती है।
ये गिरोह रहते हैं सक्रिय
शहर में पारधी, कंजड़, स्थानीय, डेरा वाले समेत अनेक गिरोह सक्रिय हैं जो रैकी के बाद वारदातों को अंजाम देते हैं और शहर छोडकऱ भाग जाते हैं।
यूपी-बिहार, बांग्लादेश से आते है
डकैती के पुराने रिकॉर्ड देखे जाएं तो पुलिस की जांच में यह बात सामने आई कि जिले में यूपी-बिहार से लेकर बांग्लादेश से भी डकैत आते रहे हैं। अधिकतर वारदातें ठंड के शुरुआत या फिर समाप्ति के समय पर हुई हैं।
चेहरे है पर डकैत नहीं
कई ऐसे भी डकैतियां है जिसमें पुलिस के पास डकैतों के चेहरे तो है परंतु डकैत एक भी नहीं है। जब डकैती होती है लंबी जांच पड़ताल चलती है। अफसरों से लेकर कई टीमें गठित होती है लेकिन पुलिस के हाथ कोई पुख्ता सुराग नहीं लगता है। ऐसे में पुलिस के हाथखाली रहते है और फिर मामला खात्मे की कगार तक पहुुंच जाता है।
नेफिस ने भी नहीं दिया साथ
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा संचालित साफ्टेवर नेशनल ऑटोमेटिड फिंगर प्रिंट आईडेंटीफिकेशन सिस्टम (नेफिस) फिंगर प्रिंट आईडेंटीफिकेशन से भी पुलिस को कई मामलों सफलता हाथ नहीं लगी है।